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आखिर और कितने नीचे गिरेंगे?, प्रज्ञा ठाकुर 2019 के लिये भाजपा का असली घोषणापत्र

आरएसएस-भाजपा अपने आखिऱी और सबसे सांघातिक हथियार, उग्रतम संभव साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण, को खुलकर लेकर मैदान में है।

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री और यहीं की पहले सांसद रह चुकी उमा भारती और कई अनेक नाम चलने के बाद आखिर में भाजपा ने मालेगांव धमाको सहित अनेक आतंकी कार्यवाहियों की अभियुक्ता, संघ के ही स्वयं सेवक सुनील जोशी की ह्त्या की आरोपी रही कथित साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से अपना उम्मीदवार घोषित कर लोकतांत्रिक निम्नता के मामले में, हाल के दौर की, सबसे नीची रेखा भी लांघ दी है ।


रही सही कसर प्रज्ञा ठाकुर ने, अपनी पहली ही सार्वजनिक प्रस्तुति में, मुम्बई आतंकी हमलों में कसाब के हाथों मारे गए अशोक चक्र से सम्मानित पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे की मौत को अपने श्राप का नतीजा बताकर और इस तरह अपनी उग्र उन्मादी - प्रचलित शब्दों में आतंकी - मानसिकता उजागर पूरी कर दी।


आतंकी वारदातों की इस अभियुक्ता ने मुंबई आतंकी हमले के शहीद हेमन्त करकरे के खिलाफ जिस अश्लील और शर्मनाक भाषा का इस्तेमाल किया उससे लोग हैरत में पड़ गये।  टिप्पणियां इतनी घिनौनी थीं कि देश की आईपीएस एसोसिएशन को भी इसकी निन्दा करनी पड़ी। रीढ़ विहीन चुनाव आयोग को भी नोटिस देना पड़ा। सवाल इस तरह की घिनौनी बकवास का नहीं है। जो आतंकी है वह आतंकी रहेगी। सवाल यह है कि आखिर भाजपा की राजनीति और कितना नीचे गिरेगी।


प्रज्ञा ठाकुर सीधे मोदी अमित शाह और आरएसएस की पसंद से भोपाल मे उतारी गयी उम्मीदवार हैं। इन तीनों में से किसी ने इस घिनौने बयान की आलोचना निंदा नहीं की। ऐसा प्रत्याशी चुनने की अपनी चतुराई का पुनरावलोकन नहीं किया। उलटे खुद नरेंद्र मोदी उन्हें पीडि़ता बताते हुए इन सारी बकवासों और बेहूदगियों को जायज ठहराने में जुट गये।


जब प्रज्ञा यह सब कह रही थीं उस वक्त, भोपाल आने के बाद से उनके साथ नत्थी किये गये पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे/हैं। यह शिवराज की ही भाजपा सरकार थी जिसने इस कथित साध्वी को दो-दो बार गिरफ्तार किया था - सुनील जोशी की हत्या का मुकदमा चलाया था।  वे शिवराज भी इस दौरान अपनी दन्तराशि का प्रदर्शन कर रहे हैं, न तो प्रज्ञा को डपट कर ऐसी बकवास करने से रोका, ना खण्डन ही किया।


प्रज्ञा ठाकुर की उम्मीदवारी को कुछ भोले और भले हलकों में दिग्विजय सिंह के खिलाफ कोई मुकाबले का उम्मीदवार न मिलने के रूप में लिया गया। मगर यह न तो अनायास है, न अचानक। यह बर्बरता का महिमा मंडन है। यह हत्यारों की रण भेरी है। यह भेडिय़ो की ललकार है। यह सभ्य समाज को नष्ट-भ्रष्ट, लोकतंत्र को तिरोहित कर देने वाली काली अमानुषिक ताकतों की पदचाप है।
भोपाल की बेमिसाल अनोखी समृद्ध परम्परा, विवेक, साझी संस्कृति, समझदारी की इससे बड़ी तौहीन कोई हो ही नहीं सकती। किन्तु यह भोपाल तक सीमित मसला नहीं है। इसका समूचे देश, उसके ताने बाने, संविधान और लोकतंत्र के सारे स्थापित मूल्यों और आने वाले समय के  भारत के साथ रिश्ता है। इन सबको बचाना है तो इस सबको उसकी समग्रता में देखना समझना जरूरी है।
प्रज्ञा ठाकुर को प्रत्याशी बनाया जाना संघ-गिरोह का एक सोचा समझा कदम है । सही मायनों में यह 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा का घोषणापत्र पार्ट 2, उसका असली घोषणापत्र है।
पहले 2 राउंड की वोटिंग के बाद मिले नकारात्मक रुझान के फीडबैक के बाद अब आरएसएस-भाजपा अपने आखिऱी और सबसे सांघातिक हथियार, उग्रतम संभव साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण, को खुलकर लेकर मैदान में है।


