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राजसमंद का काला अध्याय

राजस्थान का कस्बा है-राजसमंद। वहां के एक बाशिंदे की एक वीडियो क्लिप हाल में सोशल-मीडिया पर आई। करीब साढ़े-तीन मिनिट का वह वीडियो रौंगटे खड़े कर देने वाला है। सफेद पेंट, लाल शर्ट पहने, गले में सफेद गमछा डाले एक व्यक्ति सडक़ किनारे अपनी स्कूटर से उतरता है। एक गेती और बोरी उठाते हुए दिखता है। उसके आगे एक और व्यक्ति है।


मनोज कुलकर्णी@आहट


राजस्थान का कस्बा है-राजसमंद। वहां के एक बाशिंदे की एक वीडियो क्लिप हाल में सोशल-मीडिया पर आई। करीब साढ़े-तीन मिनिट का वह वीडियो रौंगटे खड़े कर देने वाला है। सफेद पेंट, लाल शर्ट पहने, गले में सफेद गमछा डाले एक व्यक्ति सडक़ किनारे अपनी स्कूटर से उतरता है। एक गेती और बोरी उठाते हुए दिखता है। उसके आगे एक और व्यक्ति है।

काली-सी जैकेट पहने। सफेद टोपी लगाए। जो इक्का-दुक्का वाक्य उन दोनो की बातचीत के सुनाई देते हैं, महसूस होता है कि सफेद टोपी लगाए व्यक्ति मजदूरी के लिए लाया गया है। सडक़ किनारे पेड़ों की कतार तले की पगडंडी पर सफेद टोपी पहना शख्स कुछ ही आगे बढ़ा है कि लाल शर्टधारी एकाएक गेती से उस पर हमला कर देता है। टोपीधारी जमीन पर गिर गया है। रो-रो कर जान बख्श देने की गुहार लगा रहा है।

हमलावर पर किंतु कोई फर्क नहीं पड़ता। वह उसे मार ही डालता है। वह जेहादियों को चेतावनी देता सुनाई देता है। सडक़ किनारे रखी अपनी स्कूटर से पेट्रोल की बोतल निकाल वह लाश पर छिडक़ता और उसे जलाता दिखाई देता है। सब कर गुजरने पर वह कैमरे से रू-ब-रू होता है। ‘लव-जेहादियों’ को बताते हुए कि वे अगर इस देश को छोड़ कर नहीं गये तो सबका यही हश्र होगा।


हमलावर का नाम शंभूलाल रेगर बताया गया है। मारे गये शख्स की पहचान मोहम्मद अफराजुल तय होती है। जो बंगाल के मालदा से आया था। मज़दूरी करने। किसी काम को करने के बहाने शंभूलाल, अफराजुल को उस जगह पर लाता है।


वीडियो से जाहिर है कि इस नृशंस करतूत में शंभूलाल के साथ कोई और भी है। जो वीडियो फिल्मा रहा है। वारदात को तयशुदा तरीके से अंजाम दिया गया है। शंभूलाल बेखौफ़ है। कैमरे पर वह अपनी पहचान छिपाए बगैर है। जिस जगह को उसने अपराध के लिए चुना है, अलग-थलग नहीं है। हत्या कर देने के तत्काल बाद वह विचलित नहीं हैै। बताया जा रहा है कि शंभूलाल  के नाबालिग रिश्तेदार ने उस दरिंदगी का वीडियो बनाया। हत्या के वक्त उसकी अपनी बेटी भी घटना-स्थल पर मौजूद थी।


हम लोग सीरिया और इराक के कुछ हिस्सों में इस्लामिक स्टेट के नाम पर नृशंस आतंकी कार्रवाइयां करते लोगों के वीडियो अब तक देखते आए हैं। जिसमें खुले आम वे किसी की गर्दन उड़ाते नजऱ आते हैं। मध्ययुगीन तौर-तरीकों वाले आईएसआईएस के उन लड़ाकों की दुनिया भर में थूं-थंू होती रही है। इससे पहले अफगानिस्तान के तालिबानी भी बर्बर हिंसा के लिए कुख्यात रहे हैं।

इस्लाम के नाम पर आतंकवाद फैलाने की उनकी कारगुजारियों के विरूद्ध दुनियाभर में लानत-मलामत की जाती रही है। हमारे देश में हिंदुत्व की पैरोकार ताकतें भी उसी के हवाले से इस्लाम के मुखालिफ घृणा फैलाने की रणनीति पर चलती रही है। जिसमें बारंबार कथित जेहादियों के क्रूर तौर-तरीकों को रेखांकित कर अपने मजहब की श्रेष्टता का दावा किया जाता है। राजसमंद की उक्त घटना क्या उन दावों की पोल नहीं खोलती ?


पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश में खुले आम हिंसा की अनेक वारदातें हुई हैं। जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब लोग मार डाले गये हैं। ऐसी हिंसा को पहले क्रिया की प्रतिक्रिया बताया जाता रहा है। मगर प्रतिक्रियाएं कभी सोची-समझी नहीं हो सकतीं। अमूमन तमाम वारदातें न केवल योजनाबद्ध रही बल्कि उन हत्याओं का जश्न भी मनाया गया। उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखण्ड सरीखे प्रदेशों में भीड़ द्वारा की गई हत्याओं को दरकिनार रख केवल राजस्थान में हुई बारदातों को देखें तो पाएंगे कि हाल के दिनों में ही वहां लगातार ऐसी घटनाएं हुई हैं।


गो-तस्करी की आशंका जता पहलू खां को पीट-पीट कर मार डाला गया। स्वच्छता-अभियान को बढ़ावा देने के नाम पर खुले में शौच को जाती महिलाओं के फोटों खेंचने की कोशिशेंं की गई। इसका विरोध करने पर जफर हुसेन को मार डाला गया। अहमद खां नाम के लोकगायक इस बात की बली चढ़ गये कि वे एक हिंदू-आयोजन में ठीक से सुर न साध सकें! इन तमाम घटनाओं पर सरकारों ने वहीं घिसे-पिटे बयान दिये हैं कि ऐसे अपराध स्वीकार्य नहीं है। मगर क्या यह सच नहीं है कि सरकार चला रहे दल की विचारधारा ही इन अपराधों को प्रोत्साहित करती है?


नफरत भरी ऐसी हिंसा हमारे समाज को कहां ले जाएगी? सोचने-विचारने की ज़रूरत है वरना  हम भी मध्ययुग में होंगे।

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