प्रदेश और देश के अखबारों में छपे विज्ञापनों का आंकलन किया जाये तो प्रदेश की जनता के पसीने की कमाई के कई करोड़ पानी की तरह बहा दिये गए हैं। यह बताने के लिए बहाये गए हैं कि प्रदेश में सत्ता पर बिराजे शिवराज को बारह साल हो गए हैं। हालांकि बारह ही क्यों? भाजपा सत्ता में 2005 में नहीं, 2003 में आई थी।
इन ढाई साल में उमा भारती और बाबू लाल गौर भी भाजपा के ही थे और वे भी मुख्यमंत्री रहे हैं। मगर भाजपा और शिवराज अपनी ही पार्टी की सरकार के दो सालों के इतिहास के पन्नों को फाड़ देना चाहते हैं। जबकि 2003 ऐतिहासिक था,क्योंकि भाजपा नेतृत्व हताशा में था और दिग्विजय सिंह अपने को अजेय मान रहे थे,तब उमा भारती ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया था। हां मगर तब भी शिवराज राधोगढ़ से चुनाव हार गए थे।
मगर बारह साल की व्यापकता में व्यापमं से ज्यादा व्यापक क्या है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार ही पूरी एक पीढ़ी की प्रतिभा और भविष्य को व्यापमं घोटाले ने नष्ट किया है। 47 लोगों की संदिग्ध मौतें हुई हैं। घोटाला निजी मेडिकल कालेजों को अपने लपेटे में लेते हुए डीमेट तक पहुंच गया है। मगर सीबीआई अपराधियों को बचाने में लगी है।
चौदह छोड़ दीजिये। बारह साल का रिकार्ड ही खंगालिये। भुखमरी के मामले में मध्यप्रदेश इथोपिया और सुमालिया से भी ज्यादा बदतर स्थिति में पहुंच जाने का जिक्र मिलेगा। शिशु और मातृ मृत्यु दर के मामले में मध्यप्रदेश सबसे आगे नजर आयेगा। बच्चों के कुपोषण और कम वजनी होने की हकीकत शिवराज सरकार के फर्जी आंकड़े भी नकार नहीं पा रहे हैं।
फि बात कानून व्यवस्था की नहीं है। सामंती उत्पीडऩ की है। बेटी बचाओ का बुलबुला भोपाल में पुलिसकर्मी की बलात्कार पीडि़त बेटी के प्रति पुलिस के रवैये से फूट गया है। दलित और आदिवासी उत्पीडऩ के मामले में प्रदेश अव्वल है। दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर चलने वाली योजनायें भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई हैं।
किसान की मंडियों में लूट हो रही है। हक मांगने या न्याय की बात करने का मतलब मंदसौर है। छ: किसानों की हत्या के बाद भी किसानों पर दमन और लूट दोनो जारी हैं। सरकारी स्कूल बंद हैं। प्राईवेट स्कूलों की दुकानें सजी हैं। उच्च शिक्षा को भी शिक्षामाफियाओं के हवाले किया जा रहा है। और परिणाम व्यापमं है। भ्रष्टाचार की गंगा में श्यामला हिल्स भी डुबकी लगा चुका है। इसीलिए मनपसंद के लोकायुक्त की नियुक्ति की जा चुकी है।
विस्थापन। राजनीतिक स्वार्थ और कारपोरेट लूट ने विस्थापन को ज्वंलत मुद्दा बना दिया है। गुजरात में चुनाव जीतने के लिए नर्मदा घाटी के चालीस हजारों परिवारों को बिना पुनर्वास विस्थापित किया जा रहा है। प्रदेश सूखे की चपेट में है। मगर सरदार सरोवर को भरने के लिए प्रदेश के बांधों को खाली किया जा रहा है। उपलब्धियां ओर भी हैं। जैसे कि राजधानी में लगे होर्डिग्ंस में बारह साल उपलब्धियां अपार के पोस्टर में अबकी बार दो सौ पार को लक्ष्य भी रख लिया गया है।
मगर दो सौ पार का रास्ता चित्रकूट से होकर जाता है। रास्ते में सबलगढ़ भी आता है। अभी तो कोलारस का चुनाव होना बाकी है। जहां शिवराज को अपनी ही मंत्री पर भरोसा नहीं है। हो भी कैसे। जब गुजरात में साहब को पसीने आ रहे हैं। आसु बहाये जा रहे हैं और वे काम नहीं आ रहे हैं तो मध्यप्रदेश में बारह साल के बाद बारह तो बजेंगे ही।
कार्टून साभार - गूगल
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