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धन कुबेरों का स्वर्ग

प्रकाश करात    पैराडाइज पेपर्स के माध्यम से नये रहस्योद्घाटन हुए हैं। खोजी पत्रकारों के अंतर्राष्ट्रीय  कंसोर्शियम की पड़ताल पर आधारित ये रहस्योद्ïघाटन इस पर और ज्यादा रौशनी डालते हैं कि किस तरह, बहुराष्ट्रीय निगमों तथा अंतर्राष्ट्रीय  वित्तीय पूंजी के स्वार्थ पूरे...

प्रकाश करात 
 
पैराडाइज पेपर्स के माध्यम से नये रहस्योद्घाटन हुए हैं। खोजी पत्रकारों के अंतर्राष्ट्रीय  कंसोर्शियम की पड़ताल पर आधारित ये रहस्योद्ïघाटन इस पर और ज्यादा रौशनी डालते हैं कि किस तरह, बहुराष्ट्रीय निगमों तथा अंतर्राष्ट्रीय  वित्तीय पूंजी के स्वार्थ पूरे करने के लिए कर स्वर्गों, हेरा-फेरी करने वाली कंपनियों और वित्तीय लेद-देन का एक बारीक ताना-बाना खड़ा कर दिया गया है।
 
पैराडाइज पेपर्स दो कंपनियों--बरमूडा की एप्पलबे तथा सिंगापुर की एशियासिटी--के लीक हुए वित्तीय रिकार्ड और दुनिया भर में कुल 19 कर स्वर्गों के कंपनी रजिस्टरों की छानबीन पर आधारित हैं। यह पूरे 1 करोड़ 34 लाख दस्तावेजों को छानने का नतीजा है। याद रहे कि अब से 18 महीने पहले, पनामा पेपर्स के नाम से पनामा-आधारित एक कंपनी के ही संदिग्ध धंधों पर से पर्दा उठाया गया था। पैराडाइज पेपर्स हमें इसमें और नजदीक से झांकने का मौका देते हैं कि किस तरह दुनिया के धन कुबेर अपना पैसा कर स्वर्गों को हस्तांतरित करते हैं ताकि अपने देशों में इस पर कर भरने से बच सकें। इन पेपर्स में इस पर खासतौर पर ध्यान केंद्रित किया गया है कि किस तरह से बहुराष्ट्रीय निगम तथा कार्पोरेट खिलाड़ी अपने मुनाफे इन कर शरणगाहों में पहुंचाते हैं और यह किया जाता है वहां सब्सीडियरी कंपनियां खड़ी करने के जरिए।
 
याद रहे कि यह वित्तीय पूंजी जिस तरह से काम करती है उससे किसी विचलन का मामला नहीं है। यह तो विश्वीकृत वित्त की प्रकृति में ही निहित है। इसी सितंबर में आयी, अर्थशास्त्री गैब्रिअल जुक्मैन द्वारा सहलिखित एक रिपोर्ट में यह अनुमान प्रस्तुत किया गया था कि विश्व सकल घरेलू उत्पाद का 10 फीसद यानी 78 खरब डालर, ऐसे ही सीमा पार रखा जा रहा था। जुक्मैन के अनुसार, पिछले साल में ही 600 अरब यूरो सागरपारीय कर स्वर्गों में पहुंचाए गए थे।
 
धन कुबेर और  बड़े कार्पोरेट इस तरह से कर चुकाने से बच जाते हैं और अपने देशों को कर राजस्व से वंचित करते हैं जिसका उपयोग स्कूलों, अस्पतालों, नागरिकों के लिए समाज कल्याण आदि में किया गया होता। इन सब का कानूनन अवैध न होना, इसे कोई कम कुरूप नहीं बना देता है। यह नवउदारवादी पूंजीवाद के ही दोमुंहेपन को उजागर करता है, जो अमीरों के लिए तो करों से बचने के रास्ते बनाता है और साधारण नागरिकों पर जो मुश्किल से अपनी दो वक्त की रोटी जुटाते हैं, करों का बोझ लादता है।
 
