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रावण पर उन्होंने तीर नहीं चलाया

मोदी जी को रावण पर तीर चलाना था पर पहले तो उनसे प्रत्यंचा ही नहीं चढ़ी, फिर पता नहीं क्या हुआ कि धनुष ही टूट गया । टूट गया या मोदी जी ने स्वयं उसे तोड़ दिया, पता नहीं। हमारे शहर में एक दादा थे। जलील भेड़े उनको कहा जाता था। उनका एक किस्सा कभी सुना था कि वो हज करने गये और जब शैतान को कंकर मारने का मौका आया तो कंकर हाथ में लेकर बैठे रहे । लोगों ने पूछा तो बोले यार इस शैतान से इतने साल का याराना रहा है, इसको कंकर कैसे मारूं? जलील भेड़े की ईमानदारी तो हज में कम से कम उचक कर बाहर आगयी। मोदी जी की पता नहीं क्या दुविधा थी, रावण पर तीर चलाने में इतने अचकचा से क्यों गये

राजेश जोशी@इसलिए            

मोदी जी को रावण पर तीर चलाना था पर पहले तो उनसे प्रत्यंचा ही नहीं चढ़ी, फिर पता नहीं क्या हुआ कि धनुष ही टूट गया । टूट गया या मोदी जी ने स्वयं उसे तोड़ दिया, पता नहीं। हमारे शहर में एक दादा थे। जलील भेड़े उनको कहा जाता था। उनका एक किस्सा कभी सुना था कि वो हज करने गये और जब शैतान को कंकर मारने का मौका आया तो कंकर हाथ में लेकर बैठे रहे । लोगों ने पूछा तो बोले यार इस शैतान से इतने साल का याराना रहा है, इसको कंकर कैसे मारूं? जलील भेड़े की ईमानदारी तो हज में कम से कम उचक कर बाहर आ गयी। मोदी जी की पता नहीं क्या दुविधा थी, रावण पर तीर चलाने में इतने अचकचा से क्यों गये ?


कहीं वैसी ही कोई बात तो उनके मन में नहीं जाग गयी जैसी जलील भेड़े के मन में जागी थी? लोगों ने इस घटना का तरह तरह से मजा लिया । एक कार्टून आया जिसमें एक आदमी बार बार प्रधान सेवक जी से कह रहा है कि तीर चलाओ .....प्रधान सेवक जी कहते हैं कि मैं तीर नहीं चलाऊँगा .....मैं तीर फेकूंगा। मेरी आदत तो सिर्फ  फेंकने की है। बहरहाल सचाई जो पर प्रधान सेवक जी ने तीर फेंक कर ही रावण को मारा। पता नहीं फेंका हुआ तीर रावण को लगा या नहीं?


जैसे जैसे गुजरात के चुनाव पास आ रहे हैं, मोदी जी से धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना दूभर होता जा रहा है। गुजरात में हार्दिक पटेल और दलित नेता जिग्नेश ने मोर्चा संभाल लिया है। गुजरात से आ रही खबरें बहुत अच्छी नहीं हैं। 24 दिन में प्रधान सेवक गुजरात के तीन चक्कर काट चुके हैं। अपने गाँव गये और अपने स्कृल भी गये और वहाँ की मिट्टी अपने माथे पर लगाई। भावुकता के नाटक की यह स्क्रिप्ट पता नहीं किस ने लिखी थी। हो सकता है यह इम्प्रोवाइजेशन स्वयं मोदी जी ने किया हो। आखिरकार वो खुद भी एक बड़े अभिनेता हैं। जुमले बोलने में माहिर हैं यह बात तो 2014 के चुनाव में ही उन्होंने बता दी थी। एक बात तो मानना पड़ेगी कि प्रधान सेवक जी चाहे स्वयं स्वीकार न भी करें पर अपने अन्य नेताओं के माध्यम से उन्होंने स्वीकार कर ही लिया था कि चाहे अच्छे दिन आयेंगे.... हो या हर जेब में पन्द्रह पन्द्रह लाख रूपये आयेंगे .....का वादा हो , सब जुमले थे। भारत की भोली भाली जनता ने इसे भी आसानी से स्वीकार कर लिया।


अब राज्यों के आने वाले चुनावों के लिये नये जुमलों का अविष्कार हो रहा होगा। अमित शाह की वर्कशाप में कार्यकर्ता और संघ के आला या दिवाला दिमाग इस काम में मुस्तैदी से लगे होंगे। नये जुमलों की पटकथा लिखी जा रही है। यह बात हमें नहीं भूलना चाहिये कि मोदी जी ने इस बार के दशहरे में रावण पर तीर नहीं चलाया है । रावण को भी ,अगर वह कहीं है, तो उसे भी यह बात पता होगी कि प्रधान सेवक जी ने उस पर अपना तीर नहीं चलाया था, तो वह उनका ही साथ देगा। और रावण क्या नहीं कर सकता? जिसके दस मुँह हों और उसमें भी एक मुँह गधे का हो तो वह क्या नहीं कर सकता? इतने सारे चेहरों और इतने सारे हाथ से वह गुजरात के चुनाव हों या उसके बाद आने वाले चुनाव हो, हर बार नये नये करतब दिखायेगा। रावण होने को तो राक्षस है शैतान नहीं है। जो काम शैतान कर सकता है वह काम राक्षस नहीं कर पाते। लेकिन उत्पात मचाने में राक्षसों की भूमिका भी, हमारे पुराणों में कम नहीं रही है।


प्रधान सेवक आखिरकार रावण से इस उपकार के बदले कुछ न लें ऐसा कैसे हो सकता है। तो आगे आगे देखिये क्या होता है। दशहरा चाहे जिसका मना हो ...देखना है दिवाली किसकी मनती है!

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