एक बलात्कारी को अपराधी करार दिये जाने के बाद केवल पंचुकला या हरियाणा में ही नहीं,बल्कि पंजाब, चंडीगढ़ और दिल्ली में हुई हिंसा को इस तरह से देखे जाने की जरूरत है। राम रहीम को लेकर मीडिया अब जो भी खबरें दे रहा है। वह एक तरफा हैं। सौ एकड़ में फैला उसका आश्रम। आलीशान और भब्य रहन सहन। अरबों खरबों की संपत्ति। और न जाने और क्या क्या?
मगर इस अकूत संपत्ति के केन्द्रीकृत होने की परिस्थितियां मौजूद है। राम रहीम के 25 लाख श्रद्वालुओं पर मत जाईये। यह भी देखिए यह श्रद्वालू कौन हैं? इन श्रद्वालुओं का बहुमत सिख समुदाय से संबंधित है। मगर यह सिखों में कौन है? यह वे लोग हैं,जिन्होने सिख धर्म इसलिए अपनाया था ताकि हिन्दु धर्म में उनके साथ होने वाली छुआछूत,जातिय भेदभाव और उत्पीडऩ का अंत हो सके। मगर सिख धर्म में जाने के बाद भी इस उत्पीडऩ ने उनका पीछा नहीं छूटा। भलें ही सिख धर्म साथ रहने और बांट कर खाने की बात करता हो। मगर सच्चाई यह है कि आज भी गांव में इनका गुरूद्वारों में प्रवेश प्रतिबंधित है। गांवों में इनके अलग गुरूद्वारे हैं। खाने में इनकी पंगत अलग लगती है। इन्हें हर तरह के भेदभाव और छुआछूत का शिकार होना पड़ता है।
डेरा सच्चा सौदा ने इन्हीं का सवाल उठाया। छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई। पीडि़त समुदाय को लगा कि यहीं से उन्हें उत्पीडऩ, भेदभाव और छुआछूत से मुक्ति मिल सकती है। राम रहीम ने कुछ और सवाल भी उठाये। उसने अपने शिष्यो को वैश्याओं के साथ शादी करने के लिए प्रेरित किया। उसने रक्तदान के कैंप आयोजित करवाये। डेरा सच्चा सौदा शायद एकमात्र डेरा है,जो अपने शिष्यों को देहदान करने के लिए प्रेरित करता है और देहदान करवाता भी है। कुछ और बातें भी गिरवाई जा सकती हैं।
मगर बुनियादी प्रश्न क्या है? क्या कुछ समाज सुधार के मुद्दे उठाने पर आपको अपराध करने की अनुमति मिल जाती है? क्या एक खास तरह के वस्त्र पहन लेेने के बाद आप संविधान और कानून से उपर हो जाते हैं?
राम रहीम के बारे में जो बातें आज की जा रही हैं। उन बातों के साथ यह भी सोचना होगा कि जब डंके की चोट पर कहा जाता है कि मनुवाद ही हमारा संविधान है। जब वर्ण व्यवस्था को महिमामंडित किया जाता है। जब दलितों के खिलाफ हरियाणा में ही इतनी नफरत फैलाई जाती है कि झझर में एक मरी गाय की खाल उतारने के जुर्म में पांच दलितों की हत्या कर दी जाती है। दो मासूम बच्चों की मौत के बाद मोदी सरकार का मंत्री इसकी तुलना कुत्ते के पिल्ले को पत्थर मार देने से करता है। दलितों के खिलाफ नफरत की इंतहा यह है कि मिर्चपुर गांव के एक दलित युवक द्वारा खेलों में राष्ट्रीय स्तर का प्रदर्शन करने के बाद उसे गांव का गौरव बताने की बजाय सवर्ण इस हद तक आहत हो जाते हैं कि नौ दलित युवकों को पीट पीट कर अधमरा कर दिया जाता है। तो दलित समुदाय जाये कहां? दलितों की इन्हीं भावनाओं पर सवार होकर गुरमीत सिंह राम रहीम बन जाता है। वो ईश्वर का अवतार नहीं शाश्वत ईश्वर होने का दावा करता है।
