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लोकजतन सम्मान 2019 : प्रतिबद्ध पत्रकार के साथ मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत है डॉ.राम विद्रोही 

समतामूलक समाज, प्रजातांत्रिक धर्मनिरपेक्ष मूल्याधारित राष्ट्र के निर्माण की आजादी आन्दोलन की उत्कृष्ट भावना को धरातलीय सत्य मे परिवर्तित करने का संकल्प रखने वाली धारा के एक सिपाही है राम विद्रोही। 

समतामूलक समाज, प्रजातांत्रिक धर्मनिरपेक्ष मूल्याधारित राष्ट्र के निर्माण की आजादी आन्दोलन की उत्कृष्ट भावना को धरातलीय सत्य मे परिवर्तित करने का संकल्प रखने वाली धारा के एक सिपाही है राम विद्रोही। 

आम लोग (और मै भी)इन्हें विद्रोही जी के नाम से ही ज्यादा जानते थे और जानते है। मुझे सहित अधिकांश लोग ना तो उनकी जाति के बारे में जानते और ना ही विद्रोही जी ने कभी इसे बताने और जताने का जतन किया। लोग उन्हें एक बेहतरीन इंसान व धारदार पत्रकार और प्रतिबद्ध कार्यकर्ता के रूप में ही जानते हैं। वे उस पीढी के अग्रदूत रहे जो पीढ़ी सामन्ती उत्पीडऩ और जकड़ तथा पूंजीवादी निर्मम लूट के खिलाफ सारे खतरे उठाकर भी झंडा बुलंद रखने की हिम्मत रखती थी। इसलिये उनकी समकालीन पीढ़ी म़े विभिन्न क्षेत्रों में ऐसी तमाम विलक्षण प्रतिभायें उभरी जो ग्वालियर की पहचान बनी। इन सब के भी राम विद्रोही अलग ही रखते है -क्योंकि वे आज भी अपनी राह पर आदिगत से अगे बढ रहे है।

छात्र अन्दोलन के सक्रिय कार्यकर्ता के नाते पत्रकार जगत से सम्पर्क स्वाभविक था। लेकिन रामविद्रोही के रुप में जिन पत्रकार को मैनें जाना वे मुझे पत्रकार से कही ज्यादा ऐसे एक्टीविस्ट मह्सूस हुए जिनके जायज राष्ट्रीय सरोकार थे लेकिन ग्वालियर के प्रति उनकी विशेष भावना थी और है। उस दौर में आक्रामक शैली में मुद्दों को उठाने, संघर्ष आन्दोलन गतिविधि करने के बाद उसकी खबर बना कर (वह भी कार्बन लगा कर हाथ से लिखी) सभी अखबारों में लगना छात्र आन्दोलन के ऐक्टिविस्टस की आम दिनचर्या का हिस्सा थी। अमूमन सभी धाराओं के छात्र नेता ( जिसमें हम लोग शामिल थे )सबने आखिरी में (देर रात) विद्रोही जी के पास पहुचना पसंद करते थे। क्योंकि विद्रोही जी को खबर देने के बाद उनसे चर्चा करना खुद विद्रोही जी भी इसके लिये प्रेरित करते, बेेहद उपयोगी व शिक्षाप्रद होता। यह सुअवसर मेरे लिए प्रेरणा का कारण बना और इसलिए विद्रोही जी के रूप मैंने जिस पत्रकार को जाना वह राजनैतिक रूप से जागरुक व प्रतिबद्ध पत्रकार के साथ मानवीय मुल्यों से ओतप्रोत विद्रोही जी थे। उसके बाद से अभी तक विद्रोही जी मेरे लिये आदरणीय साथी के रुप में है और रहेगें भाव बनने के लिये सैकडों घटनाओं किस्सो का योगदान है लेकिन कुछ घटनाओं का उसने विशेष महत्व है।

ग्वालियर में पेयजल संकट और उसका स्थायी समाधान एक बड़ा प्रश्न था और आज भी है 1980 के आस पास ग्वालियर के छात्र संगठनों (एसएफआई की केन्द्रीय भुमिका रही थी) ने सयुक्त रुप से ग्वालियर के पेयजल संकट हल करने के लिये बड़ा आन्दोलन किया जिसमें ग्वालियर बन्द भी कराया गया। विद्रोही जी ने इस प्रश्न पर कहा कि यदि (जोरा) बांध का पानी तिघरा बाध में डाल दिया जाए। तो ग्वालियर का पेयजल संकट हल हो सकता है इस प्रश्न पर मंथन हुआ और विद्रोही जी का सुझाव पर एक व्यापक मंच बना कर पगरा से तिघरा मोती झील कि पदयात्रा की योजना बनी। उसे लागू भी किया गया और सांकेतिक रुप से पगरा का मटकियों में लाया गया पानी तिघरा और मोती झील में डाला गया। इस पदयात्रा में विद्रोही जी के साथ में भी शामिल था।

दूसरी घटना मौ (जिला भिंड) के साम्प्रदायिक घटना से संबंधित है। मामला संवेदनशील चिंताजनक तो था ही त्वरित हस्तक्षेप की भी मांग करता था। विद्रोही जी ने फिर पहल की व्यापक मंच बनाया और सांप्रदायिकता के विरुद्ध ग्वालियर से मौ तक पदयात्रा प्रारंभ हो गई। समूची पदयात्रा में पर्चा वितरण नुक्कड़ सभाओं के साथ कुछ आम सभाएं भी की गई। इस पदयात्रा में भी मुझे उनके साथ चलने का अवसर मिला। इस पदयात्रा ने सांप्रदायिक जहर फैलाने की साजिश को असफल करने में बड़ी भूमिका निभाई।

ग्वालियर मैं उस समय ‘महल- मिल’ के समर्थन व विरोध में राजनीति विभाजित थी। हम वामपंथी तो दोनों के खिलाफ मैदान में थे ही । विद्रोही जी भी इस धारा को मजबूत करने, प्रभावी बनाने में अपनी पूरी भूमिका निभाते रहे यही कारण है कि धीरे-धीरे हम और विद्रोही जी इतने घुल मिल गए की लगभग हर प्रश्न पर एक जैसी राय, एक जैसी कार्यवाही का विचार की मजबूत आधारशिला बन गई। वह आज भी जारी है। 

आज जाति और धर्म के आधार पर पहचान और इसके आधार पर टकराव पूर्ण ध्रुवीकरण की राजनीति परवान पर है । ऐसे में इसके तार्किक विरोध और मुकम्मल मुकाबले की जरूरत है। इस संघर्ष में व्यवसायिक कलम घीसू पत्रकार नहीं बल्कि ऐसे प्रतिबद्ध कलम के धनी पत्रकार चाहिए जो मैदान में भी उसी हिम्मत के साथ जनता के साथ खड़े रह सके। आज के घटाटॉप अंधियारे को चीरने के लिए राम विद्रोही एक प्रकाश स्तंभ के रूप में हमारे सामने है। राम विद्रोही और उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता की धारा को ना सिर्फ सलाम किया जाना चाहिए बल्कि उसे आगे बढ़ाने का संकल्प भी लिया जाना चाहिए।

प्रमोद प्रधान - ( लेखक -सीआईटीयू के राज्य महासचिव है।)

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