हाल के कुछ सप्ताह भाजपा की हताशा की ताईद करते हैं । 2019 के लोकसभा अभियान की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाने से करने की असफल कोशिश से की। दो दिन में ही उन्हें पता चल गया कि ऐसा करना खुद पर ही पलटवार साबित होने वाला है। मोदी और उनके अमले ने तुरंत ही भारतीय सैना को अपना असलाह बना लिया। पुलवामा की घोर विफलता पर शर्मिन्दा होने की बजाय उसमे मारे गए सैनिकों के नाम पर वोट कबाडऩे का घिनौना दांव आजमाया। बालाकोट को मोदी सेना का कारनामा बताने तक पहुँच गये। सेना के इस असाधारण आपत्तिजनक  चुनावी इस्तेमाल की अनेक पूर्व जनरलों तक ने निंदा की। सुप्रीम कोर्ट से फटकार के बाद केंद्रीय चुनाव आयोग (कें चु आ) को भी - भले फुसफुसी - आपत्ति करनी पड़ी। मगर असल में नीचे यह भी नहीं चल पाया था। तीसरी कोशिश के रूप में धूर्तों की आखिरी पनाहगाह राष्ट्रवाद का दांव चला गया। वह भी नहीं चला तो खुद मोदी रैलियों में अपनी जाति साहू-मोदी-तेली के राष्ट्रीय साम्य गिनाने लगे। इन सब तिकड़मों  की नाकामयाबियों के बाद अंतत: भाजपा और संघ पूरी निर्लज्जता के साथ विस्फोट, हत्याओं जैसी आतंकी कार्यवाहियों की अभियुक्ता और इस तरह उसके पूरे एजेंडे को सामने लेकर आ गये।


संघ-भाजपा की बदहवासी किस कदर है यह प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाने से ही साफ हो जाता है। प्रज्ञा उम्मीदवार बनने से चौबीस घंटे पहले भाजपा में शामिल हुयी थीं। इससे पहले वे, सारे पुलिस आरोप पत्रों के अनुसार अभिनव भारत नाम के कुख्यात आतंकी संगठन के साथ थीं। उससे उन्होंने इस्तीफा दिया है कि नही यह भी किसी को नहीं मालूम। 


यह वह संगठन है से जिससे आरएसएस ने अपनी असहमति और असंबद्धता लिखा-पढी में खुद बताई थी। मालेगांव धमाकों के बाद जब ‘हिंदुत्वी आतंक’ और आरएसएस का नाम भी घेरे में आया तब 9 फरवरी 2011 को आरएसएस के महासचिव सरकार्यवाह सुरेश भैया जी जोशी ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को चिठ्ठी लिखकर कहा था कि  ‘धमाके के आरोपी कर्नल पुरोहित एंड कंपनी (प्रज्ञा ठाकुर जिसमे शामिल थी) से हमारा कोई संबंध नहीं है।’ संघ की इस अधिकृत चिठ्ठी  में इससे आगे कहा गया था कि ‘ये लोग तो खुद हमारे सरसंघचालक मोहन भागवत को कैमिकल अटैक से और संघ के नेता इन्द्रेश कुमार को गोली से मारने का षडयंत्र रच रहे हैं । इसके लिए इन्होंने पिस्तौल की व्यवस्था भी कर ली है। ये इन्द्रेश कुमार सहित संघ के नेताओं को पाकिस्तानी खुफिया आईएसआई का एजेंट मानते हैं। इसलिए मारना चाहते हैं।’


असल में यह सारी बातें एनआईए की जांच के दौरान कर्नल पुरोहित से लेकर असीमानंद और प्रज्ञा ठाकुर से हुयी पूछताछ, जब्त टेप और दस्तावेजों में सामने आयी थी। जिनके बारे में आरएसएस का आरोप था कि ‘सरकार इन्हें उजागर नहीं कर रही है और इस तरह हमारे नेताओं की ह्त्या के इस षडयंत्र को छुपा रही है।’ यह चिठ्ठी आज भी इनकी वेबसाइट
( https://samvada.org/?p=2739 ) पर है।


अब वही प्रज्ञा संघ भाजपा का झण्डा है। जाहिर है कि संघ की यह चिठ्ठी भी गांधी हत्याकांड से लेकर अब तक समय समय पर लिखी गयी बाकी चिठ्ठीयों की तरह झूठी थी। अभिनव भारत इसी की एक शाखा है। कल को सनातन संस्था के किसी कुलबुर्गी या गौरी लंकेश के हत्यारे को भी भाजपा टिकिट मिल जाये तो आश्चर्य नहीं होगा।


देसी विदेशी कारपोरेट पूँजी की लूट बढ़ाने वाली, उनके कन्धों पर सवार फासीवाद की हिन्दुस्तानी नस्ल हिंदुत्वी साम्प्रदायिकता अपने सारे बघनखे खोल कर समाज और सभ्यता में जो भी सकारात्मक है, उसे हड़पने के लिए तत्पर है। जो भी आशा जगाने वाला, उम्मीदों के लिए संभावना प्रस्तुत करने वाला है उसे मिटा देना चाहती है। किसी भी कीमत पर इसको - सिर्फ भोपाल में नहीं, देश भर में परास्त करना होगा। बिलाशक सिर्फ चुनाव में हराना ही इन्हें पराजित करने के लिए काफी नहीं होगा। लेकिन इन्हें पूरी तरह हराने के लिए जरूरी लामबंदी के लिहाज से भी आवश्यक हो जाता है कि लोकसभा चुनाव के बाकी चरणों में निर्णायक रूप से इसे ठुकराया जाये।

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