प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल लोकसभाई क्षेत्र से भाजपा ने अपना उम्मीदवार बना दिया है। यह 17वीं लोकसभा के चुनाव में एक महत्वपूर्ण तथा अनिष्टïकर क्षण का द्योतक है। भाजपा का यह फैसला वास्तव में इस चुनाव के उसके वास्तविक मंच का ही एलान है। यह मंच, दीदादिलेरी से उग्रपंथी हिंदुत्व का है, अपने तमाम नकारात्मक निहितार्थों के साथ।
प्रज्ञा ठाकुर, 2008 के मालेगांव विस्फोट कांड की अभियुक्त है। उस पर उस गिरोह की मुखिया होने का आरोप है, जिसने मालेगांव विस्फोट में विस्फोट को अंजाम दिया था। उसके खिलाफ दायर की गयी चार्जशीट बताती है कि विस्फोटकों से लदी उसकी मोटर साइकिल का ही इस विस्फोट के लिए इस्तेमाल किया गया था। इसछह लोग मारे गए थे।
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही, उसके खिलाफ अभियोगों को कमजोर करने की कोशिशें शुरू हो गयी थीं। वास्तव में, केंद्रीय जांच एजेंसी एनआइए ने तो अदालत में बाकायदा यह दावा भी किया था कि उसके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं ही नहीं। लेकिन, अदालत ने उसकी इच्छा पूरी करने से इंकार कर दिया और अवैध गतिविधि निवारण कानून (यूएपीए) के अंतर्गत उस पर मुकद्दमा शुरू करने का आदेश दिया। वह अभी जमानत पर बाहर है।
आतंकवाद की ऐसी आरोपी को भाजपा ने भोपाल से अपना उम्मीदवार बनाया है। इस बीच प्रज्ञा ठाकुर ने अपने उग्र-हिंदुत्ववादी और मुस्लिम-द्वेषी विचारों को छुपाने की भी कोई कोशिश नहीं की है।
चुनाव के लिए नामजदगी का अपना पर्चा भरते ही प्रज्ञा ठाकुर ने दिवंगत पुलिस अधिकारी, हेमंत करकरे पर घिनौना हमला बोल दिया। करकरे, महाराट्र पुलिस के आतंकवादविरोधी दस्ते (एटीएस) मे मुखिया था। इसी एटीएस ने मालेगांव विस्फोट कांड की तफ्तीश की थी और प्रज्ञा ठाकुर तथा उनके संगियों को गिरफ्तार किया था। प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि उसने करकरे को श्राप दिया था और उसके श्राप के चलते ही 45 दिनों में ही आतंकवादियों की गोलियों से उनकी मौत हो गयी। 2008 के नवंबर में मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में सीने पर गोली खाने वाले जांबाज पुलिस अफसरों में करकरे भी थे। अपने कर्तव्य का पालन करते हुए शहीद हुए एक अफसर को निरादर करने वाले प्रज्ञा ठाकुर के ऐसे घिनौने बयान के बावजूद, भाजपा को उसकी निंदा करना भी मंजूर नहीं हुआ। उसने सिर्फ यह कहकर अपना पीछा छुड़ा लिया कि ये उनके अपने निजी विचार हैं, जो शायद पुलिस के हाथों उन्हें जो यातनाएं झेलनी पड़ीं, उससे निकले होंगे।
इस बयान के लिए अपनी चौतरफा आलोचनाओं से लापरवाह, प्रज्ञा ठाकुर का अगला ही बयान यह आया कि जब बाबरी मस्जिद गिरायी गयी, वह मस्जिद के गुंबद पर चढकऱ उसे गिराने वालों में थी और अब वह उसी स्थल पर राम मंदिर का निर्माण सुनिश्चित करेगी।
