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अनैतिक, अनिर्वाचित ही नहीं असंवैधानिक भी है शिव-राज  

हर संभव तिकड़म और चालबाजियाँ, विधायकों के अपहरण और आखिर में सुप्रीम कोर्ट से शक्तिपरीक्षण का आदेश लेने के बाद मध्यप्रदेश के नवम्बर 2018 के जनादेश की कपालक्रिया सम्पन्न हो की जा चुकी है।

मध्यप्रदेश में भी कोरोना संक्रमण से उपजी कोविड-19 की बीमारी के अनेक पीडि़त सामने आ चुके हैं। निजी अस्पतालों की  भव्य से लेकर छोटी बड़ी तक सारी दुकाने ताला बंद किये बैठी हैं।  उमड़ती भीड़ की वजह से सरकारी अस्पतालो का रहा सहा  सिस्टम भी ध्वस्त होने की कगार पर है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक लॉकडाउन का एक सप्ताह पूरा हो चुका है।  आधी से ज्यादा आबादी ऐसी भूख की चपेट में हैं जिससे बाहर निकलने की हालफिलहाल कोई उम्मीद बर नहीं आती, कोई सूरत नजर नहीं आती....और  ठीक यही वक्त है जब मध्यप्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। 

हर संभव तिकड़म और चालबाजियाँ, विधायकों के अपहरण और आखिर में सुप्रीम कोर्ट से शक्तिपरीक्षण का आदेश लेने के बाद मध्यप्रदेश के नवम्बर 2018 के जनादेश की कपालक्रिया सम्पन्न हो की जा चुकी है। कोरोना लॉकडाउन की आहट के बीच जिस दिन शक्ति परीक्षण होना था उसी 20 मार्च को दिन के  12 बजे मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया। नए मुख्यमंत्री के रूप में विधानसभा चुनावों में पराजित हुयी सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शपथ लेने में 81 घंटे लग गए। उन्हें शपथ लिए भी 10 दिन होने को हैं - न कोई स्वास्थ्य मंत्री हैं न कोई नागरिक आपूर्ति मंत्री हैं न कोई वित्त मंत्री है; जो भी हैं वे अकेले हैं। और वे कितने कमेरे और कार्यकुशल हैं,  मध्यप्रदेश की जनता इसकी भुक्तभोगी है। 

मुख्यमंत्री बनते ही पहला काम उन्होंने छोटे सिंधिया - जिसे उन्होंने अत्यंत प्यार से विभीषण कहकर पुकारा था - पर लगे आर्थिक अपराधों के मुकद्दमे वापस लेने का किया है।  इसके बाद उन चल रही फाइलों की तलाश शुरू की गयी है जिनमे उनकी सरकार के समय हुए घोटालों के बारे में कुछ शुरुआत हुयी थी।  तीसरा काम कमलनाथ सरकार के दौरान हुयी नियुक्तियों को रद्द करने का हुआ है।  ठीक वही नहीं हुआ जिसकी इस वक़्त सबसे ज्यादा जरूरत थी ; कोरोना  से बचाव के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को चाकचौबंद कारण और लॉकडाउन के चलते भूख और बदहाली से निबटने के उपाय तलाशना, कदम उठाना।  

इस नए मुख्यमंत्री ने जब विधानसभा में अपना बहुमत साबित किया था उस वक्त भी वे और उनकी भाजपा सदन में अल्पमत में थे।  सिंधिया के गणों के इस्तीफे मंजूर हो जाने के बाद कुल 230 सदस्यों की विधानसभा के आधे से कम सदस्य ही उनके साथ थे। सीपीआई(एम) की मध्यप्रदेश राज्य समिति ने सही मांग की थी कि 'सीधे सीधे खरीद फरोख्त से किसी सरकार का गठन  करने की बजाय राज्यपाल को विधानसभा भंग कर नए चुनाव करवाकर निर्णय लेने का अधिकार जनता के हाथ में छोड़ देना चाहिए। मगर विधानसभा में प्रत्यक्ष रूप से अल्पमत में होने के बावजूद भाजपा ने सत्ता हथिया ली। प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया के अनुसार राजनीतिक घटनाक्रम को सत्ता की हवस में जनादेश के साथ की गयी धोखाधड़ी ही नहीं है। देश के संविधान, लोकतंत्र संसदीय परम्पराओं और मर्यादाओं का भी उल्लंघन है। उनके मुताबिक भारत के संविधान के अनुच्छेद 163 (1) के अनुसार ''जिन बातों में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने कृत्यों या उनमें से किसी को अपने विवेकानुसार करे उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद होगी जिसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा ...यह भी कि  'मुख्यसचिव की नियुक्ति कैबिनेट की सिफारिश के बाद की जाएगी। वर्तमान में मध्यप्रदेश में मंत्री परिषद् ही नहीं है।  ऐसे में यह प्रश्न उठ सकता है कि क्या राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं।   कुलमिलाकर यह कि मध्यप्रदेश में इस समय एक अनैतिक, अनिर्वाचित सरकार ही नहीं है एक असंवैधानिक हुकूमत भी है। बहरहाल संविधान, लोकतन्त्र, संसदीय प्रणाली की परम्पराओं आदि इत्यादि के सम्मान या पालन की उम्मीद भाजपा से करना कुछ ज्यादा ही है।  

जैसी कि आशंका थी कि इस तरह छल और धनबल से पलटा गया जनादेश प्रदेश  की जनता पर और बोझ डालेगा, साम्प्रदायिक सौहाद्र्र को बिगाडऩे वाली ताकतें वातावरण विषाक्त कर ध्रुवीकरण की साजिशें तेज करेंगी। ठीक यही काम है जो इस समय पूरी तेजी के साथ किया जा रहा है।  लॉकडाउन में त्राहि त्राहि कर रही जनता तक जमस, एसएफआई, सीटू, किसान सभा जैसे जनसंगठन और कुछ सामाजिक संगठन अपनी सीमित शक्ति भर मदद लेकर पहुँच रहे हैं।  सरकारी मदद या तो जा ही नहीं रही है, यदि कुछ इलाकों में जा रही है तो आरएसएस और उसके पिछलग्गू संगठनों के जरिये, साम्प्रदायिक नजरिये के साथ निजाजमुद्दीन के तब्लीगी मरकज की घटना के बहाने नफरती अफवाहों की अतिरिक्त संक्रामक खेप के साथ पहुंचाई जा रही है।  देश जब सबसे मुश्किल आपदा और अब तक के इतिहास के सबसे लम्बे और अनिश्चित लॉक डाउन से गुजर रहा है ठीक उसी बीच साम्प्रदायिक विद्वेष और तनाव बढ़ाकर भाजपा और उसका सरपरस्त आरएसएस उसे एक और आफत में उलझाने और एक नयी आग सुलगाने की कूट रचना रच रहा है। 

देश में जघन्यता और मूर्खता के इस वायरस के खिलाफ तार्किक और समझदार आवाजें उठ रही हैं।  इन्हे थोड़ी और जोर से उठाने की जरूरत है। थाली, ताली, घण्टा, घंटी, लोटा बाल्टी बजाने से कोरोना का तो कुछ नहीं बिगड़ता मगर मिलकर ललकारने से मोरोना का संक्रमण जरूर कम हो जाता है।     

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