पैराडाइज पेपर्स में 714 भारतीय सत्ताओं तथा व्यक्तियों के भी नाम आए हैं, जिन्होंने उक्त दो वित्तीय कंपनियों की मदद से बाहर संदिग्ध कंपनियां खड़ी की हैं और इन कंपनियों में कर स्वर्गों में अपना पैसा जमा कराया है। इस सूची में अनेक भारतीय बड़ी कंपनियां, कारोबारी तथा अचल संपत्ति कारोबारी शामिल हैं। इनमें से कुछ भाजपा से भी जुड़े हुए हैं।
 
इससे पहले आए पनामा पेपर्स की ही तरह, पैराडाइज पेपर्स असरदार तरीके से इस मिथ को चूर-चूर कर देते हैं कि मोदी सरकार काले धन के खिलाफ कोई लड़ रही है। यह रहस्योद्ïघाटन, नोटबंदी की बरसी, 8 नवंबर से ठीक दो दिन पहले आए हैं। ये रहस्योद्ïघाटन इस दावे के बेेतुकेपन को ही उजागर करते हैं कि नोटबंदी ने काले धन पर अंकुश लगा दिया है। काला धन पैदा करना, उसे परदेश में परिसंपत्तियों में तब्दील करना, धन-शोधन तथा इस तरह के धन को विदेश से चक्कर लगाकर वापस देश में लाना, इन सभी को पैराडाइज पेपर्स बखूबी उजागर करते हैं। सचाई यह है कि इस समूची प्रक्रिया पर, जो इस दौरान बेरोट-टोक जारी रही है, नोटबंदी का रत्तीभर असर नहीं पड़ा है।
 
मोदी सरकार ने एलान किया है कि पनामा पेपर्स के जरिए उजागर हुई सत्ताओं की सूची की पड़ताल के लिए जो बहु-एजेंसी ग्रुप गठित किया गया था, वही ग्रुप अब पैराडाइज पेपर्स में आए भारतीय सत्ताओं के विवरणों की भी छानबीन करेगा। इसका मतलब यह है कि ज्यादा से ज्यादा इसी की उम्मीद की जा सकती है कि सूची में जिनके नाम हैं, उनके द्वारा घोषित नहीं की गयी आय को ही कर तथा जुर्माने आदि के दायरे में लाया जा रहा होगा, इसके सिवा और कुछ नहीं होगा। कर स्वर्गों में इस तरह कंपनियां खोले जाने, उनमें पैसा हस्तांतरित किए जाने तथा इस क्रम में काले धन का शोधन किए जाने आदि की न जांच की जाएगी और न उन पर सवाल उठाए जाएंगे। आखिरकार, इन पर सवाल उठाने का मतलब तो वित्तीय निवेशकों को और लुटेरी वित्तीय पूंजी के पूरे ताना-बाने को ही चुनौती देना होगा।
 
जरूरत ऐसे सख्त कदम उठाने की है जिनके जरिए कर स्वर्गों के इस्तेमाल को रोका जा सके, जिनके इस्तेमाल के लिए अब तक वैध कारोबारी गतिविधि के रूप में इजाजत मिली रही है। उपयुक्त कानून तथा नियमनकारी ढांचा बनाए जाने की जरूरत है ताकि दोषियों को सजा दी जा सके और कर चोरी को संभव बनाने वाले सभी चोर दरवाजों को बंद किया जा सके। इस मामले में दोषी पाए जाने वालों की संपत्तियों का जब्त किया जाना, एक निवारक का काम कर सकता है। लेकिन, मोदी सरकार से यह सब करने की उम्मीद करना तो भोलेपन की ही इंतिहा होगी। यह सरकार तो है ही कारर्पोरेटों और अंतर्राष्टï्रीय वित्तीय पूंजी की सेवा करने के लिए। 
(लेखक माकपा के पोलिट ब्यूरो सदस्य है)

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