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ऐसा है मध्यप्रदेश : सब ओर गिरावट-चौतरफा संकट

प्रदेश की आर्थिक हालत बेहद चिंताजनक है। प्रदेश पर कर्ज का बोझ बढक़र पौने 2 लाख करोड़ हो गया है। इस वित्तीय वर्ष में ही सरकार को 3 बार कर्ज लेना पड़ा है।


चुनाव सर पर है और ऐसी एक भी पहल नहीं है जिसमें स्थिति बद से बदतर न हुई हो। हमारे राजनीतिक संवाददाता ने इसमें कुछ को दर्ज किया है।
 
प्रदेश पर कर्ज

प्रदेश की आर्थिक हालत बेहद चिंताजनक है। एक ओर प्रदेश पर कर्ज का बोझ बढक़र पौने 2 लाख करोड़ हो गया है। इस वित्तीय वर्ष में ही सरकार को 3 बार कर्ज लेना पड़ा है। दूसरी ओर राज्य का रिजर्व कोष जो रिजर्व बैंक की शर्तों के अनुसार न्यूनतम 600 करोड़ रुपए होना चाहिए, से भी नीचे चला गया है। अर्थशास्त्र की भाषा में इसे ‘वेज ऑफ मीन्ज’ की स्थिति कहते है। इस स्थिति में कर्मचारियों का वेतन देना भी कठिन हो जाता है। सरकार ने हाल ही में विधानसभा में 11190 करोड़ का अनुपूरक बजट पारित किया है। मगर सरकार व्यवस्था केवल 5000 करोड़ की ही कर पायी है।

अघोषित आपातकाल

प्रदेश में लगभग अघोषित आपातकाल की स्थिति है। आमसभाओं और प्रदर्शनों की अनुमति मिलना तो पहले से ही बहुत कठिन कर दिया गया था। अब ताजी घटना काला फिल्म को लेकर है। प्रदेश के सारे सिनेमा घरों और माल में बिना किसी प्रदर्शन के काला फिल्म का प्रदर्शन रोक दिया ग

मंदसौर गोलीकांड - जांच आयोग

पिछले साल जून में मंदसौर में हुए गोलीकांड की जांच के लिए गठित जैन जांच आयोग की रिपोर्ट जारी हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस को सुरक्षा के लिए गोली चलाना बहुत जरूरी था। इससे न केवल अपराधियों को बचाने की कोशिश की गई है। बल्कि एक खतरनाक संदेश दिया गया है कि गोली चलाने का निर्देश किसी भी अधिकारी ने नहीं दिया है। तो क्या पुलिस बिना आदेश के गोली चला सकती है? यह भविष्य के लिए खतरनाक नजीर हो सकती है। जाचं आयोग ने मुख्यमंत्री के उस दावे की जांच भी नहीं की है, जिसमें उन्होने कहा था कि कोटा में बैठ कर अफीम माफियाओं ने यह आंदोलन चलाया था। रिपोर्ट आने के बाद सरकार ने निलंबित कलेक्टर और एस पी को बहाल कर दिया है। जांच रिपोर्ट विधानसभा पटल पर भी नहीं रखी गई है।

भोपाल एनकांउटर की जांच रिपोर्ट

2016 में भोपाल केन्द्रीय जेल के छह विचाराधाीन कैदियों की जेल तोडक़र भागने और फिर एनकांउटर में मारे जाने के संबंध में गठित पांडेय आयोग की रिपोर्ट आ गई है। इससे पूर्व मानव अधिकार आयोग और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने  इस घटना को सरकार द्वारा प्रायोजित और मानव अधिकारों को खुला उल्लंघन बताया था, जबकि पांडेय जांच आयोग ने सरकार की कहानी पर ही मोहर लगा दी है और कहा है कि जेल की दीवार की ऊंचाई कम होने के कारण विचाराधाीन कैदी भागने में सफल हुए।

