Sidebar Menu

अधबीच में चरम पर है मोदी की हताशा 

मोदी ने हर साल 2 करोड़ यानी पांच साल में 10 करोड़ नयी नौकरियों का वादा किया था। लेकिन, हुआ क्या? बेरोजगारी आज, 45 साल के अपने शीर्ष पर पहुंच गयी है।

फोटो -गूगल

इस आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा  कानफोडू चुनाव अभियान चला रहे हैं, उनकी हताशा की ही गवाही देता है। पहले, महाराष्ट्र में लातूर में उन्होंने जनता से पुलवामा के शहीदों के नाम पर वोट मांगे थे। यह दूसरी बात है कि उनके इस भाषण के मामले में चुनाव आयोग ने अब तक कोई कार्रवाई ही नहीं की है। और तीसरे चरण के मतदान के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन, 21 अप्रैल को गुजरात में मोदी ने अपनी चुनाव सभा में दावा किया कि अगर पाकिस्तान ने भारतीय वायु सेना के पायलट, अभिनंदन को नहीं लौटाया होता, तो उसको ‘कत्ल की रात’ देखनी पड़ती। विडंबना यह है कि 1 मार्च को यानी जिस रोज पाकिस्तान ने भारतीय वायु सेना के पायलट, अभिनंदन को वर्तमान को लौटाया था, अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने, वियतनाम में हनोइ में, विश्व मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि जल्द ही दुनिया, भारत-पाकिस्तान के मामले में अच्छी खबर सुनेगी। ट्रम्प ने यह एलान, पाकिस्तान के अभिनंदन को लौटाने के कुछ घंटे पहले ही कर दिया था!

पुन:, राजस्थान में बाड़मेर में एक और रैली में मोदी ने एलान किया कि, ‘भारत ने पाकिस्तान  की धमकियों से डरने की नीति को छोड़ दिया है। वे आए दिन धमकी देते थे कि, ‘‘हमारे पास नाभिकीय बटन है।’’ तो हमारे पास क्या है? हमने दीवाली के पटाखों के लिए रखे हैं क्या?’

वोट लेनेे के लिए देश के सशस्त्र बलों के नाम का ऐसा नंगा इस्तेमाल, नाभिकीय हमले की धमकियां, यह सब मोदी की घोर हताशा को ही दिखाता है। इस इताशा की वजह यही है कि मोदी को साफ दिखाई दे रहा है कि और हरेक मुद्दे पर तो जनता उनकी सरकार की छुटटी  करने का मन बनाए बैठी है। 

 रोजी-रोटी का सत्यानाश
सचाई यह है कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा-आरएसएस जोड़ी को सूझ ही नहीं रहा है कि रोजी-रोटी के मोर्चे पर मोदी के राज में जनता को जैसी तबाही का सामना करना पड़ा है, उस पर जनता की भारी नाराजगी का कैसे सामना करें। पिछले पांच साल में जनता को अपने जीवन-स्तर पर, लगातार, चौतरफा तथा सुनियोजित हमला हुआ है। ‘‘अच्छे दिन’’ लाने के वादे के साथ सत्ता में आयी मोदी सरकार के राज में, 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने वादों के जो भी गुब्बारे जनता को खुश करने के लिए फुलाए थे, एक बाद एक सब के सब  इन पांच सालों में फूट गए हैं।

मोदी सरकार ने जीडीपी के आंकड़ों को ही बदल दिया था, ताकि उसके राज में आर्थिक वृद्घि दर वास्तविक से ज्यादा दिखाई देने लगे। लेकिन, आंकड़ों के इस हेर-फेर के बावजूद, इस साल जीडीपी की वृद्धि दर, पिछले पांच साल में सबसे निचले स्तर पर रही है। मोदी ने हर साल 2 करोड़ यानी पांच साल में 10 करोड़ नयी नौकरियों का वादा किया था। लेकिन, हुआ क्या? बेरोजगारी आज, 45 साल के अपने शीर्ष पर पहुंच गयी है। सेंटर फॉर मॉनीटरिंग ऑफ इंडियन इकॉनमी (सीएमआइई) के अनुमान के अनुसार, नोटबंदी से  50 लाख  लोगों का रोजगार तो सीधे-सीधे छिन गया था। इसके ऊपर से, डेढ़ करोड़ और लोगों की रोजी-रोटी तबाह हुई है।

खेती की बदहाली बढ़़ती ही जा रही है। मोदी सरकार ने अपना यह वादा बड़ी नंगई से भुला दिया कि किसानों को उनकी पैदावार के लिए, उनकी कुल उत्पादन लागत का कम से कम डेढ़ गुना, समर्थन मूल्य के तौर पर दिलाया जाएगा। उन्होंने किसानों से किए गए इस वादे को भी तोड़ दिया कि उन्हें एक बार कर्जमाफी दी जाएगी, ताकि कर्ज के बोझ के तले दबे किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर न होना पड़े।

