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कैद में कश्मीर

शहर कर्फ्यू के चलते खामोश है और उजाड़ जैसा दिख रहा है और भारतीय सेना और अर्ध्द सैनिक बलों से भरा पड़ा है। कर्फ्यू पूरी तरह लागू था और यह 5 अगस्त से लागू था। श्रीनगर की गलियां सूनी थीं

अनुच्छेद 370 व 35 ए को केन्द्र सरकार द्वारा हटाए जाने के बाद कश्मीर पहुंचे एक प्रतिनिधि मंडल ने दिल्ली लौटकर रिपोर्ट पत्रकार वार्ता में पेश की। इस प्रतिनिधि मंडल में ज्यां द्रेज़,अर्थशास्त्री, कविता कृष्णन, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसियेशन (ऐपवा), मैमूना मुल्ला, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (ऐडवा),विमल भाई, नेशनल एलायन्स ऑफ पीपुल्स मूवमेण्ट (एनएपीएम)शामिल है।

हमने कश्मीर में पांच दिन (9 से 13 अगस्त तक) यात्रा करते हुए बिताये। भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 और 35 ए को रद्द करने और जम्मू कश्मीर राज्य को समाप्त करके इसे दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बांटने के चार दिन बाद 9 अगस्त को हमने यात्रा की शुरुआत की।

जब हम 9 अगस्त को श्रीनगर पहुंचे तो हमने देखा कि शहर कर्फ्यू के चलते खामोश है और उजाड़ जैसा दिख रहा है और भारतीय सेना और अर्ध्द सैनिक बलों से भरा पड़ा है। कर्फ्यू पूरी तरह लागू था और यह 5 अगस्त से लागू था। श्रीनगर की गलियां सूनी थीं और शहर की सभी संस्थायें (दुकानें, स्कूल, पुस्तकालय, पेट्रोल पंप, सरकारी दफ्तर और बैंक) बंद थीं। केवल कुछ एटीएम, दवा की दुकानें और पुलिस स्टेशन खुले हुए थे। लोग अकेले या दो लोग इधर-उधर जा रहे थे लेकिन कोई समूह में नहीं चल रहा था।

हमने श्रीनगर के भीतर और बाहर काफी यात्रायें कीं। भारतीय मीडिया केवल श्रीनगर के छोटे से इलाके में ही अपने को सीमित रखता है। उस छोटे से इलाके में बीच-बीच में हालात सामान्य जैसे दिखते हैं। इसी आधार पर भारतीय मीडिया यह दावा कर रहा है कि कश्मीर में हालात सामान्य हो गये हैं। इससे बड़ा झूठ और कुछ नहीं हो सकता। 

हमने श्रीनगर शहर और कश्मीर के गांवों व छोटे कस्बों में पांच दिन तक सैकड़ों आम लोगों से बातचीत करते हुए बिताये। हमने महिलाओं, स्कूल और कॉलेज के छात्रों,दुकानदारों, पत्रकारों, छोटा-मोटा बिजनेस चलाने वालों, दिहाड़ी मजदूरों, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और अय राज्यों से आये हुए मजदूरों से बात की। हमने घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडितों, सिखों और कश्मीरी मुसलमानों से भी बातचीत की।

 हर जगह लोग गर्मजोशी से मिले। यहां तक कि जो लोग बहुत गुस्से में थे और हमारे मकसद के बारे में आशंकित थे उनकी गर्मजोशी में भी कोई कमी नहीं थी। भारत सरकार के प्रति दर्द, गुस्से और विश्वासघात की बात करने वाले लोगों ने भी गर्मजोशी और मेहमान नवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी। हम इससे बहुत प्रभावित हुए।

कश्मीर मामलों के भाजपा प्रवक्ता के अलावा हम एक भी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिले जिसने अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के भारत सरकार के फैसले का समर्थन किया हो। ज्यादातर लोग अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाने के निर्णय और हटाने के तरीके को लेकर बहुत गुस्से में थे। सबसे ज्यादा हमे गुस्सा और भय ही देखने को मिला। लोगों ने अनौपचारिक बातचीत में अपने गुस्से का खुलकर इजहार किया लेकिन कोई भी कैमरे के सामने बोलने के लिए तैयार नहीं था। हर बोलने वाले को सरकारी दमन का खतरा था। कई लोगों ने हमें बताया कि देर-सबेर (जब पाबंदियां हटा ली जायेंगी या ईद के बाद या हो सकता है 15 अगस्त के बाद) बड़े विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत होगी। लोगों को शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर भी दमन और हिंसा की आशंका है।

