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अभिमन्यु की गलती - त्रिपुरा 2

इसलिये मार आर्तनाद मचा पड़ा था कि घेरो अभिमन्यु को, खतरनाक है उसका होना । जोड़ो पूरी खल मण्डली को । बीन ली गयी ऊपर से नीचे तक की पूरी कांग्रेस, समेट ली गयी तृणमूल कांग्रेस । न्यौता देकर बुलाये गए बांग्लादेश के बिलों में धकेल दिए गए अलग राष्ट्र का मंसूबा साधते आतंकी । छाँट छाँट कर चन्दनाभिषेक कर मंचासीन किये गए बलात्कारी और अपराधी ।

 

अभिमन्यु की गलती "मारे जायेंगे" कविता में दर्ज विडंबनात्मक त्रासदी की तरह थी और यह थी उसकी कमीज पर कोई दाग़ नहीं होना। दागदार धब्बों के राज्याभिषेकयुग में कितना असहज है यह । जबकि कवि राजेश जोशी Rajesh Joshi पहले ही चेता चुके थे कि " बर्दाश्‍त नहीं किया जाएगा कि किसी की कमीज हो/उनकी कमीज से ज्‍यादा सफ़ेद/कमीज पर जिनके दाग नहीं होंगे, मारे जाएँगे ।"
● बताइये, ये कोई बात हुयी कि ढाई ढाई दशक तक मंत्री, मुख्यमंत्री रहें और फूटी कौड़ी न हो गाँठ में । तीन तीन चार चार दशक तक विधायक रहें और बांस और घास से बनी गाँव की झोंपड़ी ही घर बना रहे और साइकिल ही वाहन ।


● इस तरह तो आधुनिक हस्तिनापुर का पूरा प्रोटोकॉल ही ध्वस्त हो जाएगा । कही किसी दूरदराज कोने में भी निष्कलंक और धवल स्वच्छता का बचा रहना खतरनाक है । ऐसे एक अकेले -और वाम में तो ऐसे काफी हैं, प्रायः सभी हैं- की मौजूदगी भर काफी होती है गटर से अधनिकले, बेईमानी की कीच में पूरे सने, अपनी दुर्गन्ध को मीडिया की फ्लॅशलाइट्स में रूपसज्जा साबित करते अर्ध-विदूषक-पूर्ण-खलनायक गिरोह की कालिख उजागर करने के लिये ।


● इसलिये मार आर्तनाद मचा पड़ा था कि घेरो अभिमन्यु को, खतरनाक है उसका होना । जोड़ो पूरी खल मण्डली को । बीन ली गयी ऊपर से नीचे तक की पूरी कांग्रेस, समेट ली गयी तृणमूल कांग्रेस । न्यौता देकर बुलाये गए बांग्लादेश के बिलों में धकेल दिए गए अलग राष्ट्र का मंसूबा साधते आतंकी । छाँट छाँट कर चन्दनाभिषेक कर मंचासीन किये गए बलात्कारी और अपराधी ।


● झोंक दिया गया राफेल जैसे घोटालों और पीएनबी जैसी धोखाधड़ियों के कमीशन में जुटाया और विदेशी कारपोरेटों की पालकी ढो कर कमाया अकूत और अकल्पनीय तादाद का धन ।


● ऐसा नहीं कि अभिमन्यु का रणकौशल कम था, कि कम थी उसके संगी-साथियों की तादाद । मगर खुद के मकसद को भुलाकर, देश को हराकर चुनाव जीतना उसकी "समझदारी" में नहीं था । अपनी जनता की फांक करके, उनकी देहों के ढेर को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करना उसकी "चतुराई" का हिस्सा नहीं था । लालच की जुगुप्सा भड़का कर अपनी रोटी सेंकना उस की भूख का आदिम संस्कार नही था ।


● उसे पता था कि लोभ की डोरी से तिकड़मों की तीलियां बुनकर एक तरफ से पार होने लायक पुल बनाये जा सकते हैं मगर उनसे वापस नहीं लौटा जा सकता । कि ऐसी तात्कालिकताओं से एकाध मोर्चा तो जीता जा सकता है किन्तु युद्द का हारना तय है ।


● अभिमन्यु ने नहीं चुने अपराध और कविता में लिखे की जोखिम उठाई कि " सबसे बड़ा अपराध है इस समय /निहत्थे और निरपराधी होना/ जो अपराधी नहीं होंगे, मारे जाएँगे ।"


● यह तय करने का वक़्त है कि किस ओर हैं हम !! अभिमन्यु के साथ हैं या दुर्योधन के हाथ हैं या इनमे से तो कुछ नहीं, लेकिन धृतराष्ट्र हैं । तय करना ही होगा क्योंकि दांव पर सिर्फ जुये में हारी द्रौपदी नहीं हैं और हम सब सिर्फ व्यास नहीं हैं ।


About Author

Badal Saroj

लेखक लोकजतन के संपादक एवं अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं.

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