Sidebar Menu

मन की बात नहीं जन की बात सुनो

प्रधान सेवक मन की बात कर रहे हैं। प्रदेश के मुख्य सेवक दिल से बोल रहे हैं। दोनों की समस्या एक है कि कोई भी हिन्दुतान के जन की बात नहीं सुन रहा। मन की बात के विरूद्ध; जन की बात अब जगह जगह से उठ रही है।

.              राजेश जोशी@इसलिए

प्रधान सेवक मन की बात कर रहे हैं। प्रदेश के मुख्य सेवक दिल से बोल रहे हैं। दोनों की समस्या एक है कि कोई भी हिन्दुतान के जन की बात नहीं सुन रहा। मन की बात के विरूद्ध; जन की बात अब जगह जगह से उठ रही है। जब जब जन की बात उठती है तो मुख्य मंत्री उसे दबाने को तत्काल राष्ट्रवाद के नये नये शगूफे सामने ले आते हैं।

अब एक नया शगूफा प्रदेश के शिक्षा मंत्री ने छोड़ा है कि अब हर स्कूल में, कक्षा में जब मास्टर या मास्टरनी साहिबा हाजिरी लेंगी तो छात्रों को यस सर.....या यस मेडम की जगह, जय हिन्द बोलना होगा। उनको लगता है कि आजाद हिन्द फौज में ऐसा ही होता था इसलिए मध्यप्रदेश के स्कूलों में भी ऐसा किया जा सकता है। याने अब मध्यप्रदेश के स्कूल आजाद हिन्द फौज बन जायेंगे। इस तरह नये सुभाष पैदा होंगे। काश! इस तरह सुभाष चन्द्र बोस पैदा हो सकते तो संघ भी कुछ अच्छे और अक्लमंद देशभक्त पैदा कर पाता। लेकिन संघ में तो जयहिन्द बोला ही नहीं जाता, वहाँ तो नमस्ते सदावत्सले...होता है। पता नहीं वहाँ जय हिन्द कब बोला जायेगा?


इधर मध्यप्रदेश में जयहिन्द कहने का फरमान जारी हुआ तो उधर राजस्थान में एक दूसरा फरमान जारी हुआ है कि अब सारे स्कूलों में राष्ट्रगीत गाना अनिवार्य होगा । चाहे हमारे प्रधान सेवक की सरकार हो या प्रदेशों की सरकारें उन्होंने शायद तय कर लिया है कि उनको कोई भी ज़रूरी काम नहीं करना है। बस राष्ट्रवाद की विषैली विचारधारा को फैलाने वाले हर रोज़ नये नये शगूफे उछाल कर जनता को भ्रमित करते रहना है।  लोगों से पूछा जाना चाहिये कि क्या इसी काम के लिये उन्होंने अपनी इन सरकारों को चुना था?


विद्वान शिक्षामंत्री से पूछा जाना चाहिये कि क्या वो यह मानते हैं कि मध्यप्रदेश के स्कूलों में पढऩे वाले छात्र देशभक्त नहीं हैं ? क्या यस सर या यह मैडम बोलने से उनकी राष्ट्रभक्ति में कोई इजाफा हो जायेगा? इसी तरह राजस्थान की मुख्यमंत्री से भी पूछा जाना चाहिये कि उनके स्कूलों में अभी तक राष्ट्रगीत नहीं गाया जाता था तो क्या गाया जाता था?


मुझे लगता है कि जब जब भाजपा की सरकारों की लुटिया डूबने का खतरा बढऩे लगता है उनको राष्ट्रवाद रूपी नॉव की याद आ जाती है। कौन बताये कि अब चाहे राष्ट्रवाद की नॉव हो या हिन्दुत्व की, उसमें बहुत बड़े बड़े छेद हो चुके हैं। ये नावे अब पानी में नहीं उतर सकतीं । इनका डूबना निश्चित है। इनको अब ठीक ठीक करना भी संभव नहीं है। इनकों सिर्फ कूड़े पर फैंक देने या जला कर ठंड में हाथ सेंक लेने के अलावा, कुछ नहीं किया जा सकता। हालांकि यह भी एक सार्थक उपयोग होगा।


सुना है कि गुजरात मॉडल, मुझे क्षमा करें, गुजरात को इतनी बार मॉडल कहा जाता है कि मुझे लगने लगा है कि वह एक प्रदेश नहीं , सिर्फ एक मॉडल है। जैसे किसी घर या अब स्मार्ट सिटी के मॉडल तैयार किये जा रहे हैं। उसी तरह गुजरात भी कॉंच के बक्से में रखा मॉडल है। तो उस गुजरात माडल के कालेजों के चुनाव में भाजपा की विद्यार्थी परिषद का सूपड़ा साफ हो गया है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के नगर निगम चुनाव में एक जगह ईवीएम की गड़बड़ी के खिलाफ किन्नरों ने कपड़े उतार कर हंगामा खड़ा कर दिया है।


इन संकेतों को समझने की ज़रूरत है। जनता के ये हौंसले राष्ट्रवाद के नकली और बेहूदे शगूफों से नहीं टाले जायेंगे। अब मन की बात बन्द करो और हिन्दुस्तान के जन की आवाज़ सुनो। अब ये डेरे मंजिल पर ही डाले जायेंगे।

Leave a Comment