Sidebar Menu

राजद्रोह कानून निरस्त करो-दुरुपयोग का रास्ता बंद करो

भाजपा सरकार के दुर्भावनापूर्ण रुख का ही नतीजा है कि पुलिस ने राजद्रोह की धारा (भारतीय दंड संहिता की दफा-124ए) का सहारा लिया है। यह वही कानून है जो ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने हमारे स्वतंत्रता संघर्ष के नेताओं के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए बनाया था।

फोटो - गूगल

दिल्ली पुलिस ने राजद्रोह के आरोप में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व-अध्यक्ष, कन्हैया कुमार तथा अन्य नौ लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है। विश्वविद्यालय परिसर में हुए एक प्रदर्शन में, कथित रूप से राष्ट्र विरोधी नारे लगाए जाने को लेकर एक पूरी तरह से गढ़े हुए मामले में, कन्हैया कुमार तथा अन्य लोगों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के तीन साल बाद, यह चार्जशीट पेश की गयी है।

    भाजपा सरकार के दुर्भावनापूर्ण रुख का ही नतीजा है कि पुलिस ने राजद्रोह की धारा (भारतीय दंड संहिता की दफा-124ए) का सहारा लिया है। यह वही कानून है जो ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने हमारे स्वतंत्रता संघर्ष के नेताओं के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए बनाया था। यह शर्मनाक है कि इस तरह की दफा आजादी के बाद भी दंड संहिता में बनी हुई है। जाहिर है कि तत्कालीन कांग्रेसी शासकों ने अपने वर्गीय हितों की रक्षा करने के लिए ही इसे बनाए रखने का फैसला लिया था।

    राजद्रोह की इस धारा का पुलिस तथा विभिन्न सरकारों द्वारा अंधाधुंध तरीके से इस्तेमाल किया जाता रहा है और इसका सहारा लेकर अपने राजनीतिक विरोधियों को और जनसंघर्षों का नेतृत्व मुहैया कराने वालों को इसका निशाना बनाया जाता रहा है। अभी सप्ताह भर पहले ही असम में, जहां भाजपा की सरकार है, जाने-माने बुद्धिजीवी हीरेन गोहांइ, राजनीतिक कार्यकर्ता अखिल गोगोइ तथा पत्रकार, मंजीत महंता के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। उनका अपराध सिर्फ इतना था कि उन्होंने संसद में नागरिकता (संशोधन) विधेयक पेश किए जाने के खिलाफ, सार्वजनिक भाषण दिए थे।

    राजद्रोह की धारा--124ए--एक अति-दमनकारी धारा है। यह धारा, राजद्रोह को ऐसी किसी भी कार्रवाई के रूप में परिभाषित करती है जो, 'कानून के द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या हिकारत पैदा करती हो या पैदा करने की कोशिश करती हो या उसके प्रति असंतोष भडक़ाने की कोशिश करती हो।' मोदी के निजाम में तो ऐसे हरेक व्यक्ति को ही, जो इस सरकार का विरोध करता है या प्रधानमंत्री की आलोचना करता है, राष्ट्र विरोधी करार दे दिया जाता है और इस तरह राजद्रोह की दफा में आरोपित किया जा सकता है।

    हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने केदारनाथ साहनी फैसले (1962) में इस दफा को सीमित कर दिया था और स्पष्टï रूप से यह कहा था कि यह दफा तभी लगायी जा सकती है जब हिंसा हो या साफ तौर पर हिंसा के लिए उकसाया जा रहा हो, इसके बावजूद दंड संहिता की राजद्रोह की धारा का अंधाधुंध इस्तेमाल जारी है। अभी कुछ ही समय पहले की बात है कि कुछ लोगों को गिरफ्तार कर, उन पर राजद्रोह की धारा सिर्फ इसलिए लगा दी गयी थी कि वे सिनेमा हॉल में राष्ट्र गान बजने पर खड़े नहीं हुए थे!

    जब तक राजद्रोह की यह धारा (दफा 124ए) देश के कानून का हिस्सा बनी रहेगी, सुप्रीम कोर्ट के तमाम स्पष्टीकरण के बावजूद, सत्ता में बैठे लोगों द्वारा उसका दुरुपयोग किया जाता रहेगा। इसलिए, यह जरूरी है कि राजद्रोह की दफा को भारतीय दंड संहिता से ही हटा दिया जाए।

    इसी प्रकार, राष्टï्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) तथा अवैध गतिविधियां (निवारण) कानून (यूएपीए) जैसे कानूनों का, जो निवारक नजरबंदी तथा जमानत से वंचित किए जाने का अधिकार देते हैं, दुरुपयोग किया जा रहा है। हाल ही में उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर प्रकरण में कथित गोकशी के तीन आरापियों को एनएसए में बंद किया गया है। दूसरी ओर, उसी घटना में इंस्पैक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या के आरोपियों पर एनएसए नहीं लगाया गया है। इसी प्रकार, तथाकथित एलगार परिषद षडयंत्र केस में गिरफ्तार किए गए आठ नागरिक अधिकार कार्यकर्ता, यूएपीए के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए जाने के चलते जेल में पड़े हुए हैं। 

    असहमति तथा राजनीतिक विरोध की आवाजों को दबाने के लिए,  इन दमनकारी कानूनों का इस्तेमाल बंद होना चाहिए। इस दिशा में पहला कदम होगा, राजद्रोह की धारा का निरस्त किया जाना।  


About Author

प्रकाश करात

लेखक-सी.पी .आई.(एम) पोलिट ब्यूरो सदस्य है

Leave a Comment