(24 जुलाई को भोपाल और रायपुर में एक साथ हुए सम्मान समारोह में वरिष्ठ और निर्भीक पत्रकार कमल शुक्ला को लोकजतन सम्मान से अभिनन्दित किया गया। इस अवसर पर उनके द्वारा दिया गया संबोधन अविकल रूप से प्रस्तुत है। )
सबसे पहले मैं लोकजतन प्रकाशन का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ तथा उनको धन्यवाद देना चाहता हूँ, उन्होंने मुझे इस सम्मान के लायक समझा।
सच के लिए खतरे उन सभी ने उठाये हैं जो सच को सामने लाना चाहते हैं, मैं कोई नया नहीं हूॅं जब भी आप सच को सामने लाने की कोशिश करेगे आपके उपर हमले होंगे। आपको प्रताड़ित किया जायेगा आपको बदनाम किया जायेगा ये सारी चीज मेरे साथ घट चुकी है। और अभी भी घट रही हैं। पिछले 15 सालों से यहां छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी का शासन रहा उस समय भी मुझे नक्सली, देशद्रोही इस तरह की उपाधि मिली हुई थी। और अभी भी जब ढेड़ वर्ष से काॅंग्रेस से सरकार है तब भी यह उपाधि ज्यों की त्यों मेरे उपर बरकरार है। जब भी किसी के खिलाफ खबर लिखता हूं तो यह तमगा मेरे उपर लगा दिया जाता है। एक तरह से यह आज सम्मान का विषय हो चुका है।
तो साथियो बस्तर में 32 साल रहते तक मैंने जो सच देखे हैं उसके बहुत सारे पहलू हैं, यह सच का दस्तावेज में एक-एक पन्ना सोध का विषय है। यह केवल पत्रकारिता का विषय नहीं है। इसमें शोध छात्रों की जरूरत है। डाॅक्यूमेन्ट्री बनाने वालों की जरूरत है, इसमें कहानी लिखने वाले, कविता लिखने वालों की जरूरत है। बस्तर में रोज संविधान की हत्या होती है, रोज लोकतंत्र की हत्या होती हैं इस समय भी जब हम और आप बैठकर बात कर रहे हैं इस समय भी बस्तर के जंगलों में सैकड़ो हजारों की संख्या में दोनो तरफ बंदूकधारी घूम रहे हैं और वे कब किस गांव में हमला कर दें यह आप केवल कल्पना कर सकते हैं कि वहां क्या घट रहा होगा।
सलवा जुडूम के दौर में आदिवासियों के 700 से ज्यादा आदिवासियों के गांव जला दिये गये इसकी पुष्टि खुद ग्रामीण विकास मंत्रालय ने लोकसभाा में की । सलवा जुडूम को आर्थिक रूप सपोर्ट करने को लेकर आपको याद होगा कि एस्सार और टाटा का नाम खुलकर सामने आया। तो आज मैं यह कहना चाहता हूं कि सलवा जुडूम का सच उस दौर में जब पूरी तरह से बस्तर में पूरी तरह से तानाशाही का शासन था लोकतंत्र का नामोनिशान नहीं था , तो उस दौर में जिन पत्रकारों ने सच्चाई को सामने लाने की कोशिश की उन सबको मेरे जैसे या मेरे से ज्यादा भुगतना पड़ा होगा और ऐसा हुआ है। लाखों की संख्या में आदिवासियों को भगाया गया भैड़ बकरियों की तरह, उनकी जमीन उनके खेत उनके पशु सबको छोड़कर उन्हें भागना पड़ा उनके गांव जला दिये गये।
बस्तर के गाँव वालों के पास केवल दो ही रास्ते थे दो ही ऑप्शन थे कि या तो इधर आओ या उधर जाओ। मजबूरन उन्होंने पड़ोसी राज्यों को अपना शरण स्थली बनाया। इस शरण स्थली को बनाने की प्रक्रिया के दौरान उनके साथ जो अन्याय हुआ, अत्याचार हुआ उसको भी देश और दुनिया के सामने लाने का काम मेरे जैसे पत्रकारों ने किया। अब उनको तमाम तरह की प्रताड़ना से गुजरना पड़ा।
बस्तर मे जो सच का दस्तावेज है उसका एक एक पन्ना शोध का विषय है। मैं देश भर के विश्व भर के शोधार्थी छात्रों को आमंत्रित कर रहा हूं कि वे आयें और शोध करें। अलग-अलग पन्ने हैं। आपके पास इतना सारा काम है कि आप खुद तय नहीं कर पायेंगे कि इसमें से किसको जल्दी करें किसको बाद में करें। केन्द्र और राज्य के शासकीय योजनाओं को लेकर यहां जो लूट है आदिवासियों के नाम से फण्ड लाकर उसको किस तरह से बंदरबांट किया जाता है, कैसे सदियों से गैर आदिवासी इनके हक और अधिकार से वंचित कर रहे हैं और बस्तर की राजनीति में आज कैसे आदिवासी ही हाशिये पर छोड़ दिये गये हैं।