दलित उत्पीडऩ की स्थिति

दो अप्रेल भारत बंद के बाद उत्तरी मध्यप्रदेश में दलित उत्पीडऩ जारी है। ग्वालियर भिंड मुरैना में करीब 12700 दलितों पर मुकदमें लगाये गए हैं और 500 से ज्यादा जेलों में बंद हैं। उनकी जमानत नहीं हो रही है।
दलित उत्पीडऩ की एक बड़ी घटना भोपाल के पास बेरसिया पुलिस थाने के अंतर्गत घटी। जहां एक दलित किसान को दबंगों ने पेट्रोल डालकर जलाकर मार डाला। यह घटना पुलिस चौकी के पास घटी। उल्लेखनीय है कि मृत किसान किशोरी लाल अहिरवार को दलित एजेंडे के तहत चरनोई भूमि का पट्टा मिला था। दो तीन साल से उस भूमि पर दबंगों ने कब्जा कर लिया था, जिसकी रिपोर्ट भी उसने अनुसूचित जाति जनजाति थाने में की थी। मगर कोई कार्यवाही नहीं हुई। 21 जून को भी वह अपनी पत्नि के साथ अपने खेत पर गया था जहां दबंगों ने उसे पकड़ कर पेट्रोल डाल दिया। जिससे उसकी मृत्यु हो गई। हालांकि हत्यारे गिरफ्तार हो गए हैं, मगर सरकार की ओर से कोई मुआवजा राशि घोषित नहीं की गई है। दो अप्रेल को मारे गए दलितों के परिजनों को भी कोई मुआवजा नहीं मिला है।

मंडियों में लूट

पिछली राज्य समिति की बैठक के बाद से मंडियों में किसानों की लूट सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। सरसों, चना, मसूर, लहसुन, गेहूं प्रत्येक फसल पर किसान को निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम में अपनी फसल बेचने पर मजबूर होना पड़ा है। मुख्यमंत्री ने गेहूं पर 265 रुपए प्रोत्साहन राशि देने के साथ ही पिछले दो साल में जो बोनस बंद कर दिया गया था, वो भी देने की घोषणा की है। मगर किसान का गेहूं 1400 से 1500 रूपए प्रति क्ंिवटल बिक रहा है। जबकि एमएसपी 1735 रूपए है। परिस्थिति यह है कि किसान सहकारी समितियों को गेहूं बेचना भी नहीं चाहता है। क्योंकि सरकार ने किसान के बैंक, राजस्व, बिजली विभाग सहित सारे कर्जों की सूची सहकारी संस्थाओं और मंडी समितियों को भेज दी है। यदि किसान सहकारी संस्थाओं को अपनी फसल बेचता है तो यह संस्थाऐं पूरा कर्ज काटने के बाद उसे राशि देंगी, जिससे किसानों के बड़े हिस्से को खाली हाथ लौटना पड़ेगा। इसलिए किसान आड़तियों को सस्ते में अपनी फसल बेच रहा है।

बैंकों में पैसे की कमी होने के कारण किसानों को 15 दिन में भुगतान भी नहीं हो रहा है। इसलिए भी किसान आड़तियों को फसल बेचने पर मजबूर हैं। दस दिन पूर्व मिली जानकारी के अनुसार 4692 करोड़ रुपए का किसानों को भुगतान नहीं हुआ है। मंडियों में किसानों को कई कई दिन अपनी फसल बेचने के लिए रुकना पड़ा। विदिशा में एक किसान मूलचंद मीणा की मंडी में लू लगने से मृत्यु हो गई। वह पांच दिन से अपनी फसल बेचने के लिए मंडी में था। रीवा में एक किसान सुरेन्द्र पटेल की रात को मंडी में ट्रक से कुचलने से मौत हो गई। वह चना बेचने के लिए आया था।

मंडी के रिकार्ड के अनुसार 10 जून तक चना का 87 प्रतिशत, मसूर का 91.18 प्रतिशत, सरसों का 99.92 प्रतिशत और गेहूं के 37 प्रतिशत राशि का भुगतान किसानों को नहीं हुआ है। इस दौरान किसान आत्महत्याओं की घटनायें भी तेजी से बढ़ी हैं।

खरीफ की फसल की बुआई

मानसून आने के साथ ही खरीफ की फसल की बुआई शुरू हो गई है। मगर सोयाबीन, कपास सहित सारी फसलों का पर्याप्त बीज सहकारी और सरकारी बीज केन्द्रों पर उपलब्ध नहीं है। जाहिर है कि इसके लिए किसानों को निजी कंपनियों से बिना गारंटी का नकली बीज ही खरीदना होगा। बोनी के लिए पर्याप्त खाद भी उपलब्ध नहीं है।

