कोरोना वाइरस की महामारी से निपटने के संबंध में राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री के दो-दो संबोधन हुए हैं। इसके बावजूद सरकार ने, सिर पर मंडराती आर्थिक मंदी और लोगों की आजीविकाओं व आमदनियों में पडऩे वाले भारी बाधा का मुकाबला करने के लिए, किसी आर्थिक पैकेज की घोषणा तक नहीं की है।
24 मार्च को हुए अपने दूसरे संबोधन में प्रधानमंत्री ने 21 दिन के देशव्यापी लॉकडॉउन का एलान कर दिया। सरकार की यह जिम्मेदारी बनती थी कि ऐसा भारी कदम उठाने से पहले, काम-धंधों की हिफाजत करने के लिए और लॉकडॉउन के चलते जिन लोगों की आमदनी पूरी तरह से बंद होने जा रही थी उनको राहत दिलाने के लिए उठाए जाते। लेकिन, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
20 मार्च के अपने पहले संबोधन में प्रधानमंत्री ने जब 22 मार्च को ''जनता कर्फ्यू " लागू करने की घोषणा की थी, उन्होंने यह भी कहा था कि वित्त मंत्री, निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में, अर्थव्यवस्था को लेकर एक टास्क फोर्स का गठन किया गया है। लेकिन, इस कसरत का कोई नतीजा नहीं निकला इस मामले में तत्काल कदम उठाए जाने के जरूरी होने को देखते हुए, कम से कम पांच दिन बाद हुए प्रधानमंत्री के दूसरे संबोधन में, आर्थिक पहलू से कुछ घोषणाएं करने की तो उम्मीद की ही जाती थी।
लेकिन, इस संंबोधन में की गयी एकमात्र घोषणा, स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 15,000 करोड़ रुपए के आवंटन की ही थी। यह आवंटन और ज्यादा संख्या में वेंटीलेटर, मास्क आदि निजी सुरक्षा सामान तथा अस्पतालों में आइसोलेशन वार्ड जुटाने के लिए ही है। लेकिन, इस संबोधन में और ज्यादा टैस्ट-किट हासिल किए जाने और टैस्टिंग का विस्तार किए जाने का कोई जिक्र तक नहीं था, जबकि इस मामले में हम पीछे हैं। याद रहे कि यह फंडिंंग भी, हमारे देश में कोरोना वाइरस का पहला केस दर्ज होने के पूरे 53 दिन बाद आयी है। देश भर में डाक्टर और नर्स इसकी शिकायतें करते रहे हैं उनके लिए खुद अपने बचाव के सामान तक नहीं हैं। कम से कम इसे तो प्राथमिकता के आधार पर लिया ही जाना चाहिए था। इतनी देर से जो राशि दी भी गयी है, स्वास्थ्य के ढांचे को जिस स्तर पर मजबूत करने की जरूरत है उसे देखते हुए, बिल्कुल ही अपर्याप्त है। केंद्र सरकार को इस काम के लिए राज्यों को उदारता से अनुदान देना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य रक्षा, राज्यों का विषय है। इस महामारी से कम से कम अब तो केंद्र सरकार की और अधिकांश राज्य सरकारों की भी आंखें इस सचाई के प्रति खुल जानी चाहिए कि सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की उपेक्षा करना और निजीकृत स्वास्थ्य क्षेत्र को बढ़ावा देना, कितनी बड़ी मूर्खता है।
बेशक, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि वाइरस के संक्रमण के फैलने को रोकने के लिए, तीन हफ्ते का लॉकडॉउन लागू करना जरूरी है। लेकिन, जिस तरह से यह काम किया गया है, निर्मम और क्रूरतापूर्ण है। इसकी वजह यह है कि इस फैसले के बाद हमारी आबादी के बड़े हिस्से पास, अपने परिवारों का पेट भरने और आवश्यकता की चीजें खरीदने के लिए, न तो कोई आय रह गयी है और न कोई संसाधन। अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूरों, दिहाड़ी मजदूरों और कैजुअल मजदूरों की हालत दयनीय है। हमारे देश में अनौपचारिक क्षेत्र में 39 करोड़ से ज्यादा मजदूर हैं और उनमें से ज्यादातर का काम छिन गया है। उनसे घर पर ही बैठे रहने के लिए कहने से पहले सरकार को, उनके लिए कम से कम मुफ्त राशन मुहैया करना चाहिए था और उन्हें कुछ आय सहायता देनी चाहिए थी। उनके जनधन खातों में 5,000 रुपए तो डाले ही जा सकते थे। दसियों हजार की संख्या में प्रवासी मजदूर तो लॉकडॉउन से भी पहले से जगह-जगह फंसे हुए हैं और अपने घर भी नहीं जा पा रहे हैं। केंद्र सरकार को उनकी कोई चिंता ही नहीं है।
