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स्पष्ट संकेत दे रहे हैं भाजपा की हांडी के चावल 

यूं कहावत पुरानी है और पुराने लोग इसे बार बोर दोहराते है कि रसोईया एक चावल पकड़ कर ही पूरी हांडी के चावल के पक्के या कच्चे होने का अंदाजा लगा लेता है। भाजपा के जो भी चावल हाथ में आ रहे हैं, वे बताते...

यूं कहावत पुरानी है और पुराने लोग इसे बार बोर दोहराते है कि रसोईया एक चावल पकड़ कर ही पूरी हांडी के चावल के पक्के या कच्चे होने का अंदाजा लगा लेता है। भाजपा के जो भी चावल हाथ में आ रहे हैं, वे बताते हैं कि काठ की हांडी में चढ़ाये गए चावल पकेंगे नहीं, बल्कि हांडी ही राख हो जायेगी। सत्ता की हवश में भाजपा ने सरकार तो बना ली है। मगर उस सरकार को बनाये रखना बड़ी चुनौती है। उससे भी बड़ी चुनौती भाजपा की अपनी हांडी में आ रहे उबाल को नियंत्रित करना है। सही मायनों में हांडी और और चावल दोनो ही खतरे में हैं।

सत्ता हथियाने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा ने दो आश्वासन दिए थे। एक तो उसे राज्यसभा में भेजना। इस्तीफा देने वाले उसके समर्थक विधायकों को फिर से टिकट देना। और कमलनाथ सरकार में शामिल छह मंत्रियों सहित नौ लोगों को मंत्रीमंडल में शामिल करना। रायता इतना फैल गया कि कल तक भाजपा विधायक दल के नेता, यानिकि नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव भी मंत्रीमंडल से बाहर हैं। संकट यह भी है कि यदि शिवराज सिंधिया के कहने पर उसके नौ समर्थकों को मंत्री बना देते हैं तो भाजपा के कई दिग्गज मंत्रीमंडल में जगह नहीं ले पायेगे। मगर अभी बात सिर्फ हांडी के चावलों की है।

भाजपा के पूर्व विधायक और मंत्री दीपक जोशी ने कहा है कि राजनीति बिना सिद्वांत की हो गई है, और भाजपा सिफ राजनीति करना चाहती है तो वह भी तैयार हैं। राजनीति का जवाब राजनीति में ही दिया जायेगा। दीपक जोशी का पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री के रूप में परिचय पर्याप्त नहीं है। वे कैलाश जोशी के बेटे हैं। कैलाश जोशी यूं तो मुख्यमंत्री भी रहे हैं। मगर उन्हें राजनीति का संत कहा जाता है। मुख्यमंत्री या मंत्री रहने के बावजूद उन पर किसी प्रकार के भ्रष्टाचार या कोई दूसरी लांछिन कभी नहीं लगी। इसलिए अगर कैलाश जोशी का बेटा अगर भाजपा को राजनीति का जवाब राजनीति में देने की बात कर रहा है, तो समझा जा सकता है कि भाजपा में सबकुछ ठीकठाक तो नहीं है।

दरअसल तीन बार के विधायक दीपक जोशी पिछला चुनाव कांग्रेस के मनोज चौधरी से हार गए थे। मनोज, सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हो गए हैं और उसे आश्वासन दिया गया कि उप चुनाव में टिकट दिया जाएगा। मनोज का भाजपा का टिकट मिलने का अर्थ दीपक जोशी का राजनीतिक कैरियर हाशिए पर धकेल देना है। इसलिए दीपक जोशी ने भाजपा नेतृत्व को अभी से चेता दिया है कि ऐसा हुआ तो फिर वैसा भी हो सकता है।