पेयजल की स्थिति

प्रदेश में विशेषकर पेयजल संकट की स्थिति बहुत विकराल हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट की हालत और भी खराब है। ताजा रिपोर्ट के अनुसार राजधानी भोपाल से सहित प्रदेश के 18 जिलों के 93 विकास खंडों में पेयजल संकट विकराल रूप ले चुका है, क्योंकि इन जिलों के 60 फीसद से अधिक जलस्रोतों का पानी पीने योग्य नहीं बचा है। इनमें भोपाल, बैतूल, खरगौन, बड़वानी, झाबुआ, अलीराजपुर, बुरहानपुर,धार, खंडवा, रायसेन, सीहोर, विदिशा, भिंड, मंडला, शिवपुरी, सिवनी, छिंदवाड़ा और जबलपुर जिले शामिल हैं। पानी माफिया गांवों और कस्बों तक में महंगा पानी बेच रहे हैं।

संकट और पलायन

लगातार के सूखे और कृषि संकट के कारण प्रदेश से पलायन रुक नहीं रहा है। मनरेगा के ईमानदारी से लागू न होने के कारण गरीब किसान और खेत मजदूर बड़े पैमाने पर पलायन कर रहे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में 2 करोड़ 53 लाख 50 हजार 849 लोग पलायन करते हैं। इनमें से 1 करोड़ 85 लाख ग्रामीण गरीब होते हैं। इस दौरान यह स्थिति और विकराल हुई है।

बेटी बचाओ की स्थिति

प्रदेश में महिलाओं, विशेषकर बच्चियों की स्थिति बेहद असुरक्षित है। विधान सभा में मिली जानकारी के अनुसार ही पिछले 120 दिन में 1554 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनायें घटी हैं। औसतन प्रतिदिन 13 महिलाओं के बलात्कार का शिकार हुई हैं।

राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में मासूम बच्चियों के  यौन उत्पीडऩ के अपराधों में पिछले 16 साल में 532 प्रतिशत और मौत हिंसा संबंधी मामले में 1109 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। दूसरी और राज्य सरकार की संवेदनहीनता की स्थिति यह है कि सरकार प्रत्येक बच्चे की सुरक्षा पर मात्र 28 रुपये प्रति वर्ष  व्यय करती है।
बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाओं की बाढ़ सी आ गई है। ताजा घटना मंदसौर की है, जहां सात साल की बच्ची को दो दरिंदों ने हवश का शिकार बनाया। वे उसे सरस्वती शिशु मंदिर के गेट से लेकर गए थे। भाजपा और संघ परिवार ने इस घटना को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की। मगर वह इसमें सफल नहीं हो पायी। इसके बाद सतना के उचेहरा थाने के अंतर्गत एक चार साल की बच्ची के साथ और धार में एक बच्ची को उसके नजदीकी रिस्तेदार ने यौन उत्पीडऩ का शिकार बनाया।

बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ सरकार राज्य सरकार कार्यक्रमों में से प्रमुख कार्यक्रम है। किंतु लेसेंट ग्लोबल हैल्थ के ताजा आंकड़ों के अनुसार प्रदेश उन पांच राज्यों, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार और महाराष्ट्र में शामिल है,जिन पांच राज्यों में देश की दो तिहाई बच्चियों की पांच साल की आयु पूरा करने से पहले ही मौत हो जाती है। यह सारे राज्य भाजपा शासित राज्य हैं।

प्रदेश में छोटी बच्चियों के साथ यौन हिंसा की घटनाओं में भी तेजी से वृद्धि हुई है। एनसीआरबी की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में हर रोज छोटी बच्चियों के साथ यौन उत्पीडऩ के दस अपराध दर्ज हुए हैं। जैसा कि राज्य समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदेश में हर रोज कुपोषण से 92 बच्चों की हर रोज मौत होती है। इसमें बहुमत बच्चियों का ही है।