केवल नाममात्र के लिए जो आरक्षण के आधार पर प्रतिनिधि का चुनाव होना है। उसमें चेहरे चुन लिये जाते हैं मगर उस चेहरे को पूरी तरह से नियंत्रित रखा जाता है उसकी नकेल गैर आदिवासियों के हाथ में होती है, जो वहां के बडे़ शोषक हैं इस पूरी सच्चाई को मेने 30-32 साल की पत्रकारिता में कई बार सामने लाने की कोशिश की है। आज बस्तर जिन दो राजनीतिक पार्टियों के बीच फंसी पड़ी है उनमे एक सत्ता पक्ष है और एक विपक्ष। कभी भाजपा आ जाती है कभी काॅंग्रेस आ जाती है। यहां दोनों के लोग बस्तर के आदिवासियों के शोषण के मुद्दे पर और विकास के नाम पर बस्तर के जल, जंगल जमीन के दोहन के मुद्दे पर एक जैसे हो जाते हैं। अक्सर ये सारे लोग एक ही घर के होते हैं। एक भाई काॅंग्रेस के नेता है एक भाई बीजेपी के नेता हैं।
इसी दौर में हमने देखा कि कैसे ब्रह्रमदेव शर्मा का आंदोलन कुचला गया। कैसे हिमांशु कुमार को दंतेबाड़ा से उनके आश्रम पर बुलडोजर चलाकर और उन पर तमाम बड़े बड़े आरोप लगाकर उनको बस्तर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। मेधा पाटकर जैसी हस्तियों को बस्तर में घुसने से रोकने के लिए बीजेपी और काॅंग्रेस के कार्यकर्ता एक हो जाते हैं। यह भी मेने देखा। ब्रह्रमदेव शर्मा को नंगा करने की घटना जो हुई बस्तर में उसे मैंने अपनी आंखों से देखा वहां बीजेपी और काॅंग्रेस एक साथ आयी। तो बस्तर की राजनीति पुरी तरह से गैर आदिवासी के हाथों में और आदिवासी एक हाशिये पर ।
वहां की तमाम योजनाओं का फायदा गैर आदिवासी ले रहे हैं यह एक अलग मुद्दा है। वहां काॅरपोरेट लूट का जो मुद्दा है वह सबसे बड़ा मुद्दा हैं जिस पर पूरी दुनिया का ध्यान मैंने पत्रकारिता के माध्यम से खींचने की कोशिश किया। इस मुद्दे के साथ जब मैंने अमेरिका के विश्वविद्यालय में कार्यक्रम हुए तो वहां भी मैंने इस लूट को विस्तार से बताने की कोशिश की। कैसे जल, जंगल, जमीन छीनने के लिए माओवाद का हौआ बैठा के रखा गया है।
और अब इसमें देखिये जहां-जहां प्राईवेट सेक्टर को लीज दिया जाना है या लीज लीज दे चुके हैं चाहे निक्को हो, एस्सार हो, अलग कोई कंपनी है, टाटा है, ऐसी जगहों में पैरामिलिट्री फोर्स की जाल बिझाये गये हैं। रावघाट माईनिंग के लिए उसके चारो ओर 11-12 पैरामिलिट्री फोर्स के कैंप बनाये गये हैं। कई पैरामिलिट्री फोर्स तो इलीगल माईनिंग के लिए बनाये गये हैं। जहां माईनिंग लीज स्वीकृत तक नहीं हुआ है, वहां भी।
यहां के जवान और आदिवासियों के बीच चल रहे संघर्ष में जवान मारे जा रहे है और आदिवासी भी मारे जा रहे हैं। इस सच्चाई को जब आप सामने लाने की कोशिश करेंगे तो आपके उपर हमले होंगे । साथियों बस्तर भी कई प्रकार के बस्तर हैं, वहां केवल माओवादी नहीं हैं। वहां पर्यटन का मुद्दा भी हो सकता है। स्वास्थ्य, पानी, पेयजल, स्कूल यह सब ऐसे मुद्दे हैं जिसको लेकर पिछले तीस चालीस सालों से माओवाद को आधार बनाकर माओवाद का बहाना बनाकर सरकार जो है पीछे हटती रही है। जबकि इन मुद्दों पर माओवादियों के साथ कोई बहस नहीं है, कोई झगड़ा नहीं है। फिर भी इन मुद्दों से सरकार अपने आपको किनारा करके रखती है।