मोदी राज के पांच साल के बड़े हिस्से में, औद्योगिक क्षेत्र में गतिरोध बना रहा है और अब तो इस क्षेत्र में शुद्घ गिरावट के लक्षण नजर आने लगे हैं। 2019 की जनवरी में औद्योगिक वृद्घि दर 1.7 फीसद रही थी, जो फरवरी में गिरकर 0.1 फीसद के स्तर पर आ गयी। याद रहे कि 2018 की जनवरी में यही दर, 6.9 फीसद थी। याद रहे कि मोदी ने 2014 के अपने चुनाव प्रचार के दौरान, 12 से 14 फीसद तक की सालाना औद्योगिक वृद्धि  दर लाकर दिखाने का वादा किया था! पूंजी माल क्षेत्र को, देश के आर्थिक स्वास्थ्य का संकेतक माना जाता है। 2019 के फरवरी के महीने में इस क्षेत्र ने पूरे 8.8 फीसद का संकुचन दर्ज कराया था, जबकि जनवरी में इसी दर में ऋण में 3.4 फीसद की वृद्धि हुई थी!

मेक इन इंडिया  का इतना ढोल पीटे जाने के बावजूद, सचाई यह है कि मोदी राज के पांच साल में, देश में आए कुल पूंजी प्रवाह में, प्रत्यक्ष विदेशी निवेशों का अनुपात 28 फीसद से ज्यादा नहीं रहा है। बाहर से आयी शेष 72 फीसद पूंंजी, सट्टï बाजाराना फायदे बटोरने के लिए, वित्तीय बाजारों में ही आयी है। याद रहे कि मोदी राज से पहले के पांच साल के दौरान, 2009 से 2014 के बीच, देश में आ रहे कुल पूंजी प्रवाह में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का हिस्सा पूरे 48 फीसद रहा था।

इसी प्रकार, भारत के विदेश व्यापार में बढ़ोतरी के बड़े-बड़े दावों के बावजूद, भारत का व्यापार घाटा यानी उसके आयातों और निर्यातों के बीच का अंंतर, 2018-19 में 176 अरब डालर के रिकार्ड अंक पर पहुंच गया। 

तेल उत्पादों की कीमतों में मुसलसल भारी बढ़ोतरी के चलते, हमारी जनता के विशाल बहुमत और यहां तक मध्य वर्ग के भी जीवन स्तर में भारी गिरावट आयी है। इसके ऊपर से, 2014 से 2018 के बीच, दस आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में औसतन 7.5 फीसद सालाना की बढ़ोतरी हो रही थी। इसके चलते, एक किलो चीनी  का दाम, 2014 के 24 रु. प्रति किलोग्राम के स्तर से बढकर, 2018 में 42 रु.  पर पहुंच चुका था। इसी प्रकार, दाल का दाम इसी अवधि में 47 रु. प्रति किलोग्राम से बढकर, 70 रु. प्रति किलोग्राम पर पहुंच गया। इसी अवधि में दूध का दाम 36 रु. प्रति लीटर से बढकर, 45 रु. प्रति लीटर पर पहुंच गया। याद रहे कि ये सभी दाम तो सिर्फ अखिल भारतीय औसत दिखाते हैं।

दरबारी पूंजीवाद का बोलबाला
मोदी सरकार ने एक ओर तो इस मुसलसल आर्थिक हमले से जनता को रत्तीभर राहत देने से और खासतौर पर कर्ज के बोझ तले देश के अन्नदाता को एक बार  की ऋण माफी देने से इंकार कर दिया है और दूसरी ओर, इन्हीं पांच सालों मेंं उसने अपने दरबारी पूंजीपतियों द्वारा देश के बैंकों से लिए गए, पूरे 5,55,603 करोड़ रु0 के ऋण माफ कर दिए हैं। याद रहे कि पिछले दस साल में बैंकों से लिए गए इस तरह के जितने ऋण माफ किए गए हैं, उनमें 80 फीसद मोदी सरकार के दौर में ही माफ किए गए हैं। इसके बावजूद, मोदी सरकार इस तरह ऋण माफी पाने वालों के नाम उजागर करने के लिए तैयार नहीं है। इन नामों को छुपाए रखने का एक ही मकसद है कि वह नहीं चाहती है कि जनता को पता चलेगा कि उसे राजनीतिक चंदा कहां से मिल रहा है? यह इस देश में देखने में आए बदतरीन किस्म के दरबारी पूंजीवाद का मामला है। इसी बीच, सरकार के प्रवर्तन निदेशालय ने ही यह जानकारी दी है कि ऐसे पूरे 36 बड़े ठग, हजारों करोड़ रु0 का सार्वजनिक धन लूटने के बाद, देश ही छोडकर फुर्र हो गए हैं। इसका अर्थ यह है कि मोदी सरकार ने अपने इन कृपापात्रों को सार्वजनिक धन लूटकर, देश छोडकर भाग जाने दिया है, जिससे इस तरह लूटा गया धन वापस मिलने और दोषियों को सजा दिए जाने का रास्ता ही बंद हो गया है।