शिक्षा की बिगड़ती स्थिति

प्रदेश में इंजीनियरिंग शिक्षा की स्थिति लगातार खराब हो रही है। निजी कालेजों के संचालकों द्वारा लगातार फीस में वृद्धि करना भी इसकी एक वजह है। वर्ष 2015-16 में प्रदेश में 87212 सीटें हुआ करती थी, जो 2017-18 में घटकर 71823 रह गई हैं। चिंता की बात यह है इतने छात्र भी नहीं आ रहे हैं। वर्ष 2015-16 में 45999 छात्रों ने दाखिला लिया था, जो कुल सीटों का मात्र 52.74 प्रतिशत था। वर्ष 2017-18 में 32943 छात्रों ने दाखिला लिया था, जो कुल सीटों का 45.06 प्रतिशत है। इस साल 6000 सीटें और कम कर दी गई हैं।

शिक्षा के निजीकरण ने शिक्षा की स्थिति और भी बदतर कर दी है। व्यापमं घोटाले में भी निजी शिक्षण संस्थाओं की भूमिका थी। मेडिकल कालेजों ने अपनी फीस साढ़े तीन लाख से बढ़ाकर दस लाख रुपए कर दी है। इस लूट का एक नतीजा इंदौर में देखने को मिला है जहां बार बार फीस बढ़ाने और प्रबंधन द्वारा प्रताडि़त करने के कारण युवा डा. स्मृति लहरपुरे को आत्महत्या करनी पड़ी है। मगर इन संस्थाओं का सरकार पर इतना दबाव है कि प्रबंधन पर कार्यवाही नहीं हो रही है और प्रबंधन मृतक के चरित्रहनन पर लगा हुआ है।

राज्य सरकार ने कुछ और भी घोषणायें की हैं। कालेजों में पढ़ाने वाले अतिथि विद्वानों को पहले पीरियड के हिसाब से भुगतान होता था। अब न्यूनतम भुगतान 30 हजार रुपए प्रतिमाह कर दिया गया है। बिजली बिल माफ करने की भी घोषणा की गई है। इस प्रकार भाजपा सरकार विरोधी नाराजगी को कम करने की कोशिश कर रही है।

साम्प्रदायिक धु्रवीकरण

प्रदेश और केन्द्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनता में पनप रहे असंतोष से ध्यान हटाने के लिए भाजपा और संघ परिवार साम्प्रदायिक धु्रवीकरण करने की कोशिश कर रहा है। पिछली राज्य समिति बैठकों में हम लोग इस संबंध में लगातार चर्चा करते रहे हैं। इस दौरान भी साम्प्रदायिक धु्रवीकरण की कुछ घटनायें घटी हैं। सतना जिले में मैहर के पास एक गांव में गौ हत्या के आरोप में दो अल्पसंख्यकों की भीड़ ने पिटाई की। जिससे एक की मौत हो गई। इस घटना के जानकारी लेने गए जांच दल के अनुसार इस घटना की पृष्ठभूमि बजरंग दल और आरएसएस ने लंबे समय के अभियान से तैयार की थी। पुलिस ने भी पीडि़तों के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज कर दिया था। जानकारी के अनुसार मृतक के बाद भी मुतक के परिवार के लिए मुआवजे की घोषणा नहीं की गई है।
एन सी आर टी की पुस्तकों में भाजपा सरकारों ने बदलाव कर बच्चों को सावरकर और गोलवरकर की जीवनियां पढ़ाई जा रही है। उन्हें क्रांतिकारी बताया जा रहा है। बारहवीं की पुस्तकों में तो भाजपा को महिमामंडि़त कर भी पढ़ाया जा रहा है।

विधानसभा सत्र

इस बीच विधान सभा का विधान सभा सत्र बुलाया गया। यह सत्र इतिहास का सबसे छोटा मानसून सत्र रहा। यह सत्र पांच दिन के लिए बुलाया गया था, मगर केवल दो दिन ही चला, जिसमें सिर्फ  चार घंटे काम हुआ। इसमें भी 17 विधेयक और 11190 करोड़ रुपए का अनुपूरक बजट 11 मिनट में पारित करवा लिया गया। उल्लेखनीय है कि विपक्ष की ओर से सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया था। विधान सभा अध्यक्ष की ओर से उसे स्वीकार किए जाने के बाद भी उस पर चर्चा किए बगैर ही सदन समाप्त कर दिया गया।

लेख - लोकजतन डैस्क

फोटो - साभार  गूगल

 

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