 जम्मू कश्मीर के साथ सरकार के बर्ताव पर प्रतिक्रिया
-जब हमारा हवाई जहाज श्रीनगर में उतरा और यात्रियों को बताया गया के वे अपने मोबाइल फोन चालू कर सकते हैं तो सारे ही यात्री (इनमें ज्यादातर कश्मीरी थे) मजाक उड़ाते हुए हंस पड़े। लोग कह रहे थे कि ‘‘क्या मजाक है।’’ 5 अगस्त से ही मोबाइल और लैंड लाइन सेवाओं को बंद कर दिया गया था। क श्रीनगर में पहुंचने के बाद हमें एक पार्क में कुछ छोटे बच्चे अलग-अलग किरदारों का खेल खेलते हुए मिले। हमने वहां सुना ‘‘इबलीस मोदी’’। ‘‘इबलीस’’ माने ‘‘शैतान’’।

 -भारत सरकार के निर्णय के बारे में लोगों से सबसे ज्यादा जो शब्द सुनाई पड़े वे थे ‘ज़ुल्म’, ‘ज्यादती’ और ‘धोखा’। सफकदल (डाउन टाउन, श्रीनगर) में एक आदमी ने कहा कि ‘सरकार ने हम कश्मीरियों के साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया है। हमें कैद करके हमारी जिंदगी और भविष्य के बारे में फैसला कर लिया है। यह हमें बंदी बनाकर, हमारे सिर पर बंदूक तानकर और हमारी आवाज घोंटकर मुंह में जबरन कुछ ठूंस देने जैसा है।’- हम श्रीनगर की गलियों से लेकर हर कस्बे और गांव जहां भी गये हमें आम लोगों ने, यहां तक कि स्कूल के बच्चों तक ने भी कश्मीर विवाद के इतिहास के बारे में विस्तार से समझाया। वे भारतीय मीडिया द्वारा इतिहास को पूरी तरह तोडऩे-मरोडऩे से बहुत नाराज दिखे। बहुतों ने कहा कि ‘अनुच्छेद 370 भारतीय और कश्मीरी नेताओं के बीच का करार था। यदि यह करार नहीं हुआ होता तो कश्मीर भारत में विलय नहीं करता। अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद भारत के कश्मीर पर दावे का कोई आधार नहीं रह गया है।’ लालचौक के पास जहांगीर चौक इलाके में एक आदमी ने अनुच्छेद 370 को कश्मीर और भारत के बीच विवाह के समझौते का मंगलसूत्र बताया। (अनुच्छेद 370 और 35 ए को समाप्त करने के बारे लोगों की और प्रतिक्रियायें आगे दी गई हैं।)

-भारतीय मीडिया के बारे में चारों तरफ नाराजगी है। लोग अपने घरों में कैद हैं, वे एक दूसरे से बात नहीं कर सकते, वे सोशल मीडिया पर अपने बात नहीं रख सकते और किसी भी तरह अपनी आवाज नहीं उठा सकते। वे अपने घरों में भारतीय टीवी चैनल देख रहे हैं जिनमें दावा किया जा रहा है कि कश्मीर भारत सरकार के फैसले का स्वागत करता है। वे अपनी आवाज मिटा दिये जाने के खिलाफ गुस्से से खौल रहे हैं। एक नौजवान ने कहा कि ‘किसकी शादी है और कौन नाच रहा है? यदि यह निर्णय हमारे फायदे और विकास के लिए है तो हमसे क्यों नहीं पूछा जा रहा है कि हम इसके बारे में क्या सोचते हैं?’