कुछ राज्य सरकारों ने ही जनता के लिए राहत के कदमों की घोषणा की है। इनमें केरल की एलडीएफ सरकार खासतौर पर उल्लेखनीय है, जिसने सभी बीपीएल/एपीएल कार्ड धारकों को एक महीने का राशन मुफ्त मुहैया कराया है, पेंशन के बकाया का ही नहीं अग्रिम भुगतान भी किया है और बच्चों के लिए उनके घर पर मिड डे मील मुहैया करा रही है। इतना ही नहीं, केरल में बेरोजगार प्रवासी मजदूरों को ऐसे केंद्रों में पहुंचाया जा रहा है, जहां उनके रहने की व्यवस्था है और मुफ्त राशन मुहैया कराया जा रहा है तथा मैडीकल चैक अप मुहैया कराए जा रहे हैं। दिल्ली, पंजाब, तमिलनाडु तथा कुछ अन्य राज्यों की भी सरकारों ने, नकदी हस्तांतरण या मुफ्त राशन की घोषणा की है।
जहां तक संगठित क्षेत्र के मजदूरों का सवाल है, प्रधानमंत्री ने अपने पहले संबोधन में मालिकान से अपील की थी कि अपने मजदूरों/ कर्मचारियों को हटाएं नहीं या उनकी मजदूरी नहीं काटें। ऐसी सदेच्छाओं से काम नहीं चलता है। सरकार को, निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र, दोनों में ही नौकरियों व लाभों की सुरक्षा के संबंध में एक अधिसूचना जारी करनी चाहिए। इस सुरक्षा के दायरे में ठेकेदारों के अंतर्गत काम करने वाले मजदूरों को भी लाया जाना चाहिए। यूनाइटेड किंगडम की कंजर्वेटिव सरकार तक ने, कंपनियों के अपने मजदूरों की मजदूरी देने में असमर्थ होने की सूरत में, उनका 80 फीसद वेतन खुद भरने की योजना तैयार की है। यह योजना तीन महीने के लिए है और इस अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है।
बेशक, अर्थव्यवस्था के जो क्षेत्र इस महामारी की सबसे बुरी मार झेल रहे हैं, उनकी मदद के लिए वित्तीय पैकेजों की भी जरूरत होगी। लेकिन, इस तरह की सहायता के साथ यह शर्त जरूर जोड़ी जानी चाहिए कि संबंधित कंपनियां मजदूरों की बैठकी और वेतन कटौतियों आदि का सहारा नहीं लेेंगी। मिसाल के तौर पर विमानन के क्षेत्र को बेशक मदद की जरूरत है, लेकिन यह मंजूर नहीं किया जा सकता है कि वे सरकार से यह सहायता भी हासिल कर लें और गो एअर की तरह छंटनी कर दें या इंडिगो की तरह वेतन कटौतियां थोप दें। सबसे बढकऱ केंद्र सरकार को राज्यों को और ज्यादा संसाधन मुहैया कराने चाहिए और उनकी ऋण सीमाओं को बढ़ाना चाहिए।
पिछले कुछ दिनों में कई शहरों में सब्जियों तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। केंद्र सरकार को, राज्यों के साथ तालमेल कर, आवश्यक वस्तुओं की सुचारु आपूर्ति और खासतौर पर राज्यों की सीमाओं के आर-पार ढुलाई सुनिश्चित करनी चाहिए। पहले ही इस तरह की खबरें आ रही हैं कि आपूर्तियों में बाधाएं पड़ रही हैं और चैक नाकों पर मालों व सामग्री के प्रवाह में रुकावटें आ रही हैं।
इस लॉकडॉउन से पहले न तो समुचित सोच-विचार किया गया है और न इसके लिए जरूरी तैयारी की गयी है। इसका पता लॉकडॉउन के संबंध में जारी किए गए आधिकारिक दिशा-निर्देशों की दो चूकों से लग जाता है। इसमें सरकार के ऐसे विभागों की जो सूची दी गयी है, जिन में काम-काज चलता रहेगा तथा जिन्हें बंद नहीं किया जाएगा, उनमें स्वास्थ्य, खाद्य तथा आपूर्ति विभागों का ही नाम गायब है। ये विभाग काम ही नहीं कर रहे होंगे तो इस समय अति-महत्वपूर्ण स्वास्थ्य क्षेत्र कैसे अपनी जिम्मेदारी संभालेगा और आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई को कैसे कारगर तरीके से सुनिश्चित किया जाएगा। दूसरी चूक यह कि लॉकडॉउन के दौर के लिए कृषि क्षेत्र के लिए यानी इस क्षेत्र में उत्पादन, फसलों व फलों-सब्जियों आदि की ढुलाई, उनके भंडारण, वितरण आदि के संबंध में, कोई दिशा-निर्देश ही नहीं हैं।
बहरहाल, सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मोदी सरकार फौरन ऐसे आर्थिक कदमों का एक चौतरफा पैकेज पेश करे, जो मंदी से निकालने वाले कदम हों और दूसरी ओर, मेहनतकश जनता को और खासतौर पर गरीबों व कमजोर तबकों को, आर्थिक सहायता व आवश्यक खाद्य आपूर्ति मुहैया कराए।
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