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भाजपा राज के खिलाफ मजदूर वर्ग ने फूंका विद्रोह का बिगुल

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वïन पर हुई 8 और 9 जनवरी की दो दिन की हड़ताल को, भारत के मजदूर वर्ग के आंदोलन के इतिहास में मील का महत्वपूर्ण पत्थर माना जाएगा।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वïन पर हुई 8 और 9 जनवरी की दो दिन की हड़ताल को, भारत के मजदूर वर्ग के आंदोलन के इतिहास में मील का महत्वपूर्ण पत्थर माना जाएगा।

इस हड़ताल में करीब 2 करोड़ मजदूरों तथा कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। इनमें संगठित, असंगठित तथा सरकारी, सभी क्षेत्रों के मजदूर और कर्मचारी शामिल थे। सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों के मजदूरों व कर्मचारियों, निजी उद्योगों के मजदूरों, सडक़ परिवहनकमियों, निर्माण मजदूरों, खनन मजदूरों, बागान मजदूरों, केंद्र व राज्य सरकारों के कर्मचारियों, बैंक व बीमाकर्मियों, आंगनवाड़ी, आशा, मिड डे मील आदि योजनाकर्मियों और शिक्षा संस्थाओं से जुड़े लोगों ने, देश भर में इस हड़ताल में शिरकत की।

सड़क परिवहन मजदूरों की हड़ताल का अनेक राज्यों में परिवहन सेवाओं पर भारी असर पड़ा। असम, पश्चिम बंगाल तथा केरल में हड़ताल के चलते सभी चाय बागान बंद रहे। महाराष्ट्र  तथा कर्नाटक में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा संचालित अनेक उद्यम बंद रहे। हड़ताल के सिलसिले में हजारों की संख्या में ट्रेड यूनियन नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया।

आम हड़ताल का सबसे ज्यादा असर केरल, असम, ओडिशा, पश्चिम बंगाल तथा त्रिपुरा में हुआ और वहां बंद की जैसी स्थिति हो गयी। पश्चिम बंगाल में, तृणमूल कांग्रेस के हमलों और पुलिस के दमन के बावजूद, विभिन्न क्षेत्रों में हड़ताल जोरदार तरीके से कामयाब रही। इसी प्रकार, त्रिपुरा में भी सारे दमन के बावजूद और भाजपा सरकार तथा सत्ताधारी पार्टी के हड़ताल को विफल करने के लिए सारे हथकंडे आजमाने के बावजूद, हड़ताल ने बंद जैसा रूप ले लिया। 
इस हड़ताल की एक उल्लेखनीय विशेषता यह थी कि इसी मौके पर ग्रामीण इलाकों में भूमि अधिकार आंदोलन और किसान सभा ने भी ग्रामीण क्षेत्र में विरोध कार्रवाइयों का आह्वïान किया था। बहुत बड़े पैमाने पर ग्रामीण इलाकों में रास्ता रोको और रेल रोको आंदोलनों का आयोजन किया गया।

2016 की 2 सितंबर की एक दिन की आम हड़ताल के बाद आयी इस जबर्दस्त कार्रवाई ने, मोदी सरकार की खतरनाक नवउदारवादी नीतियों के खिलाफ और मजदूरविरोधी कानून थोपने की उसकी कोशिशों के खिलाफ, मजदूर वर्ग के बढ़ते असंतोष और विक्षोभ को ही स्वर दिया है।

मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निजीकरण करने के रास्ते पर आगे से आगे ही बढ़ती जा रही है और इसमें रक्षा उत्पादन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र का निजीकरण भी शामिल है। दूसरी ओर, सीधे-सीधे मजदूरों के हितों को प्रभावित करने वाले मामलों में भी ट्रेड यूनियनों से परामर्श करने की यह सरकार कोई जरूरत ही नहीं समझती है। उल्टे मजदूरों के संघर्षों को दबाने के लिए और ट्रेड यूनियन नेताओं को गिरफ्तार करने के लिए, बढ़ते पैमाने पर दमनकारी कानूनों का सहारा लिया जा रहा है।

दो दिन की यह आम हड़ताल मोदी सरकार के खिलाफ मेहनकश जनता के विभिन्न तबकों की अनेक हड़तालों तथा विरोध कार्रवाइयों की पृष्ठïभूमि में आयी है। 9 अगस्त का ट्रेड यूनियनों व किसान सभा का जेल भरो आंदोलन, 5 सितंबर की दिल्ली की विशाल मजदूर-किसान संघर्ष रैली और 29-30 नवंबर का किसान मुक्ति मार्च, सभी मजदूर वर्ग तथा किसान जनता की संघर्ष की बढ़ती हुई भावना के साक्ष्य हैं।

मोदी सरकार, मजदूर वर्ग के आंदोलन के प्रति शत्रुतापूर्ण रुख रखती है और मजदूरों की जायज मांगों के साथ हिकारत से पेश आती है। इसकी अभिव्यक्ति, इस हड़ताल के पहले ही दिन, 8 जनवरी को लोकसभा में हुई, जहां केंद्रीय श्रम मंत्री ने ट्रेड यूनियन (संशोधन) विधेयक-2019 पेश किया, जो केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की मान्यता के मामले में सरकार को मनमानी शक्तियां देने का प्रयास करता है। श्रम मंत्री ने बड़ी हेकड़ी से देशव्यापी आम हड़ताल को भी यह कहकर खारिज कर दिया कि उसका तो कोई असर ही नहीं पड़ा है।

देश की मेहनतकश जनता के सामने यह साफ हो गया है कि जब तक मोदी सरकार बनी हुई है, मजदूर विरोधी तथा जन विरोधी नीतियों से कोई राहत नहीं मिलने वाली है। दो दिन की आम हड़ताल का संकेत स्पष्टï है-देश का मजदूर वर्ग असंदिग्ध रूप से आने वाले लोकसभा चुनाव की राजनीतिक लड़ाई में अपनी जगह लेगा और भाजपा तथा मोदी सरकार की हार सुनिश्चित करेगा।
 


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प्रकाश करात

लेखक-सी.पी .आई.(एम) पोलिट ब्यूरो सदस्य है

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