मगर यह मामला सिर्फ दीपक जोशी का मामला नहीं है। जिन 24 विधानसभा क्षेत्रों में विधान सभा उप चुनाव होने हैं, वहां 23 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा कार्यकर्ताओं के सामने यही संकट है। एक और उदाहरण लिया जा सकता है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि तुलसी सिलावट को उप मुख्यमंत्री बनाने की भी सहमति है। कांग्रेस में भी सिंधिया का कमलनाथ से यही विवाद था। मगर अभी तो उसे फिर से विधान सभा का चुनाव जीतना है सांवेर से। सांवेर में भाजपा के नेता और पूर्व मंत्री प्रकाश सोनकर को ही तुलसी सिलावट ने हराया था। जीत का अंतर भी बहुत मामूली था। सिर्फ 2900 वोट। अब अगर तुलसी फिर से चुनाव जीतते हैं और उप मुख्यमंत्री बनते हैं तो जाहिर है कि प्रकाश सोनकर का राजनीतिक भविष्य खत्म। क्या प्रकाश सोनकर इसे होने देंगे? और यदि नहीं होने देंगे तो उनके पास विकल्प क्या है? 

लगभग सारी सीटों पर भाजपा के अंदर ही अंदर बहुत कुछ पक रहा है। हांडी का ढक्कन कभी भी उपर उठ सकता है। मगर ऐसा भी नहीं है कि संकट में भाजपा ही है। सिंधिया खेमा भी निश्चिंत होकर बैठने की स्थिति में नहीं है। पिछले दिनों खबर आई थी कि भलें ही भाजपा ने आश्वासन दिया है, मगर जरूरी नहीं है कि सिंधिया के साथ आए सारे पूर्व विधायकों को टिकट दे दिया जाये। खबर के मुताबिक दस से बारह पूर्व विधायकों के टिकट आश्वासन के बाद भी कट सकते हैं। और यदि ऐसा होता है तो फिर वे न घर के रहेंगे न घाट के। तो क्या ऐसी स्थिति में भी सिंधिया के साथ रहेंगे?

हवा में उड़ती खबरों के अनुसार इस समय करीब एक दर्जन सीटों पर भाजपा के  हारने वाले प्रत्याशी, जिनमें पूर्व मंत्री भी हैं, विपक्ष के संपर्क में हैं। बहुत अधिक संभावना है कि जो 20018 में भाजपा की ओर से लड़ा था वो कांग्रेस की ओर से लड़े और कांग्रेस वालों को भाजपा की ओर से लड़ाने की बात तो भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व ही कह चुका है। 

हालत इतनी खराब हो गई है कि अलग तरह की पार्टी होने का दावा करने वाली पार्टी अब अलग थलग पार्टी बन गई है। पिछले दिनों भाजपा ने जिलाध्यक्षों की नियुक्तियां की। अब लोकतांत्रिक पार्टी होने का दावा करने वाली पार्टी में नियुक्ति ही बहुत कुछ हकीकत कह देती है। मगर ग्वालियर में भाजपा का शहर अध्यक्ष नियुक्ति होते ही छ: पूर्व जिलाध्यक्षों और वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि जब तक नवनियुक्त अध्यक्ष रहेंगे। वे पार्टी की किसी भी बैठक में नहीं जायेंगे और न ही उप चुनाव में पार्टी के लिए काम करेंगे। ग्वालियर शहर में दो विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होना है। 

इन घटनाओं को अगर संकेत मान लिया जाये। तो भाजपा के लिए अशुभ संकेत ही हैं। मंत्रीमंडल का गठन होता है तो हांडी में उबाल आयेगा। मंत्रीमंडल का गठन होता है तो संकट है, गठन नहीं होता है तो संकट है। उप चुनाव में सिंधिया छाप भाजपाईयों को टिकट दिया गया तो संकट। न दिया तो संकट। 

संकट हांडी से ढक्कन के उठने का नहीं है। संकट यह भी है कि हांडी ही काठ की है। वो चढ़ तो गई है, मगर न तो उतरेगी न ही बचेगी। 


About Author

जसविंदर सिंह

राज्य सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) मध्यप्रदेश

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