 अनुच्छेद 370 के खत्म होने पर प्रतिक्रिया 
-अनंतनाग जिले के गौरी गांव में एक व्यक्ति ने कहा ‘हमारा उनसे रिश्ता अनुच्छेद 370 और 35 ए से था। अब उन्होंने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार दी है। अब तो हम आजाद हो गये हैं।’ इसी व्यक्ति ने पहले नारा लगाया ‘हमें चाहिए आजादी’ और उसके बाद दूसरा नारा लगाया ‘अनुच्छेद 370 और 35 ए को बहाल करो।’ - कई लोगों ने अनुच्छेद 370 और 35 ए को कश्मीरियों की पहचान बताया। वे मानते हैं कि अनुच्छेद 370 को खत्म करके कश्मीरियों के आत्म सम्मान और उनकी पहचान पर हमला किया गया है। उन्हें अपमानित किया गया है। 

- सभी अनुच्छेद 370 को फिर से बहाल करने की मांग नहीं कर रहे हैं। बहुत से लोगों ने कहा कि केवल संसदीय पार्टियां ही हैं जो लोगों से कहती थीं कि विश्वास रखें, भारत अनुच्छेद 370 के करार का सम्मान करेगा। अनुच्छेद 370 के खात्मे ने ‘भारत समर्थक पार्टियों’ को और भी बदनाम कर दिया है। उन्हें लगता है कि कश्मीर की भारत से ‘आजादी’ की बात करने वाले लोग सही थे। बातामालू में एक व्यक्ति ने कहा कि ‘जो इंडिया के गीत गाते हैं, अपने बंदे हैं, वे भी बंद हैं।’ एक कश्मीरी पत्रकार ने कहा कि ‘मुख्यधारा की पार्टियों से जैसा बर्ताव किया जा रहा है उससे बहुत से लोग खुश हैं। ये पार्टियां भारत की तरफदारी करती हैं और अब जलील हो रही हैं।’ 

-लोगों की एक टेक यह भी थी कि ‘मोदी ने भारत के अपने कानून और संविधान को नष्ट कर दिया है।’ जो लोग यह कह रहे थे उनका मानना था कि अनुच्छेद 370 जितना कश्मीरियों के लिए जरूरी था उतना ही उससे कहीं ज्यादा भारत के लिए जरूरी था ताकि वे कश्मीर पर अपने दावे को कानूनी जामा पहना सकें। मोदी सरकार ने केवल कश्मीर को ही तबाह नहीं किया है बल्कि अपनी ही देश के कानून और संविधान की धज्जियां उड़ा दी हैं।
-श्रीनगर के जहांगीर चौक के एक होजरी व्यापारी ने कहा ‘कांग्रेस ने पीठ में छुरा भोंका था, भाजपा ने सामने से छुरा भोंका है। उन्होंने हमारे खिलाफ कुछ नहीं किया है बल्कि अपने ही संविधान का गला घोंट दिया है। यह हिंदू राष्ट्र की दिशा में पहला कदम है।’ 

-कुछ मायनों में लोग अनुच्छेद 370 को समाप्त किये जाने की अपेक्षा 35 ए को समाप्त किये जाने पर ज्यादा चिंतित थे। बहुतेरे लोगों का मानना था कि अनुच्छेद 370 तो केवल नाम मात्र के लिए था, स्वायत्तता तो पहले ही खत्म हो चुकी थी। लोगों में डर था कि 35 ए के चले जाने से ‘राज्य की जमीन सस्ते दामों में निवेशकों को बेंच दी जायेगी। अंबानी और पतंजलि जैसे लोग आसानी से आ जायेंगे। कश्मीर की जमीन और संसाधनों को हड़प लिया जायेगा। आज की तारीख में कश्मीर में शिक्षा और रोजगार का स्तर बाकी मुख्यधारा के राज्यों से बेहतर है। लेकिन कल को कश्मीरियों को सरकारी नौकरियों के लिए दूसरे राज्यों के लोगों के साथ प्रतिस्पद्र्धा करनी पड़ेगी। एक पीढ़ी के बाद ज्यादातर कश्मीरियों के पास नौकरियां नहीं होंगी या फिर वे दूसरे राज्यों में जाने के लिए मजबूर होंगे।’

