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बाबाओं की पतन गाथा

महाबली की छवि वाले राम रहीम को अगस्त ने बिलख बिलख कर रूला दिया । मोदी जी की पवित्र चाल चरित्र वाली सरकार के मुख्यमंत्रियों को देख कर कभी कभी शक होता है कि हम किसी देश की जगह , किसी सर्कस में तो नहीं आ गये हैं । जहाँ सर्कस के बीच बीच में हर बार जोकर आते हैं और जनता का मनोरंजन करते हैं ।

              राजेश जोशी@इसलिए

अगस्त के माथे पर जो कलंक जोगी जी की सरकार ने लगाया था वह अब बदल गया है । जोगी को हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर का शुक्रिया अदा करना चाहिये कि उसने अगस्त को बच्चों के मरने के महिने के बजाय बाबाओं के पतन का महिना बना दिया । महाबली की छवि वाले राम रहीम को अगस्त ने बिलख बिलख कर रूला दिया । मोदी जी की पवित्र चाल चरित्र वाली सरकार के मुख्यमंत्रियों को देख कर कभी कभी शक होता है कि हम किसी देश की जगह , किसी सर्कस में तो नहीं आ गये हैं । जहाँ सर्कस के बीच बीच में हर बार जोकर आते हैं और जनता का मनोरंजन करते हैं ।

हालांकि ऐसा लिखते हुए मैं जोकरों का अपमान नहीं करना चाहता । जोकर क्रूर नहीं होते और मूर्ख तो बिल्कुल नहीं होते । राम रहीम का डेरा लगातार भारतीय जनता पार्टी का सहायोग करता रहा तन ,मन और धन से । अब इस अहसान का बदला चुकाने का जब अवसर आया तो खट्टर सरकार का यह तो फजऱ् बनता ही था कि वह बाबा रामरहीम की मदद करे । बाबा की किसी बेटी ने कहा भी कि भाजपा ने वायदा किया था कि उन पर चल रहे मुकदमों को खारिज करवा देगी या खत्म करवा देगी । लेकिन बुरा हो सी.बी.आई का कि उसने इससे पहले की खट्टर सरकार कुछ कर पाती फैसले की तारीख तय कर दी ।


हिन्दुस्तान की अदालतों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह भीड़तन्त्र से नहीं डरतीं । शाहबानों प्रकरण में भी अदालत ने यह सिद्ध किया था । अब खट्टर क्या करते । उनने पंचकूला में धारा 144 लगवा दी । और इस धारा के तहत जो सावधानियाँ ज़रूरी होती हैं वो बताना बिचारे भूल गये । इसलिए लाखों की भीड़ वहाँ तीन चार दिन तक इकठ्ठी होती रही । सरकार सोती रही । मोदी जी का कोई आदेश ऊपर से आया नहीं ।

संघ ने कुछ समझाया नहीं । सबने आँख मूंद ली की होने दो जो हो रहा है । हो सकता है अदालत डर जाए । हो सकता है फैसला ही राम रहीम के पक्ष में आ जाए । बलात्कार पर तो मुलायम सिंह तक कह चुके है कि लडक़ों से ऐसी गलतियाँ हो जाती हैं । अगर लडक़ों से हो सकती है तो बिचारे बाबाओं ने क्या बिगाड़ा है ? उनसे भी कभी कभी गलतियाँ हो सकती हैं । इतनी सारी सुन्दर सुन्दर लड़कियाँ जब डेरे में हों तो बाबा का कुछ तो हक बनता ही है । और पॉवर अपने चरम पर जाकर सैक्स में ही अभिव्यक्त होती है ।


भारतीय जनता पार्टी ने 90 के दशक से जिस राजनीति को शुरू किया उसमें बाबाओं , साधुओं साध्वियों का एक ऐसा प्रपंच शुरू हुआ है जैसा पहले कभी नहीं था । संघ की दकियानूसी , पुरातनपंथी सोच के लिये ऐसी ही राजनीति की आवश्यकता थी । इसीकी आड़ में वह अपना हिन्दुत्व का साम्प्रदायिक एजेण्डा आगे बढ़ा सकती थी । कई लोगों को उत्तर प्रदेश और अब हरियाणा को देखकर लगता है कि ये सारी गलतियाँ इन प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की हैं,

मोदी जी तो आज भी अच्छे हैं । यह भ्रम अब भी बहुतों को बना हुआ है कि इन सारे प्रपंचों के बीच आपस में कोई रिश्ता नहीं है । लेकिन ये सारी चीजें जुड़ी हुई हैं । जैसे केन्द्र की सरकार सिर्फ तीन तिलंगे याने मोदी जी , अमित शाह और जेटली चला रह है । उसी तरह स्टेट के तार भी इन तीन तिगाड़ों से ही जुड़े हैं । हिन्दी की पुरानी कहावत है तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा । तो काम तो बिगड़ चुका है ।  देश भारी आर्थिक , राजनीतिक और सोंस्कृतिक संकटों से गुजर रहा है । इस संकट से उबरने के लिये जैसी प्रतिपक्ष की शक्ति की ज़रूरत है वह फिलहाल नहीं दिख रही है ।
बाबाओं की इस पतनगाथा का गायन चालू है ।

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