भावनाएं भडकाने का खेल
अचरज नहीं कि अपनी रोजी-रोटी पर मोदी राज के इस हमले के खिलाफ आम जनता के बीच भारी गुुस्सा है और इसे देखते हुए चुनाव में भाजपा और उसके संगियों की हार तय नजर आ रही है। इसी को देखते हुए, नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद से लड़ाई और देश के सशस्त्र बलों की कुर्बानियों की दुहाइयों का निहायत नंगई से इस्तेमाल करते हुए, भावनाएं भडकाने वाला बहुत ही हमलावर अभियान छेड़ा है, ताकि जनता को भ्रमित कर, समर्थन हासिल किया जा सके। इस प्रक्रिया में भाजपा-आरएसएस जोड़ी खुल्लमखुल्ला और लगातार, चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए आदर्श चुनाव संहिता के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करती आयी है। जाहिर है कि इसके कारण समझ पाना कोई मुश्किल नहीं है कि क्यों चुनाव आयोग, सत्ताधारी पार्टी को अपने ही दिशा-निर्देशों का इस तरह खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करने दे रहा है?

आइए, हम इधर मोदी द्वारा किए जा रहे कुुछ प्रमुख भावुकता जगाने वाले दावों पर सरसरी नजर डाल लें।

दावा - सीमा पार से आतंकवाद का खात्मा कर दिया
यथार्थ - छप्पन इंच की छाती की शेखी मारते हुए, नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे, इसके दावे किए जा रहे थे कि सीमा पार से पाकिस्तान से प्रेरित आतंकवाद का अंत होने ही वाला है। यहां तक कि आज खुद प्रधानमंत्री अपनी चुनाव सभाओं में इसके बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं कि कैसे उन्होंने आतंकवादियों के दिलों में खौफ पैदा कर दिया है। लेकिन, सचाई क्या है?
मोदी राज के दौर यानी 2014-19 के हालात की तुलना जब हम इससे पहले के यानी 2009-14 के पांच साल के दौर से करते हैं, तो हम यह पाते हैं कि मोदी के राज में आतंकवादी हमले की घटनाएं, 626 हो गयीं, जबकि इससे पहले के  पांच साल में इन घटनाओं की संख्या सिर्फ 563 थी। इसी अवधि में, पाकिस्तान द्वारा युद्घ विराम के उल्लंघन की घटनाएं 563 से बढ?र 5,596 हो गयीं। इसी अवधि में, हमारे सुरक्षाबलों के शहादत देेने वाले जवानों की संख्या, 139 से बढकर 483 हो गयी। यहां तक कि आतंकवादी घटनाओं में जान देने वाले नागरिकों की संख्या भी 12 से बढकर 210 हो गयी।

सचाई यह है कि मोदी सरकार की कश्मीर नीति के चलते, स्थानीय युवाओं की मिलिटेंट गु्रपों में भर्ती में बहुत ही चिंताजनक रफ्तार से बढ़ोतरी हुई है। मिलिटेंट ग्रुपों में भर्ती होने वाले कश्मीर नौजवानों की संख्या जहां 2014 में सिर्फ 16 थी, 2018 तक यह संख्या तेजी से बढकर 191 पर पहुंच चुकी थी।

उरी के फौजी अड्डो  पर आतंकवादी हमले के बाद, भारतीय थल सेना ने सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक की थी। मोदी सरकार और भाजपा ने इसका खूब प्रचार किया था कि सीमा पार आतंकवाद को चलाने वाले पाकिस्तान में स्थित अड्डïों को नष्टï कर दिया गया है। इसकी शेखी मारी जा रही थी कि अब सीमा पार से आने वाले आतंकियों की भारत में हमला कोई करने की हिम्मत ही नहीं होगी। लेकिन, इसके बाद पुलवामा में आतंकवादी हमला हो गया, जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान मारे गए। इसके बाद जब भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान में बालाकोट में आतंकवादी ठिकाने पर सफलता के साथ हमला किया, उसके बाद एक बार फिर यही बताया गया कि भारत ने भविष्य में आतंकवादी हमले होने का रास्ता चाहे पूरी तरह से बंद न किया हो, ऐसी ताकतों को सफलतापूर्वक पंगु जरूर कर दिया है। लेकिन, बालाकोट की कार्रवाई के बाद भी, आतंकवादी हमले बदस्तूर जारी रहे हैं और इन हमलों में सुरक्षा बलों के और जवानों को अपनी शहादतें भी देनी पड़ी हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य के जम्मू के इलाके में भीड़-भाड़ वाले नागरिक इलाकों में बल लगाए जाने के जरिए, आतंकवादी हमलों में नागरिकों के हताहत होने भी घटनाएं हुई हैं।
यही है मोदे के 56 इंच की छाती के दावों की असलियत!