प्रज्ञा ठाकुर का उम्मीदवार बनाया जाना, एक सोचा-समझा पैंतरा है। जिस तरह नरेंद्र मोदी ने उसे उम्मीदवार बनाए जाने को सही ठहराया है, उससे यह बात बिल्कुल साफ हो जाती है। एक साक्षात्कार में मोदी कहा कि उसका उम्मीदवार बनाया जाना, उन लोगों का जवाब है जो, ‘पांच सौ साल पुरानी उस सभ्यता को बदनाम करते हैं, जो वसुधैव कुटुम्बकम को मानने वाली है। उन्होंने उन्हें आतंकवादी बताया।’ इससे पहले, 1 अप्रैल को वर्धा के अपने भाषण में भी मोदी हिंदू आतंक की बात करने वालों को, पूरे हिंदूू समुदाय का अपमान करने का अपरााधी करार दे दिया था। उस समय उन्होंने एलान किया था - ‘हजारों साल के इतिहास में एक भी उदाहरण नहीं है कि किसी हिंदू ने आतंकवाद किया हो।’ यह दावा ही इतना बेतुका है कि इसके पीछे कोई तर्क खोजा ही नहीं जा सकता है। नाथूराम गोडसे से लेकर, 2012 के गुुजरात के नरसंहार और दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी तथा गौरी लंकेश की हत्याओं तक, हिंदू आतंकी हरकतों की लंबी शृंखला है। इस तरह के दावों के पीछे यही पूर्वाग्रह काम कर रहा है कि मुसलमान ही आतंकवादी हो सकते हैं, हिंदू नहीं।
अमित शाह और भाजपा का दावा है कि प्रज्ञा ठाकुर तो एक निर्दोष साध्वी है, जिसे एक झूठे मामले में फंसाया गया है। दूसरी ओर, वही संघी पलटन उसका यह कहकर महिमामंडन करने में लगी हुई है कि उसने हिंदुओं की हत्याओं का बदला लिया था।
प्रज्ञा ठाकुर का उम्मीदवार बनाया जाना, भाजपा के चुनाव अभियान में, मतदाताओं का ध्रुवीकरा करने के लिए, सांप्रदायिकता पर हीमुख्य जोर दिए जाने की पृष्ठïभूमि में आया है। नरेंद्र मोदी तथा अमित शाह से लेकर नीचे तक, भाजपा के नेताओं के भाषण दिन पर दिन ज्यादा से ज्यादा कर्कश होते जा रहे हैं। खुल्लमखुल्ला, हिंदुओं से इसकी दुहाइयां दी जा रही हैं कि बाहरी तथा अंदरूनी खतरों से अपनी हिफाजत करें। करीब-करीब खुलेआम इसका डर दिखाया जा रहा है कि अल्पसंख्यक भीतरघात करेंगे। युद्घोन्मादी प्रचार के लिए सैन्य बलों की कार्रवाइयों को भुनाया जा रहा है। और नागरिकता (संशोधन) विधेयक और राष्टï्रीय नागरिक रजिस्टर को, नागरिकों के बीच से ‘परायों’ को चुन-चुनकर निकालने के औजारों के रूप में पेश किया जा रहा है।
इस तरह के विभाजनकारी चुनाव अभियान में, यह भगवाधारी आतंक की आरोपी तथा घोर मुस्लिम-द्वेषी शख्शियत, इस चुनाव के लिए भाजपा-आरएसएस के एजेंडा की प्रतीक बन गयी है। बेशक, यह भी कोई एकदम नया ही नहीं है। आखिरकार, एक औैर हिंदू कट्टïरपंथी और घोर मुस्लिम द्वेषी भगवाधारी-आदित्यनाथ-को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया है।
सब का साथ और सब का विकास के नारे को बाकायदा और पूरी तरह से छोड़ दिया गया है। उसकी जगह पर एक खुल्लमखुल्ला हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक-सैन्यवादी-कट्टïरपंथी दुहाई को बैठा दिया गया है। इससे वे लोग भी चिंतित हुए बिना नहीं रह सकते हैं, जो अब तक भी इस विश्वास से चिपके रहे हैं मोदी, विकास का प्रतीक है। अब किसी भ्रम की कोई गुंजाइश ही नहीं बची है। देश को बचाने का एक ही रास्ता है--भाजपा और मोदी को हराओ!
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