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भाजपा की हार सुनिश्चित करो

वैसे तो मध्यप्रदेश का चुनावी नजारा देश के अन्य राज्यों से अलग नहीं है। भाजपा की हजाशा और गुटबाजी के नए नए नजारे देखने को मिल रहे हैं। सतना में भाजपा की महापौर जब केन्द्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिलने के लिए पहुंची तो...

वैसे तो मध्यप्रदेश का चुनावी नजारा देश के अन्य राज्यों से अलग नहीं है। भाजपा की हजाशा और गुटबाजी के नए नए नजारे देखने को मिल रहे हैं। सतना में भाजपा की महापौर जब केन्द्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिलने के लिए पहुंची तो वहां उनकी ही एक पार्टी की महिला नेत्री के साथ उनका विवाद हुआ। विवाद तेज हुआ। गाली गलौज तक पहुंचा और फिर हाथापाई की ऐसी नौबत आई कि महापौर के हाथ ही हड्डी टूट गई। उनके पलास्टर चढ़ा है। पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज है। 


    उधर मारपीट की आरोपी महिला नेत्री ने भी पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है। उसका कहना है कि उसको महापौर ने गाली ग्लौज की। साथ ही महापौर पर मोबाईल चोरी का आरोप भी लगाया है। पुलिस जांच कर रही है और चर्चा है कि महापौर भाजपा में कुछ ही घंटो की मेहमान है। उनके कांग्रेस में जाने के चर्चे आम हैं। 29 अप्रैल को मुख्यमंत्री सतना पहुंच रहे हैं और तभी बहुत कुछ खुलासा होने वाला है।


    भाजपा का संकट सिर्फ उसकी भगदड़ नहीं है। भाजपा के लोग परेशानी के सबब बहुत हैं। किसी भी नारे और मुद्दे पर जनता का समर्थन न मिलने पर भाजपा ने भोपाल से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को खड़ा कर अपना अंतिम साम्प्रदायिक कार्ड चला है। मगर यह कार्ड भी उलटा पड़ता दिखता है। प्रज्ञा के बयानों से भाजपा की दुविधा अपनी जगह पर है। उसे तो प्रधानमंत्री सहित पूरी भाजपा बेशर्मी के साथ बचाव कर रही है। मगर भाजपा के अंदर प्रज्ञा को लेकर गुटबाजी चरम पर है। 


    भाजपा के प्रदेश प्रभारी और विनय सहस्त्रबुद्वे ने प्रज्ञा की चुनाव संचालन के लिए बैठक बुलाई थी। इस बैठक में वर्तमान और पूर्व विधायकों सहित पार्टी के अधिकांश नेता नहीं पहुंचे। सहस्त्रबुद्वे इस घटनाक्रम से नाराज भी हुए। मगर इस नाराजगी से क्या होगा? उन्हें भी यह तो समझ में आ ही गया है कि भाजपा में सब ठीक ठाक नहीं है । कार्यकर्ताओं और नेताओं की नाराजगी से जीत की राह और कठिन हो जाती है। 


    भाजपा नेताओं की नाराजगी पूरे प्रदेश में है। इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय सिर्फ इतना ही करवा पाये हैं कि सुमित्रा महाजन का टिकट कट गया है। मगर वे न तो खुद प्रत्याशी बन पाये हैं और न ही अपने किसी समर्थक को प्रत्याशी बना पाये हैं। कुल मिलाकर इंदौर की प्रचलित भाषा में ताई और भाई का पंगा अभी खत्म नहीं हुआ है। 


    रीवा में जहां विधानसभा चुनावों में भाजपा ने जिले की सभी आठों सीटों को जीता है, वहां अब यह स्थिति है कि भाजपा विदेशमंत्री सुषमा स्वराज की आमसभा तक नहीं करवा पाई है। उन्हें भाजपा कार्यालय में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करना पड़ा है। 


    भाजपा ने जनता की नाराजगी को कम करने के लिए दस सांसदों के टिकट काटे हैं। नए लोगों को टिकट देने के बाद भी अखबारों के अनुसार ही 17 स्थानों पर भाजपा को कड़ी चुनौती मिल रही है। उल्लेखनीय है कि पिछली लोकसभा में भाजपा ने 29 में से 27 सीटें जीती थी। अब बहमत सीटों पर भाजपा प्रत्यशियों को ज्यादा समय चुनाव की बजाय पार्टी कार्यकर्ताओं के मानमनोबल में जा रहा है। अपवाद को छोड़ कर अधिकांश सांसद, अपने क्षेत्रों में प्रचार नहीं कर रहे हैं। कुछ ने तो साफ साफ पार्टी को बता दिया है कि वे पार्टी का काम नहीं करेंगे और एक तो र्निदलीय चुनाव लड़ रहे हैं। 


    भाजपा ने गुटबाजी को कम करने का जिम्मा शिवराज सिंह को दिया है। यह अपने आप में संघ की हार है। क्योंकि भाजपा में संागठनिक मामलों में संघ ही प्रमुख और निर्णायक भूमिका में होता है। शिवराज को जिम्मेदारी देने का अर्थ है कि हालात संघ के काबू से बाहर हो गए हैं। 


    लेकिन इस तीखी लड़ाई के बावजूद भाजपा की हार इतना आसान नहीं है, जैसाकि कांग्रेस मान बैठी है। उसे लगता है कि बिना सक्रिय हुए, दूसरी पार्टियों की हताशा और जोड़तोड़ से भाजपा को हराया जा सकता है। भाजपा को हराने के लिए एक व्यापक राजनीतिक अभियान की जरूरत है। जिसमें भाजपा और संघ परिवार के खिलाफ व्यापक अभियान चलाना होगा। भाजपा के गर्म हिन्दुत्व का विकल्प नरम हिन्दुत्व नहीं हो सकता है। साम्प्रदायिकता का विकल्प धर्मनिरपेक्षता ही होता है। 


About Author

जसविंदर सिंह

राज्य सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) मध्यप्रदेश

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