कोविड-19 महामारी ने, भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की भारी अपर्याप्तता और घनघोर अनदेखी को गहरेे रंग से रेखांकित कर सामने ला दिया है। लॉकडाउन के पचास दिन हो चुके हैं, फिर भी ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने इस घातक वाइरस का सामना करने के अनुभव से कोई सबक सीखा ही नहीं है। राज्य-दर-राज्य, सरकारी अस्पताल मरीजों की भारी संख्या और चिकित्सा सुविधाओं की भारी कमी के बोझ के तले बैठे जा रहे...
Read Moreकोरोना वायरस जैसी महामारी से निपटने की सभी की जिम्मेदारी है, जिसे समूचे देश व प्रदेश की आमजनता भी बेहतर तरीके से पूरी कर रही है।
Read Moreएक कहावत है कि गिद्द को सपने में भी लाशों के ढेर नजर आते हैं। भेडियों की बारात गाँव बसाकर नहीं लौटती।
Read Moreइस पूरे घटनाक्रम की एक सिल्वर लाइनिंग है जिसकी नायिकायें भी महिला प्रशासक ही हैं। जिन्होंने राह दिखाई है इस महामारी से जूझते हांफते देशों को इस त्रासदी से बाहर आने की।
Read Moreकोविड-19 वाइरस ने जब तक भारत में अपना खास जोर दिखाया भी नहीं था, उस समय भी मोदी सरकार सीएए/एनआरसीविरोधी आवाजों को कुचलने में जुटी हुई थी।
Read Moreयूं कहावत पुरानी है और पुराने लोग इसे बार बोर दोहराते है कि रसोईया एक चावल पकड़ कर ही पूरी हांडी के चावल के पक्के या कच्चे होने का अंदाजा लगा लेता है। भाजपा के जो भी चावल हाथ में आ रहे हैं, वे बताते हैं कि काठ की हांडी में चढ़ाये गए चावल पकेंगे नहीं, बल्कि हांडी ही राख हो जायेगी। सत्ता की हवश में भाजपा ने सरकार तो बना ली है। मगर उस...
Read Moreरास्ता सचमुच बहुत आसान है। रास्ता है बीमारी की जड़ को हटाकर एक ऐसी सामाजिक प्रणाली लाना जिसमे मुनाफ़ा ही ईश्वर न हो। जिसमे विकास और प्रगति प्रकृति और उसकी सबसे अनमोल कृति मनुष्य को रौंदना, कुचलना, लूटना और धनसंपदा इकट्ठा करना न माना जाए। कुछ समय पहले बोले थे फुकोयामा कि अब पृथ्वी और जीवन को सिर्फ समाजवाद ही बचा सकता है।
Read Moreभाजपा विधायक दल की बैठकें कर रही थी। मगर तब उसे कोरोना की चिंता नहीं थी। उसकी सिर्फ एक चिंता थी कि हर हालत में सत्ता की उसकी हवश पूरी होनी चाहिए।
Read Moreबाबासाहेब देश के सामाजिक ताने बाने को समझने वाले और उत्पीडि़तों की मुक्ति के लिये संघर्ष करने वाले सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे थे। तभी भारत की जनता ने यदि गांधी को महात्मा कहा तो अंबेडकर को महामानव।
Read Moreप्रधानमंत्री ने लॉकडॉउन की तकलीफों के लिए 'माफी' जरूर मांगी, लेकिन अपने प्रशासन को सार्वजनिक रूप से इसका कोई निर्देश तक देने की जरूरत नहीं समझी कि मेहनत-मजदूरी करने वाले गरीबों के साथ अपराधियों जैसा सलूक करना बंद करें।
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