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चित्रकूट का जनादेश

जसविंदर सिंह चित्रकूट उप चुनाव में भाजपा की हार के कई मायने हैं। क्योंकि उप चुनाव में सिर्फ भाजपा नहीं हारी है। दो-दो राज्यों के मुख्यमंत्री चुनाव प्रचार में थे। उत्तरप्रदेश के उप मुख्यमंत्री भी चित्रकूट में ही डेरा डाले हुए थे। केन्द्र सरकार के...

जसविंदर सिंह

चित्रकूट उप चुनाव में भाजपा की हार के कई मायने हैं। क्योंकि उप चुनाव में सिर्फ भाजपा नहीं हारी है। दो-दो राज्यों के मुख्यमंत्री चुनाव प्रचार में थे। उत्तरप्रदेश के उप मुख्यमंत्री भी चित्रकूट में ही डेरा डाले हुए थे। केन्द्र सरकार के मंत्री, भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष और करीब-करीब पूरे मंत्रीमंडल के साथ साथ भाजपा पूरा संगठन चित्रकूट में हर हाल में इस उप चुनाव को जीतना चाहता था। इसलिए उसे अपनी ताकत पर भी भरोसा नहीं था। अंत में आकर उसने पूरे प्रशासन को चुनाव प्रबंधन में लगा दिया था। आदर्श चुनाव आचार संहिता की चिंता तो चुनाव आयोग को भी नहीं है तो भाजपा ने जमकर इसकी धज्जियां उड़ाई। जब यह सब काम नहीं आया। भाजपा की स्पष्ट हार दिखने लगी तो मुख्यमंत्री ही मतदाताओं को धमकी देने लगे कि अगर भाजपा नहीं जीतेगी तो फिर क्षेत्र का विकास कैसे होगा? इस सबके बावजूद भाजपा हारी है। हार को स्वीकार करते हुए भाजपा प्रदेशाध्यक्ष ने कहा है कि यह तो कांग्रेस की परंपरागत सीट है। अगर यह बात है तो फिर भाजपा ने इस चुनाव में इतना दम क्यों लगाया था? दूसरी बात चुनाव नतीजों से साफ हुई है। 2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी 11 हजार मतों से जीता था। इस बात जीत का अंतर बढ़ कर 14333 हो गया है। पहले रांउड को छोड़ दिया जाये तो भाजपा हर राउंड में हारी है। मतलब किसी एक क्षेत्र में नहीं बल्कि पूरे विधान सभा क्षेत्र में भाजपा विरोधी रुझान साफ दिख रहा है।

अगर यह जीत सिर्फ कांग्रेस की परंपरागत सीट की वजह से है तो भाजपा को यह तो बताना ही होगा कि उसका प्रत्याशी अपने सुसराल वाले गांव से क्यों हार गया है? खबर तो यह भी है कि वह अपने  गांव से भी हारा है। मुख्यमंत्री ने जिन क्षेत्रों में प्रचार अभियान चलाया था और 64 सभायें की थी, उन सबकी बात तो अलग है, मुख्यमंत्री जिस तुर्रा आदिवासी गांव में रात रुके थे, भाजपा प्रत्याशी वहां भी 210 मतों से हारा है। मुख्यमंत्री की रात भर की उपस्थिति भी मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में नहीं कर पायी है तो इस चुनाव के नतीजों को केवल विधानसभा क्षेत्र तक सीमित करके नहीं देखा जा सकता है।

इस चुनाव में नरेन्द्र मोदी प्रचार करने के लिए नहीं आये। मगर आज कल मोदी से ज्यादा मीडिया कवरेज योगी आदित्यनाथ को मिल रहा है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री की कट्टर हिन्दुत्ववादी छवि को लेकर कहा जाता है कि संघ परिवार उसे मोदी के विकल्प के तौर पर तैयार कर रहा है। योगी का वहां प्रचार करना हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिक धु्रवीकरण को तेज करने के अलावा और क्या था? वहां के उप मुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य का प्रचार करना क्या एक जाति विशेष को प्रभावित करना नहीं था? आपने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने का खेल भी खेला और जातिवाद का दांव भी लगाया। चित्रकूट में संघ की संस्थाओं का भी जाल बिछा हुआ है। संघ जो भाजपा की हर जीत का श्रेय स्वंयसेवकों को देता है, वह भी  अपने नेट वर्क का पूरा इस्तेमाल भाजपा के पक्ष में कर रहा था। इसके बाद भी भाजपा हारी है तो फिर मुख्यमंत्री इस हार की जवाबदेही से कैसे बच सकते हैं। संघ मीठा-मीठा गप नहीं कर सकता। उसे भी कड़वे का स्वाद चखना होगा।

भाजपा और मुख्यमंत्री के नाटकों का पर्दा भी चित्रकूट में फास हुआ। जिस तुर्रा गांव में आदिवासी के घर रुकने का नाटक मुख्यमंत्री ने किया था। उसकी हकीकत तो सबके सामने उजागर हुई। जिस झौंपड़ी को फाइव स्टार होटल में तब्दील कर दिया गया था, मुख्यमंत्री के गांव छोड़ते ही वह झौंपड़ी फिर पुराने हाल में आ गई। डबल बैड, कालीन और डनलप के गद्दे ही नहीं,बल्कि उस झौंपड़ी के दरवाजे और खिड़कियां भी उखाड़ कर ले गए। शौचालय की सीट को छोड़ कर बाकी सारा सामान भाजपाई उठा ले गए। यह भेद अभी खुलना बाकी है कि मुख्यमंत्री ने जो खाना खाया था क्या वह वाकई आदिवासी के घर का खाना था या कहीं और से बनकर आया था और मुख्यमंत्री ने आदिवासी के घर बैठकर खाने का नाटक किया था?

चित्रकूट चुनाव नतीजे के बाद भाजपा कह रही है कि इससे 2018 के विधान सभा चुनावों पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा। वह तो इसे शिवराज सरकार की नीतियों पर जनादेश भी नहीं मान रही है। लेकिन यदि भाजपा जीत जाती तो भाजपा क्या कहती? मंदसौर में गोलीकांड और छ: किसानों की हत्या के बाद संघ परिवार ने चिंता व्यक्त की थी कि इतने बड़े असंतोष की जानकारी उसे क्यों नहीं मिल पायी। सही मायनों में कहा जाये तो यह वही असंतोष है जो मंदसौर में अलग तरीके से व्यक्त हुआ था और चित्रकूट में दूसरे तरीके से व्यक्त हआ है। हां यह बात अलग है कि अब लफ्फाजी को जनता समझ चुकी है। किसानों को उनकी फसल का वाजिब दाम देने से लेकर भावांतर तक, हर घोषणा की सच्चाई जनता समझ चुकी है। अब भावांतर में किसान लुटेंगे तो शिवराज के भाव तो गिरेंगे ही।

इस लिए यह जनादेश शिवराज सरकार के खिलाफ जनादेश है। यह हार सिर्फ भाजपा की हार नही, प्रशासन की भी हार है। यह हार संघ परिवार की भी हार है। मगर क्या यह जीत सच में कांग्रेस की जीत है?

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