फिर राजनीतिक दल सत्ता पाने के लिए बाबा के साथ सौदेबाजी करते हैं। सच्चा सौदा वोटों का व्यापार करता है। सौदेबाजी में बाबा जिसे चाहता है, उसे जितवा देता है, जिसे चाहता है, उसे हरा देता है। कभी कांग्रेस सच्चे सौदा के साथ सौदेबाजी किया करती थी। इसबार भाजपा ने की। सौदेबाजी नहीं, उसे सीबीआई का डर दिखाया। सौदा हुआ कि भाजपा को समर्थन देने पर भाजपा इन मुकदमों को वापस भी ले सकती है। मुकदमें भी कौन से? यौन उत्पीडऩ के मामले। यौन उत्पीडऩ भी वो, जिसकी फरियाद पीडि़ता ने भाजपा के ही शिखरपुरुष प्रधानमंत्री अटल बिहारी से की थी। यौन उत्पीडऩ और हत्या के मामलों में सजा दिलाने की बजाय, मुकदमों को ही वापस ले लेने का आश्वासन क्या अपराधी को अपराध करने के प्रोत्साहन करना नहीं है? इसी राजनीति ने भिंडरावाले को पैदा किया था।
अब तो राम रहीम की बेटी ने ही कह दिया है कि भाजपा ने सच्चा सौदा के साथ जो सौदा किया था, उसे पूरा नहीं किया है। बाबा गरीबों की भावनाओं से सौदा कर उन्हें ठगता था। भाजपा ने राम रहीम से सौदा कर उसे ठग लिया। वैसे चोरों को मोर पुरानी कहावत है।
मगर भाजपा कानून के शिकंजे से तो बाहर नहीं ला सकी। लेकिन भाजपा ने यह भी साबित किया कि उसके लिए संविधान और कानून से बढक़र उसके निजी राजनीतिक स्वार्थ हैं। जैसे बाबरी मस्जिद के समय सर्वोच्च न्यायालय को आश्वासन देने के बाद भी भाजपा की कल्याण सिंह सरकार ने मस्जिद को गिरने दिया था। वैसे ही उच्च न्यायालय के सारे आदेशों के बाद भी भीड़ को एकत्रित होने दिया। धारा144 के बाद भी लोगों को नहीं हटाया। डीआईजी और सरकार पर उच्च न्यायालय की सारी सखत टिपणियों के बाद खट्टर सरकार ने सरकारी संपत्ति को जलने दिया। जब अदालत कह रही है कि रामरहीम की संपत्ति जप्त कर नुकसान की भरपाई की जाये तब खट्टर सरकार राम रहीम का पक्ष लेकर कह रही है कि नहीं नुकसान की भरपाई सरकार करेगी।
भाजपा आज भी अपराधी बाबा के साथ खड़ी है। भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने पत्रकार वार्ता कर न्यायालय की निंदा करते हुए कहा है कि उसने दो महिलाओं की भावनाओं को ही ध्यान में रखा। लाखों श्रद्वालुओ की भावनाओं को ध्यान में नहीं रखा। भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने इससे भी आगे यह कहा है कि भीड़ को इकत्रित होता देख न्यायालय को अपना निर्णय टाल देना था। मतलब अब देश कानून से नहीं, भावनाओं के आधार पर चलना चाहिये।
भाजपा की यह सोच नई नहीं है। आसाराम यौन उत्पीडऩ मामले में भी भाजपा नेता बलात्कारी के साथ खड़े थे। जब शंकराचार्या को हत्या और बलात्कार के मामले में जेल भेजा गया, तब भी भाजपा अपराधी के साथ खड़ी थी और अब भी उसने यही किया है। जब नित्यानंद यौन उत्पीडऩ में बंद हुआ। भाजपा और संघ परिवार उसके साथ दिखे। वैसे बाबा ही अपराध के जनक हैं। इस समय यौन उत्पीडऩ और हत्या के अपराध में जेल में बंद बाबाओं में रामबक्ष, इच्छाधारी स्वामी भीमानद, स्वामी सदाचारी, ज्ञापचैतन्य, जेलों में हैं। निर्मल बाबा और राधे मां जेल की हवा खा चुके हैं। चंद्रास्वामी भी इसी श्रेणी के संत थे। ओर मजा देखिए, किसी भी बाबा ने बलात्कारी बाबा की निंदा नहीं की है।
स्थिति साफ है, आप सामंत उत्पीडऩ को खतम नहीं करेंगे। पुरातनपंथी अंधविश्वासी कुरीतियों को पुनर्जीवित करेंगे। तो कंटीली जमीन पर बाबाओं की पौध पैदा होगी। जिसे रोप कर भाजपा या कोई और पार्टी वोटों की फसल काटती रहेगी।
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