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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतिरोध धार्मिक ग्रंथों के काउंटर नैरेटिव से ही संभव  

इलाहाबाद। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं। हमें उसकी जड़ों पर चोट करना होगा। राष्ट्रवादी ताकतें सांस्कृतिक क्षेत्र से ही नहीं बल्कि राजनीति और अर्थशास्त्र, हर जगह अपनी जड़ें जमा रहा है। उपरोक्त बातें वरिष्ठ कवि हरीश चंद्र पाण्डे ने होगन हाल, सेंट...

इलाहाबाद। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं। हमें उसकी जड़ों पर चोट करना होगा। राष्ट्रवादी ताकतें सांस्कृतिक क्षेत्र से ही नहीं बल्कि राजनीति और अर्थशास्त्र, हर जगह अपनी जड़ें जमा रहा है। उपरोक्त बातें वरिष्ठ कवि हरीश चंद्र पाण्डे ने होगन हाल, सेंट जोसेफ स्कूल, इलाहाबाद में जनवादी लेखक संघ के तत्वावधान में आयोजित, ‘दूधनाथ सिंह स्मृति व्याख्यानमाला-2019’ में अपना अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कहीं।

 प्रो.राजेन्द्र कुमार ने कहा कि आज बुद्धिजिवियों पर जितने खतरे मडरा रहे हैं हमारी जनता उतनी ही सम्मोहित है। वो उन पुस्तकों और लेखकों के नाम तक नहीं जानती। हम जानते थे कि जनता इतिहास निर्मात्री होती है लेकिन इस जनता को समझना मुश्किल है। उन्हें पता नहीं कि उन्हें किस अंधेरे में ढकेला जा रहा है। आज के समय में बहुमतवाद के खतरे हैं लेकिन हमें अपनी बात सौ तरीकों से कहने की जरूरत है। दूधनाथ जी ने समय के साथ अपने आप को बदला, आज हमें भी नए तरीके से सोचना होगा।

 जलेस के राज्य सचिव नलिन रंजन सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जब ये कहा जा रहा है कि हमने दुनिया को बुद्ध दिया तो सवाल उठता है कि बुद्ध की परंपरा का पालन कितना किया गया? 
  महाकवि निराला के प्रपौत्र कवि विवेक निराला ने कहा कि विभिन्न सांस्कृतिक चेतना वाले राष्ट्र में एक विचार, एक धर्म और एक धारणा को थोपने की राजनीति और आकांक्षा है जो असंगत है। उन्होंने दूधनाथ सिंह को कोट करते हुए कहा कि ‘किताबें शक पैदा करती हैं’, आप के अंदर शक पैदा करती हैं। आपकी समझ के जाले को साफ करती हैं, आज सत्ता को सबसे ज्यादा दिक्कत किताबों और बुद्धिजीवियों से ही है। 

 दूधनाथ सिंह स्मृति व्याख्यानमाला में अपना व्याख्यान देते हुए वीरेंद्र यादव ने कहा कि प्रतिरोध की देशज परंपराओं से जुड़ कर ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतिरोध हो सकता है। धार्मिक ग्रंथों का काउंटर नैरेटिव करने के लिए रामचरितमानस जैसे धार्मिक ग्रंथों का उत्तरपाठ करना चाहिए। वर्चस्व अंतर्विरोध की परंपरा हमारे समाज में संख्या में कम होने के बावजूद असर में है। उन्होंने दूधनाथ जी को कोट करते हुए कहा कि ब्राह्मणवाद ही इस देश की प्रगति में बाधक है। यह एक उपनिवेशवाद है, आज सावरकर को भारत रत्न दिया जा रहा है कि गाँधी के समन्वयवाद से इतर एक अन्य हिंदुत्व को लाया जाय। वो एक वर्चस्ववादी राष्ट्रवाद को स्थापित कर सकें। 
 इससे पहले आए हुए अथितियों का स्वागत मनोज सिंह ने किया। इस मौके पर  विभु प्रकाश सिंह के संपादन में साहित्य भण्डार द्वारा प्रकाशित दूधनाथ सिंह को लिखे पत्रों का संग्रह, ‘प्रिय दूधनाथ’ का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन सुधीर सिंह ने और मंच संचालन बसंत त्रिपाठी ने किया। 

 कार्यक्रम में अनिता गोपेश, प्रो संतोष भदौरिया,के.के. पाण्डे,जे पी सिंह, हरिश्चंद्र द्विवेदी, सूर्यनारायण, धनंजय चोपडा, सीमा आजाद, प्रवीण शेखर, संध्या नवोदिता, सुबोध शुक्ला, अजित प्रियदर्शी, विभु प्रकाश सिंह, विंध्याचल यादव, प्रकर्ष मालवीय, आनन्द मालवीय, अविनाश मिश्र, अखिल विकल्प, गायत्री गांगुली, संध्या नवोदिता, राजेश गर्ग, दिनेश कुमार एवं दूधनाथ जी की बेटी अनुपमा, पुत्र अनिमेष सहित बड़ी संख्या में लोग  उपस्थित रहे।

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