दावा -मोदी ने पाकिस्तान के मन में दहशत पैदा कर दी है
यथार्थ - यह एक जानी-मानी सचाई है कि तत्ववाद के सारे रंग, एक-दूसरे के लिए खाद-पानी का ही काम करते हैं। यह दावा कि पाकिस्तान, भाजपा/आरएसएस और नरेंद्र मोदी से डरता है, सचाई से ठीक उलट है। सचाई यह है कि भारत के संदर्भ में मुस्लिम तत्ववादी और हिंदू सांप्रदायिक, एक-दूसरे को ताकत देते हैं और एक-दूसरे के लिए खाद-पानी जुटाते हैं।

1999 में ही, जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्ववाली सरकार के लोकसभा में बहुमत खो देने के बाद आम चुनाव होने वाले थे, लश्कर-ए-तैयबा से सवाल पूछा गया था कि वे इस चुनाव में भारत में किस को जीतते देखना चाहेंगे। उस समय लश्कर-ए-तैयबा के सूचना सचिव ने कहा था: ‘भाजपा  हमारे लिए मुफीद बैठती है। एक साल में ही उन्होंने हमें एक नाभिकीय और मिसाइल शक्ति बना दिया है। भाजपा के बयानों के चलते, लश्कर-ए-तैयबा को अच्छा समर्थन मिल रहा है। हालात, पहले के मुकाबले बहुत बेहतर हैं। हम अल्लाह से मांगते हैं कि वे दोबारा सत्ता में आएं। तब हम और मजबूत होकर सामने आएंगे।’(हिंदुस्तान टाइम्स, 19 जुलाई, 1999)

खुफिया तंत्र के दो पूर्व शीर्ष-अधिकारियों--पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटैलीजेंस (आइएसआइ) के महानिदेशक, लैफ्टीनेंट जनरल (रिटायर्ड) असद दुर्रानी और भारत के रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (आरएडब्ल्यू) के पूर्व-प्रमुख, ए एस दुल्लत--ने संयुक्त रूप से एक किताब लिखी है--स्पाई क्रोनिकल्स। इसमें असद दुर्रानी बताते हैं कि आइएसआइ, भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस पद पर बना रहना ही ज्यादा पसंद करेगी। वह लिखते हैं: ‘मोदी के प्रधानमंत्री चुने जाने पर पाकिस्तान में प्रतिक्रिया यह थी हिंदुस्तान इसी के काबिल था। अब मोदी को ही भारत को संभालने दो, उसकी छवि नष्टï करने दो और हो सके तो अंदरूनी संतुलन भी नष्टï करने दो।’ इस तरह, यह एकदम साफ है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ, भारत में इस चुनाव में किसे जीतते देखना चाहेगी।

 करीब-करीब इसी सचाई की पुष्टिï करते हुए, भारत में पहले चरण का मतदान शुरू होने से सिर्फ एक दिन पहले, 10 अप्रैल को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री, इमरान खान ने भारत में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी की दावेदारी का अनुमोदन ही कर दिया। अनेक विदेशी संवाददाताओं के सामने उन्होंने यह उम्मीद जतायी कि इस चुनाव में मोदी की जीत होनी चाहिए क्योंकि उससे भारत और पाकिस्तान के बीच ‘शांति की संभावनाएं बेहतर’ हो जाएंगी!

मोदी जी, क्या इसके बाद भी किसी को इस संबंध में और कुछ कहने की जरूरत होगी कि पाकिस्तान इस चुनाव में किस के साथ हैï? भारत में हिंदुत्ववादी सांप्रदायिकता का जोर जितना बढ़ेगा, पाकिस्तान में मुस्लिम तत्ववाद की ताकत उतनी ही बढ़ेगी। वास्तव में वे तो बने ही ‘एक-दूजे के लिए बने’ हैं।
बेशक, भारत की जनता भावनाएं उकसाने के इस खेल को भी अच्छी तरह से समझ रही है और वह पिछले साल के अपने वास्तविक जीवन के अनुभव के आधार पर ही इस चुनाव में वोट देगी, न कि भावनाओं में बहाने वाले मुद्दों के आधार पर।

भाजपा की सरकार का जाना और चुनाव के बाद एक वैकल्पिक धर्मनिरपेक्ष सरकार का आना ही तय लग रहा है।     


  


About Author

सीताराम येचुरी

लेखक - सीपीआई (एम ) के महासचिव, पूर्व सांसद है ।

Leave a Comment