बस्तर के अधिकांश गांवों में स्वास्थ्य केन्द्र और स्कूल तो सलवा जुडूम में खत्म कर दिये हैं। वहां के गांव के लोग भी चाहते हैं कि वहां स्कूल वापिस खुले, स्वास्थ्य केन्द्र वापस खुले, हालांकि अभी जो सरकार आई है उसने इस दिशा में कोई काम शुरू किया है मै उम्मीद करता हूॅे कि उसमें ईमानदार रहेंगें और उसको आगे बढाएगें ।
बस्तर की बहुत बडी सच्चाई वहां की सांस्कृतिक लूट की है। बस्तर के आदिवासियों की सांस्कृतिक परंपरा काफी समृद्व है कई हजार साल के निशान आज भी वहां मौजूद हैं, जगह जगह मिलते है । उन्होने बहुत सारे वंशोे के कार्यकाल देखे है । इन सारे कार्यकाल में इन सारी लडाइयों के बावजूद आज भी बस्तर के आदिवासी अपना सांस्कृतिक वजूद आज भी जिंदा रखे है। उस वजूद के साथ भी आज बहुत सारे लेखक और बहुत सारे पत्रकार खिलवाड करते रहते है । बाक़ायदा इसके पीछे संगठित रूप से संघ के कार्यकर्ता लगे हुए है जो कोशिश करते रहते है कि बस्तर के आदिवासियों को हिेंदूू साबित किया जाए। बस्तर के सांस्कृतिक जीवन में एक हिंदुवाद घोला जाए । यह एक बडा षडयंत्र है इसके खिलाफ भी अगर आप बोलेंगेे तो आपको इनका प्रकोप झेलना पडेगा ।
बस्तर के आदिवासी दो पाटों की बीच पिस रहे है ये बात आपने कई खबरों में पढी होंगी , मैं वहां साक्षात देखता हूॅं । जिन गांवो मे माओवादियों का प्रभाव है उन गांवो के आदिवासी उनकी इच्छा के बगैर कोई दूसरा काम नही कर सकते। इस बात को समझने के लिए पुलिस भी तैयार नही है और पुलिस उन गांवो के एक एक आदमी को माओवादी समझती है,इसलिए निर्ममता से उनके उपर गोली चला देेती है। एसे कई मुठभेड हुुए है जिनकी कहानियां का मैने ही नही बल्कि कई पत्रकारों ने समय समय पर भेद खोला है । आश्चर्य की बात है कि इन फर्जी मुटभेडों में मारे जाने वाले आदिवासियों के नाम पहले से कोई इनाम घोषित करके नही रखती है लेकिन जब मुठभेड में मारे जाते है या गिरफ्तार होते है या फिर मारे जाते है तब उन पर इनाम की घोषणा कर विज्ञप्ति जारी की जाती है ।
साथियों ,जब कोरोना की इस महामारी में जब सरकार को जब हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था देखने की जरूरत है उस पर ध्यान लगाने की जरूरत है तब हमारे देश का प्रधान यहां अयोध्या में मंदिर की पूजा में व्यस्त है और उसकी आलोचना करने वाले विपक्षी कांग्रेस खुद छत्तीसगढ में आदिवासियों की संस्कृति नष्ट करने के पीछे पडी हुई है और एसी महामारी के बीच जब छत्तीसगढ में भी जब कोरोना विकराल रूप लेने जा रहा है तो छत्तीसगढ सरकार रामवनगमन पथ के नाम पर करोडो अरबों की राशि जगह जगह भूमि पूजन की व्यवस्था में खर्च कर रही है । मुझे लगता है कि यह बस्तर के आदिवासियों के साथ एक बडा अत्याचार है , जिस सच्चाई को भी आज सामने लाने की जरूरत है , हालांकि मुझे खुशी हे कि आदिवासी युवक युवतियां काफी जागरूक हो गए है उन्होने अपनी लडाई लडना शरू कर दिया है ।
यह बात सत्य है कि आप जहां कही भी सत्य को सामने लाने की कोशिश करेंगेें तो उस सच के शिकार लोग आपको छोडेंगे नही आपका मूंह बंद करने की कोशिश की जाएगी , आपके हाथ तोडने की कोशिश होगी । आपको सामाजिक रूप से इतना बदनाम कर देने की कोशिश होगी कि आप उस काम से पीछा छुडा लें । तो मेरे साथियों अगर सच को सामने लाने का आपने बीडा उठाया है तो उसके खतरे तो उठाने ही होंगे।
(#अविकल_प्रस्तुति का लोकजतन के लिए लिपीकरण #आकांक्षा_धाकड़ द्वारा)
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