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माकपा का राज्य सम्मेलन

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का तीन दिवसीय राज्य सम्मेलन 16 दिसंबर से मुरेना जिले की सबलगढ़ तहसील के मुख्यालय में होने जा रहा है। राजनीतिक पार्टियों के चुनाव होना कोई नई बात नहीं है। मगर पूंजीवादी दलों और क्रांतिकारी पार्टी के सम्मेलन में बुनियादी अंतर होता है।


मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का तीन दिवसीय राज्य सम्मेलन 16 दिसंबर से मुरेना जिले की सबलगढ़ तहसील के मुख्यालय में होने जा रहा है। राजनीतिक पार्टियों के चुनाव होना कोई नई बात नहीं है। मगर पूंजीवादी दलों और क्रांतिकारी पार्टी के सम्मेलन में बुनियादी अंतर होता है।


बुर्जुआ दलों का सम्मेलन आमतौर पर सिर्फ चुनावी रणनीति बनाने, किसी नेता को उपर उठाने या किसी नेता को गिराने के लिए होता है, जनता के बुनियादी सवालों पर शायद ही इन सम्मेलनों में चर्चा होती हो। मगर क्रांतिकारी पार्टी के सम्मेलन का एक बुनियादी मकसद है, क्योंकि पार्टी का एक निर्धारित लक्ष्य होता है।


प्रश्र यही है कि यह लक्ष्य क्या है? मोटे तौर कहें तो कम्युनिस्टों का घोषित लक्ष्य 1848 से ही कम्युनिस्ट घोषणा पत्र के रूप में दुनियां के सामने है। यह लक्ष्य है

समाजवाद। शोषणविहीन समाज की स्थापना। इस लक्ष्य को हांसिल करने के लिए दुनियां भर के कम्युनिस्ट काम करते हैं, मगर दुनियां भर में परिस्थितियां एक सी नहीं है। अलग अलग समाजों में विकास के चरण अलग अलग है। इसलिए हर कम्युनिस्ट पार्टी अपने देश की ठोस परिस्थितियों का माक्र्सवादी ढंग से विश्लेषण करती है। उस आधार पर तय करती है कि वहां क्रांति की अवस्था क्या है।


इस आधार हर कम्युनिस्ट पार्टी अपने अपने देश में समाज के विकास की अवस्था के आधार पर क्रांति का रास्ता तय करती है। भारत में भी माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने इस रास्ते का निर्धारण किया है। क्रांति की मंजिल निर्धारित की है। हम भारत में जनता की जनवादी क्रांति करना चाहते हैं।
क्रांति की मंजिल तक पहुंचने के लिए कई उतार चढ़ावों और टेड़े मेड़े रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। यह रास्ते पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन-पार्टी कांग्रेस में तय होते हैं। राजनीतिक कार्यनीतिक लाईन के रूप में। राज्यों सम्मेलनों में अपने अपने राज्य की परिस्थितयों के अनुरूप इस लाईन पर अमल और अमल की समीक्षा के बारे में चर्चा होती है।


वर्गीय संतुलन को मजदूर वर्ग और मेहनतकश वर्गों के पक्ष में बदलने के प्रयास होते हैं। आगे बढऩे और चुनौतियों का मुकाबला करने की स्पष्ट नीति तैयार होती है।
मध्यप्रदेश में माकपा राज्य सम्मेलन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रदेश दोहरे हमले का शिकार है। एक ओर संघ परिवार ने इसे हिन्दुत्व का प्रयोगशाला बना रखा है। प्रशासन और सरकार पूरी तरह संघ के नियंत्रण और निर्देशन में काम करती है। दूसरी ओर नव उदारीकरण की नीतियों को तेजी से लागू किया जा रहा है। फिर उदारीकरण जहां भी आता है, भ्रष्टाचार की बाढ़ लेकर जाता है, रोजगार को खतम करता है, प्राकृतिक संसाधनों को कारपोरेट और माफियाओं के हवाले करता है। जनता के मुंह का निवाला छीनता है।


मध्यप्रदेश की जमीनी हकीकत में यह तस्वीर साफ दिखाई देती है। यह सही है कि माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी प्रदेश में बड़ी ताकत नहीं है। मगर यह भी सत्य है कि जनता ताकत के पीछे नहीं मुद्दों के पीछे लामबद्व होती हैं। सही मुद्दों को गंभीरता के साथ उठाने, जनता के बहुमत हिस्सों तक लेजाने,  उन्हें संघर्ष में शामिल करने और संघर्ष को निर्णायक व नतीजापरक स्थिति तक पहुंचाने से प्रदेश की राजनीतिक तस्वीर बदल सकती है। इस मायने में छोटी पार्टी के पास बड़ी छलांग लगाने के अवसर होते हैं।


सबलगढ़ में होने वाले राज्य सम्मेलन में पार्टी को यही निर्णय लेना है कि वो तमाम सारे तबके जो भाजपा सरकार की नीतियों से निराश और नाराज होकर उससे अलग हो रहे हैं, उन तबकों को वामपंथी आंदोलन का हिस्सा कैसे बनाया जाये। जनता के साथ पार्टी के रिश्तों को और अधिक मजबूत कैसे किया जाये।


पिछले तीन सालों में प्रदेश की जनता ने अपने अनुभवों से बहुत कुछ सीखा है। अपनी फसल का वाजिब दाम मांगने वाले किसानों से चर्चा कर उन्हें दिलाने की बजाय, सरकार को उन पर गोली चलाते हुए देखा है। दमन का दौर अभी भी जारी है। गुजरात में भाजपा की डूबती नैया पार लगाने के लिए नर्मदा घाटी के चालीस हजार परिवारों को बिना पुनर्वास बेघर,बेदर करते हुए देखा है। व्यापमं घोटाले में अपराधियों को बचाने और सबूतों को मिटाने के लिए 47 संदिग्ध मौतों के हम सब साक्षी बने हैं। मनुवादी नीतियों को लागू कर दलितों, आदिवासियों और महिलाओं पर लगातार उत्पीडऩ की बढ़ती घटनाओं के हम गवाह बने हैं। फिर विचाराधीन कैदियों को जेल से निकाल कर उनकी बेदर्द हत्या भी हम सबने देखी है।


माकपा राज्य सम्मेलन में प्रस्तुत की जाने वाली राजनीतिक संगठनिक रिपोर्ट में इन सब मुद्दों का गहराई से विश्लेषण होगा। गंभीर चर्चा और विचार विमर्श के बाद इन चुनौतियों का मुकाबला करने की कारगर नीति बनेगी और साथ ही इन चुनौतियों से लडऩे वाले संगठन को विस्तार और आकार देने पर भी चर्चा होगी। क्रांतिकारी संगठन जनता को उपदेश नहीं देते, वे जनता से सीखते है। तीन दिनों तक सम्मेलन में चलने वाला विमर्श प्रदेश भर से आए प्रतिनिधियों का जनता और जनांदोलनों के अपने अनुभवों को साझा करने भविष्य के रास्ते तय करने का सम्मेलन है।


जाहिर तौर पर यह सम्मेलन बुर्जुआ दलों के सम्मेलनों से अलग तरह का सम्मेलन है।

लोकजतन की शुभकामनायें।

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