Sidebar Menu

अमोली और उसकी सहेलियों का चुनाव घोषणापत्र 

अमोली बहुत धनी है। उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती है। लेकिन उसकी समझ में नहीं आता कि जब वह माँ से गांव में आये आइसक्रीम वाले से कुल्फी की जिद करती है तो माँ यह क्यों कहती कि नहीं आज नहीं। बाबू को मजदूरी नहीं मिली।

पीली फ्रॉक में जो बैठी है वह सुअरहा गाँव की अमोली है। होने को वह चमेली भी हो सकती है, दीपाली भी, सृष्टि भी हो सकती है और समीना भी। 

चमकती आंखों में कौतुक और प्यारी सी मासूम मुस्कान लिए भरी दुपहरी में भी चुनावी सभाओं में इधर उधर ठुनकते अधनंगे आदिवासी और दलित बच्चे कई बार धडक़न बढा देते हैं। मन पूछता है कि इन चुनावों में ये बच्चे कहीं है भी कि नहीं?  हर चुनाव में बच्चे बदल जाते हैं लेकिन उनका अधनंगापन कायम रहता है। कितना डरावना है न यह एक लोकतंत्र के लिए।

सेना, शहीद सैनिक, जाति, गोत्र, धर्म, खानदान आदि सबको अपने चुनावी प्रचार में उपयोग करने वाली पार्टियो के घोषणापत्रों से ये बच्चे गुम हैं। उनके भाषणों में बच्चों का कोई जिक्र तक नही होता। अमोली को उसकी माँ ने बताया कि नेता को वोट देने से सरकार बनती है और सरकार अमोली के लिऐ काम करती है। लेकिन अमोली के स्वस्थ रहने के लिए, उसके स्कूल, उसके घर मे पानी, बिजली के लिये तो कोई कुछ कह ही नही रहा है। 

अमोली बहुत धनी है। उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती है। लेकिन उसकी समझ में नहीं आता कि जब वह माँ से गांव में आये आइसक्रीम वाले से कुल्फी की जिद करती है तो माँ यह क्यों कहती कि नहीं आज नहीं। बाबू को मजदूरी नहीं मिली। आज पैसे नही है। अमोली परेशान है कि उसके बाबू तो उसके उठने के पहले काम पर जाते हैं और देर रात आते हैं इतना काम करने पर भी उन्हें मज़दूरी क्यों नही मिलती?

अमोली पूछ सकती तो पूछती कि अकेले उसके रीवा जिले में पिछली साल में ही 1001 बच्चे, यानी रोज 3 से अधिक बच्चे, अकाल मौत के शिकार क्यों हो गये। उनकी मौतें नेता-नेतानियों के चुनावी भाषणों में से गायब क्यों है। पूछती कि उसके स्कूल में पढ़ाई क्यों नही होती और इसे ठीक कब किया जाएगा। अमोली को पानी मे खेलना बहुत पसंद है लेकिन उसकी माँ डांट देती है कि पीने का पानी भी नही है और तुम्हे पानी से खेलना है। अमोली पूछना चाहती है गांव में आने वाले नेताओं से कि वो पानी मे खेल सके इसके लिए वे क्या करेंगे। उसे दूध बहुत पसंद है लेकिन बाबू कहते हैं बेटा हम गरीब हैं दूध अमीरों के बच्चों के लिए होता है। अमोली को समझ मे नही आता अमीर गरीब।

क्या पानी, पढ़ाई, अस्पताल, दूध, आइसक्रीम अमीरों के बच्चों के लिए है? अमोली और उसकी सखियों को जब यह बताया तो उन्होंने तय कर लिया कि वे अपना घोषणापत्र खुद बनाएगी और गांव में आने वाले नेताओं को कहेगी कि जो उसके लिए पानी, पढ़ाई, आइसक्रीम, उसकी माँ के लिए अस्पताल और बाबू के लिए मजदूरी दिलाने का इंतजाम करेगा वे उसी को वोट देने के लिए माँ और बाबू को कहेगी।

अमोली नहीं जानती कि इस कानफाडू शोर वाले चुनाव में उसकी सारी मांगों को मुद्दा बनाने वाला भी एक घोषणापत्र है; माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र। अमोली और उसके दोस्तों की अलमस्त मासूम हंसी कायम रहे, उसकी माँ स्वस्थ रहे, उसके बाबू को पूरी मजदूरी मिले, अमोली और उसके दोस्तों को बड़े होने पर नौकरी मिले, घर मिले ये सब इस घोषणापत्र में है। 
अमोली के बचपन को बचाना है तो,  मनुष्य को मनुष्य समझने और उसे इंसान बनने के बराबरी के अवसर देने के मंसूबे यथार्थ में उतारना है तो, भारत को भारत और दुनिया को दुनिया बनाना है तो अमोली को एजेंडे पर लाना होगा।

 


About Author

संध्या शैली

लेखिका अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति मध्यप्रदेश की उपाध्यक्ष है.

Leave a Comment