‘हालात सामान्य’ हैं - या कब्रिस्तान जैसी शांति है ?
-क्या कश्मीर के हालात सामान्य और शांतिपूर्ण हैं? जैसा कि बताया जा रहा है। नहीं, बिल्कुल नहीं। 
1. सोपोर में एक नौजवान ने हमसे कहा, ‘यह बन्दूक की नोंक पर खामोशी है, कब्रिस्तान की खामोशी।
2. वहां के समाचार पत्र ग्रेटर काश्मीर के फ्रण्ट पेज पर कुछ खबरें थीं और पिछले पन्ने पर खेल सम्बंधी खबरें, बीच के सभी पेजों पर शादियों और अन्य समारोहों को स्थगित कर देने की सूचनाओं से भरे हुए थे।
3. सरकार का दावा है कि केवल धारा 144 लगाई गई है, कफ्र्यू नहीं। लेकिन पुलिस की गाडिय़ां पूरे श्रीनगर शहर में पेट्रोलिंग करके लोगों को चेतावनी दे रही थीं कि ‘घर में सुरक्षित रहिए, कफ्र्यू में बाहर मत घूमिये’, और दुकानदारों से दुकानें बन्द करने को कह रही थीं। बाहर घूमने वालों से वे कफ्र्यू पास मांग रहे थे। 
4. पूरे कश्मीर में कफ्र्यू है, यहां तक कि ईद के दिन भी सडक़ें और बाजार सूने पड़े थे। श्रीनगर में जगह जगह कन्सर्टिना तार और भारी संख्या में अर्धसैन्य बलों की मौजूदगी में आना जाना बाधित हो रहा था। ईद के दिन भी यही हाल रहा। कई गांवों में अजान पर पैरामिलिटरी ने रोक लगा दी थी और ईद पर मस्जिद में सामूहिक रूप से नमाज पढऩे के स्थान पर लोगों को मजबूरी में घरों में ही नमाज पढऩी पड़ी। 
5. अनन्तनाग, शोपियां और पम्पोर (दक्षिण कश्मीर) में हमें केवल बहुत छोटे बच्चे ही ईद के मौके पर उत्सवी कपड़े पहने दिखे। मानो कि बाकी सभी लोग शोक मना रहे हों। अनन्तनाग के गुरी में एक महिला ने कहा कि ‘हमें ऐसा लग रहा है जैसे कि हम जेल में हैं’ नागबल (शोपियां) में कुछ लड़कियां कहने लगीं कि जब हमारे भाई पुलिस या सेना की हिरासत में हैं, ऐसे में हम ईद कैसे मनायें? 
6. ईद से एक दिन पहले 11 अगस्त को शोपियां में एक महिला ने बताया कि वह कफ्र्यू में थोड़ी देर को ढील मिलने से बाजार में ईद का कुछ सामान खरीदने आयी है। ‘पिछले सात दिनों से हम अपने घरों में कैद थे, और मेरे गांव लांगट में आज भी दुकानें बंद हैं इसलिए ईद की खरीदारी करने सोपोर शहर आई हूँ और यहां मेरी बेटी नर्सिंग की छात्रा है उसकी कुशल क्षेम भी ले लूंगी’ उसने कहा। 
7. बांदीपुरा के पास वतपुरा में बेकरी में एक युवक ने बताया कि ‘यहां मोदी नहीं, सेना का राज है’ उसके दोस्त ने आगे कहा कि ‘हम डरे हुए रहते हैं क्योंकि पास में सेना के कैम्प से ऐसे कठिन नियम कायदे थोपे जाते हैं जिन्हें पूरा कर पाना लगभग असम्भव हो जाता है। वे कहते हैं कि घर से बाहर जाओ तो आधा घण्टे में ही वापस लौटना होगा। लेकिन अगर मेरा बच्चा बीमार है और उसे अस्पताल ले जाना है तो आधा घण्टा से ज्यादा भी लग सकता है। अगर कोई पास के गांव में अपनी बेटी से मिलने जायगा तो भी आधा घण्टा से ज्यादा ही लगेगा। लेकिन अगर थोड़ी भी देर हो जाय तो हमें प्रताडि़त किया जाता है’ सीआरपीएफ सभी जगह है, कश्मीर में लगभग प्रत्येक घर के बाहर। जाहिर है वे वहां काश्मीरियों को ‘सुरक्षा’ नहीं दे रहे हैं, बल्कि उनकी उपस्थिति वहां भय बनाती है।
