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मोदी-ट्रम्प जोड़ी का ह्यूस्टन में तमाशा 

इस्राइल के बेंजामिन नेतन्याहू की ही तरह, नरेन्द्र मोदी भी डोनाल्ड ट्रम्प के विचारधारात्मक सहोदर हैं। वे सभी दक्षिणपंथी इथनो-राष्ट्रवादी मिजाज के हैं।


नरेन्द्र मोदी ने पचास हजार भारतीय-अमरीकी श्रोताओं के सामने ह्यूस्टन में तमाशा पेश किया, उसने एक बार फिर इसी सचाई को रेखांकित किया है कि मोदी ने भारत और अमरीका के रिश्तों को कैसे आका और गुलाम के रिश्ते बना दिया है। इस आयोजन के लिए स्टेडियम में मोदी और ट्रम्प का एक साथ आना, वास्तव में ट्रम्प के लिए इसका एक मंच मुहैया कराए जाने के सिवा और कुछ नहीं था कि वह अमरीका के आने वाले राष्ट्रपति चुनाव को नजर में रखते हुए, भारतीय मूल के अमरीकियों को पटाए।

यह पहली ही बार था कि भारत के एक प्रधानमंत्री ने, अमरीका में राष्ट्रपति पद के एक उम्मीदवार के पक्ष में एक तरह से चुनाव प्रचार ही किया। मोदी ने ‘‘अब की बार, ट्रम्प सरकार’’ का नारा दोहराया, जिसे इससे पहले ट्रम्प ने खुद राष्ट्रपति के चुनाव के अपने पिछले अभियान में उछाला था।

ट्रम्प के लिए, नरेंद्र मोदी के राजनीतिक तमाशे में शामिल होना और उनकी तारीफों के पुल बांधना, बेशक काफी फायदे का सौदा था। आखिरकार, यह आयोजन टैक्सास में आने वाले ह्यूस्टन में हो रहा था। टैक्सास, परंपरागत रूप से रिपब्लिकन पार्टी का समर्थक राज्य रहा है। लेकिन, यहां डैमोक्रेटिक पार्टी कुछ आगे बढ़ती नजर आ रही थी और इसलिए ट्रम्प इसके लिए बहुत उत्सुक होगा कि जहां से भी अतिरिक्त समर्थन जुटाया जा सके, जुटाया जाए।

मोदी और विदेश मंत्री, जयशंकर जैसे उनके सलाहकार, यह उम्मीद लगाए हुए थे कि ट्रम्प के लिए समर्थन के इस खेले के बदले में, ट्रम्प कम से कम इतना तो करेगा कि कश्मीर के घटना विकास पर चुप्पी साध ले और इस मामले में इमरान खान की विनतियों को अनसुना कर दे। अमरीका के साथ व्यापार समझौते पर भी दस्तखत हो जाते, तो सोने पर सुहागा हो जाता। लेकिन, ट्रम्प के झुकावों पर दांव लगाना और उसे पटाने की उम्मीद करना एक जोखिम भरा काम है। हालांकि, भारत ने अपनी ओर से अमरीका के साथ व्यापार समझौते में मिठास डालने के लिए, अमरीकी कंपनी टेल्लूरियन में, भारतीय कंपनी पैट्रोनेट द्वारा 2.5 अरब डालर के निवेश का भी एलान कर दिया था और इस संबंध में ह्यूस्टन में एक अद्यतन एमओयू पर दस्तखत भी किए गए थे। इसके बावजूद, न्यूयार्क में जब आधिकारिक बातचीत के लिए मोदी और ट्रम्प की मुलाकात हुई, किसी व्यापार समझौते की घोषणा नहीं हो सकी। 

वार्ताओं के आखिरी चरण में वाणिज्य मंत्री, पीयूष गोयल की मौजूदगी के बावजूद, अमरीका विभिन्न मुद्दों पर अपने रुख को नरम करने के लिए तैयार नहीं हुआ। इस तरह, भारत को अनेकानेक मालों पर अमरीका के बढ़े हुए तटकरों का ही सामना करना पड़ेगा। अमरीका, और भारत से और ज्यादा रियायतें मांग रहा है और भारतीय बाजारों में और ज्यादा पहुंच हासिल कराए जाने के लिए दबाव डाल रहा है।

लेकिन मोदी सरकार तो अब भारत को, एशिया में अमरीका की भू-राजनीतिक रणनीति के साथ पूरी तरह से जोडऩे के लिए, किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। पहले तो भारत ने संयुक्त सचिवों के स्तर पर ही चतुर्भुज मंच (क्वाड्रिलेट्रल फोरम) में शामिल होने की मंजूरी दी थी, पर अब वह न्यूयार्क में क्वॉड-अमरीका, जापान, आस्ट्रेलिया तथा भारत-के विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए भी तैयार हो गया है। अमरीका के साथ अपने रिश्तों के मामले में मोदी सरकार के पाकिस्तान-केंद्रित रुख की निरर्थकता भी इससे स्वत:स्पष्ट हो गयी जब राष्ट्र ति ट्रम्प तथा प्रधानमंत्री इमरान खान की मुलाकात हुई और ट्रम्प ने एक बार फिर इसका एलान कर दिया कि अगर दोनों देश इसके लिए तैयार हों तो, वह कश्मीर के मामले में मध्यस्थता करने के लिए तैयार है। जब तक ट्रम्प का लक्ष्य अफगानिस्तान से अमरीकी सेनाओं को बाहर निकालना है, पाकिस्तान उसका पक्का सहयोगी बना रहेगा।

ह्यूस्टन में ट्रम्प के लिए समर्थन के नरेंद्र मोदी के खर्चीले तमाशे का एक और भी कारण है। इस्राइल के बेंजामिन नेतन्याहू की ही तरह, नरेन्द्र मोदी भी डोनाल्ड ट्रम्प के विचारधारात्मक सहोदर हैं। वे सभी दक्षिणपंथी इथनो-राष्ट्रवादी मिजाज के हैं। ट्रम्प के प्रति अपनी वफादारी का प्रदर्शन कर के मोदी ने वास्तव में अपनी प्रतिक्रियावादी विश्व दृष्टि का भी प्रदर्शन किया है।
 


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प्रकाश करात

लेखक-सी.पी .आई.(एम) पोलिट ब्यूरो सदस्य है

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