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शम्बूक का पाप - त्रिपुरा 3

JNU, HCU, BHU जैसी यूनिवर्सटियों को मिटाने पर आमादा, मध्यप्रदेश में सवा लाख सरकारी स्कूलों को बन्द करके शंबूको के लिए शिक्षा के दरवाजे बन्द करने वाली संघ पोषित सरकारों की त्रिपुरा से असली चिढ यह है कि इसने उनकी आँखें खोल दी हैं । ये दरअसल बुद्दि-भीरू हैं ।

त्रिपुरा से पहली रूबरू मुलाक़ात 1979-80 के सत्र में तब हुयी जब ग्वालियर के मेडिकल कॉलेज में स्टूडेंट्स फेडेररेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफआई) की इकाई बनी । इसीसे निकले डॉ. हरेन्द्र अग्रवाल बाद में एसएफआई के प्रदेशाध्यक्ष और तबकी सीपीएम राज्य समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य बने । चंदू (अब डॉ. चंद्रशेखर रहालकर) का हॉस्टल रूम इसका ऑफिस था । दादा (अब डॉ. सुकुमार देव) इसके केंद्र थे ।


● (अविवाहित रहे दादा ने बाद में अपनी ऑप्थेमोलॉजी की समूची डॉक्टरी पूरे त्रिपुरा को आँखों की बीमारी से मुक्त करने की मुहिम संगठित करने में लगा दी । वी आर प्राउड ऑफ़ हिम ; एक ग्वालियरी के नाते हमे गर्व है कि त्रिपुरावासियों की चमकती निरोग आँखों में थोड़ा सा ग्वालियर भी है ।)


● सुकुमार देव डॉक्टरी पढ़ने त्रिपुरा से आये थे । हमारे लिए अचम्भे की बात थी । हमे शहर से शहर में ख़ासगी के अपने घर से साइन्स कॉलेज जाने और एग्जाम के दिनों में हॉस्टल में रहने से ही होम सिकनेस होने लगती थी और सुकुमार देव 2257 कि.मी. पढ़ने आये थे ।


● उनसे पता चला कि देश भर के मेडिकल/इंजीनियरिंग कॉलेजों में त्रिपुरा के लिए एक एक, दो दो सीटें आरक्षित हैं । क्यूंकि उनके यहां तकनीकी-व्यावसायिक शिक्षा की संस्थायें नहीं हैं । ऐसा अनायास नहीं था । यह पूंजीवादी मुखौटे में सामन्तवाद था जहां शम्बूक को शम्बूक बनाये रखने में खर्च होती है पूरी ताकत ।


● नृपेन चक्रबर्ती फिर दशरथ देव और बाद में माणिक सरकार के मुख्यमंत्रित्व में बनी वामपंथी सरकारों ने सबसे पहले त्रिपुरा को शिक्षित किया ।आज देश का सबसे साक्षर प्रदेश ही नहीं पूर्ण साक्षर प्रदेश है त्रिपुरा । यहां की आदिवासी महिलाओं की साक्षरता दर बाकी देश की पुरुष साक्षरता से भी ऊंची है ।


● अब किसी सुकुमार देव को ग्वालियर नहीं आना होगा । 40 लाख की आबादी के लिए दो मेडीकल कॉलेज, कई इंजीनियरिंग संस्थान, लॉ कॉलेज और पूरे त्रिपुरा में प्राथमिक से उच्चतर और महाविद्यालयीन शिक्षा का मजबूत ढांचा खड़ा किया जा चुका है ।


JNU, HCU, BHU जैसी यूनिवर्सटियों को मिटाने पर आमादा, मध्यप्रदेश में सवा लाख सरकारी स्कूलों को बन्द करके शंबूको के लिए शिक्षा के दरवाजे बन्द करने वाली संघ पोषित सरकारों की त्रिपुरा से असली चिढ यह है कि इसने उनकी आँखें खोल दी हैं । ये दरअसल बुद्दि-भीरू हैं ।


● पढ़ा लिखा समाज आरएसएस की भयग्रंथि है । इसके बड़के नेकरिये नवाज शरीफ को मान्य नातेदार मानकर उसकी नातिन की शादी में भात लेकर जाने और उन्हें सराहने में कोई उपमा बाकी नहीं छोड़ते मगर "बुद्दिजीवी" शब्द का गाली की तरह इस्तेमाल करते हैं ।


● त्रिपुरा जैसे शम्बूक अगर पढ़ेंगे-लिखेंगे, मिलकर साथ साथ रहेंगे तो भला कैसे बनेगा मुसोलिनी से दीक्षा और हिटलर से ध्वज प्रणाम की अदा लेकर लाया गया अम्बानी-अडानी के पीठत्व , छोटे, बड़े, मंझले, संझले मोदीयों के मठों और ट्रम्प के शंकराचार्यत्व वाले "हिंदुत्व" का हिन्दू राष्ट्र ।


● इसलिये जो बर्बर तीन दिन से अगरतला और त्रिपुरा में सीपीएम के 200 दफ्तर जला चुके हैं । सैकड़ों नागरिकों पर हमला कर चुके हैं । 94 साल पहले देह छोड़ चुके लेनिन से थरथर कांप रहे हैं - उनका असली निशाना इस आधुनिक शम्बूक को दण्डित करना है, उसके इस पाप के लिए कि आखिर उसने पढ़ने समझने की जुर्रत की तो कैसे की !!


● मगर उधार की ताकत को वे ज्यादा आंक रहे है, जनता की शक्ति का अंदाजा उन्हें नहीं है


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Badal Saroj

लेखक लोकजतन के संपादक एवं अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं.

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