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मौन रहना - पाब्लो नेरूदा

विश्व कविता में आज चीले के मशहूर कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता पाब्लो नेरूदा की एक कविता


अब हम बारह तक गिनेंगे
और इस बीच सब मौन रहेंगे।
कम से कम एक बार इस धरती पर,
चलो कोई भी भाषा नहीं बोलें;
चलो रुक जाएँ एक पल के लिए,
बिना अपनी बाँहें हिलाए।
कितना अद्भुत होगा यह पल
बिना भागम-भाग, बिना रेलम - पेल ;
हम सब साथ होंगे
एक सवेग विलक्षणता में।


मछुआरे शीतल समुद्र में
मछलियों को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे
और नमक इक करते मनुष्य
अपने जख्मी हाथों की तरफ नहीं देखेंगे।
लोग जो युद्ध की तैयारी में जुटे हैं
जहरीली गैस और आग उगलते ,
बिना जीवन के विजय वाले युद्ध ,
ये लोग भी साफ सुथरे कपड़े पहनकर
अपने भाई बंधुओं के साथ
छाया में टहलेंगे, बिना कुछ किये ।


मैं जो चाहता हूँ
उसे भ्रमित होकर
सम्पूर्ण निष्क्रियता के साथ
मत जोड़ लेना ।
यह जीवन है, जैसा भी है ;
मैं इसे मृत्यु के साथ नहीं जोड़ता ।


जीवन की इस भागम - भाग को लेकर
हम सब किस कदर एकमत हैं,
एक बार भी ठहरकर नहीं सोचते,
तब शायद एक महा मौन ही
रोक सके इस उदासी को
जो हमें खुद को समझने नहीं देती
और मृत्यु से डराती रहती है।
शायद यह धरती हमें सिखा सके
कि जब सब कुछ निष्प्राण सा लगने लगे
यह जीवन तब भी रहेगा ।


अब मैं बारह तक गिनूंगा
और तुम मौन रहना
और मैं चला जाऊंगा ।


अनुवाद : मणिमोहन मेहता

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