पिछले दिनों नोबल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमत्र्य सेन ने एक वक्तव्य में कहा था कि राम बंगाल की परम्परा में नहीं हैं। इस वकतव्य से हमारे अनेक हिन्दुत्ववादी भडक़ गये। सबसे बड़ी दिक्कत इस समय यही है कि जो हिन्दुत्ववादी भक्त सम्प्रदाय है वो अपढ़ है और उसे ना हिन्दू का अर्थ मालूम है न वह हिन्दू परम्पराओं के बारे में कुछ जानता है। उसके आकाओं ने कह दिया है कि सबको जयश्रीराम बोलना है। हिन्दू धर्म के तीन प्रमुख सम्प्रदाय रहे हैं। एक शैव जो शिव पूजक हैं, दूसरा वैष्णव सम्प्रदाय जो विष्णु और उसके अवतारों को अपना भगवान मानता है। और तीसरा शक्ति सम्प्रदाय जो दैवी पूजक है। इसलिए रामकथाओं के भी अनेक पाठ मिलते हैं। निराला की प्रसिद्ध कविता रामकी शक्तिपूजा कृतिवास रामायण से अपनी कथा लेती है । यह रामकथा बंगाल में लिखी गयी । इसमें प्रारम्भ में शक्ति रावण के साथ होती है , इसलिए राम पराजित होते हैं। फिर राम शक्ति की आराधना करते हैं, इसमें भी शक्ति राम की तपस्या को भंग करने की कोशिश करती है और पूजा के कमलों में से एक कमल चुरा लेती है। राम की आराधना अधूरी रह जाती है। तभी राम को याद आता है कि उन्हें कमल नयन कहा जाता रहा है। राम कटार उठाकर अपनी आँख निकाल कर देवी को चढ़ाने को उद्यत होते हैं। तभी देवी राम के शरीर में प्रवेश कर जाती है। इसके बाद ही राम की विजय होती है।
निराला इस कविता से एक स्तर पर वही काम कर रहे होते हैं जो कभी तुलसीदास ने किया था। तुलसीदास ने रामचरित मानस में शैव और वैष्णवों को करीब लाने का प्रयास किया था। निराला वैष्णव और शक्तों के बीच सेतु बनाने का काम इस कविता से करते हैं। हालांकि यह काम तो कृतिवास रामायण पहले ही कर चुकी थी। भारतीय पौराणिक आख्यानों और परम्पराओं की जटिलताओं और बहुलता को समझने की जरूरत है। दुर्भाग्य से हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जहाँ मूर्खता और उसका हिंसक अहंकार इतना बढ़ चुका है कि वह भारतीय समाज की बहुलता की बात करना भी हिन्दू विरोधी मान लिया गया है। दिलचस्प यह है कि जो धर्म के बारे में सबसे कम जानते हैं वो ही धर्म की व्याख्या कर रहे हैं और वो ही निर्णय सुना रहे हैं।
पागलपन के ऐसे दौर में आप अगर अलग खड़े होंगे तो आप खतरे की परिधि में आ जायेंगे। भक्तों ने राम को सारे सम्प्रदायों का मिथक बनाने की ठान ली है। राम रथ यात्रा ने राम को मिथक की परिधि से निकाल कर इतिहास की सीमा में ला दिया था। राम इतिहास पुरूष हो गये थे। जिसने भी तुलसी का रामचरित मानस पढ़ा होगा, वह जानता होगा कि वहाँ राम पैदा नहीं हुए थे, प्रकट हुए थे। कौशल्या हितकारी जब प्रकट हुए तो कौशल्या ने कहा कि तुम बालक बन जाओ नही ंतो कौन विश्वास करेगा कि तुम मेरे पुत्र हो। तब राम ने बालक रूप रखा। दुर्भाग्य तो यह है कि भक्तों ने तो मानस ठीक से नहीं पढ़ा लेकिन रामरथ यात्रा निकालने वालों और आज राम-राजनीति कर रहे नेताओं ने भी उसे या तो सही ढंग से नहीं पढ़ा है या वो जनता को बर्गलाने का काम कर रहे हैं। नेता उनके भक्तों के अध्ययन का स्तर जानते हैं। यह अज्ञान का युग है। यहाँ मूर्खता सिर चढ़ कर बोल रही है।
रामकथा में रावण का एक सिर गधे का था, मुझे लगता है कि हमारी सत्ता की राजनीति ने दशानन के उस सिर को ही धारण कर लिया है।
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