8. भेड़ों के व्यापारी और चरवाहे वहां अनबिकी भेड़ों व बकरियों के साथ दिखाई दिये। जिन पशुओं पर साल भर निवेश किया अब वे बिक नहीं पा रहे। उनके लिए इसका अर्थ भारी आर्थिक नुकसान उठाना है। दूसरी ओर जो लोग काम पर नहीं जा पा रहे, उनकी कमाई बंद है और वे ईद पर कुर्बानी के लिए जानवर नहीं खरीद पा रहे। 
9. बिजनौर (उ.प्र.) के एक दुकानदार ने हमें अपनी बिना बिकी मिठाईयों का ढेर दिखाया जो बरबाद हो रहा था क्योंकि लोगों के पास उन्हें खरीदने के पैसे ही नहीं हैं।
10. श्रीनगर में एस्थमा से पीडि़त एक ऑटो ड्राइवर ने हमें अपनी दवाईयों, सालबूटामोल और एस्थालिन, की आखिरी डोज दिखाते हुए बताया कि वह कई दिनों से दवा खरीदने के लिए भटक रहा है परन्तु उसके इलाके में कैमिस्ट की दुकानों और अस्पतालों में इसका स्टॉक खत्म हो चुका है और वह बड़े अस्पताल में जा नहीं सकता क्योंकि रास्ते में सीआरपीएफ वाले रोकते हैं. उन्होंने एस्थालिन इनहेलर का एक खाली कुचला हुआ कवर दिखाते हुए कहा कि उस कवर को जब सीआरपीएफ के एक जवान को दिखा कर दवा खरीदने के लिए आगे जाने देने की गुजारिश की तो उसने वह कवर ही अपने बूटों से रौंद डाला। उसको रौंद क्यों डाला? क्योंकि वह मुझसे नफरत करता है’ ऑटो ड्राइवर का कहना था।
-विरोध, दमन और बर्बरता - 
1. 9 अगस्त को श्रीनगर के शौरा में करीब 10000 लोग विरोध करने के लिए जमा हुए। सैन्य बलों द्वारा उन पर पैलट गन से फायर किये गये जिसमें कई घायल हुए। हमने 10 अगस्त को शौरा जाने की कोशिश की लेकिन सीआरपीएफ के बैरिकेड पर रोक दिया गया। उस दिन भी हमें बहुत से युवा प्रदर्शनकारी सडक़ पर रास्ता जाम किये दिखाई दिये।
2. श्रीनगर के एसएमएचएस अस्पताल में पैलट गन से घायल दो लोगों से हम मिले। दो युवकों वकार अहमद और वाहिद के चेहरे, बांहों और शरीर के ऊपरी हिस्से में पैलट के निशान भरे हुए थे। उनकी आंखेां में खून भरा हुआ था, वे अन्धे हो चुके थे। वकार को कैथेटर लगा हुआ था जिसमें शरीर के अंदरुनी हिस्सों से निकल रहे खून से उसकी पेशाब लाल हो गई थी। दुख और गुस्से में रोते हुए उनके परिवार के सदस्यों ने बताया कि ये दोनों ही युवक पत्थरबाजी आदि नहीं, केवल शांतिपूर्वक विरोध कर रहे थे। 
3. 6 अगस्त को अपने घर के पास मांदरबाग इलाके में एक वृद्ध व्यक्ति को रास्ते में न जाने देने पर राइजिंग काश्मीर समाचार पत्र में ग्राफिक डिजायनर समीर अहमद (उम्र करीब 20-25 के बीच) सीआरपीएफ वालों को टोक दिया। बाद में उसी दिन जब समीर अहमद ने अपने घर का दरवाजा खोल रहे थे तो अचानक सीआरपीएफ ने उन पर पैलट गन से फायर कर दिया। उनकी बांह में, चेहरे पर और आंख के पास कुल मिला कर 172 पैलट के घाव लगे हैं। खैर है कि उनकी आंखों की रोशनी नहीं गई। इसमें कोई संदेह नहीं कि पैलट गन से जानबूझ कर चेहरे और आंखों पर निशाना लगाया जा रहा है, और निहत्थे शांतिपूर्ण नागरिक वे चाहे अपने ही घर के दरवाजे पर खड़े हों, निशाना बन सकते हैं। 
4. कम से कम 600 राजनीतिक दलों के नेता और सामाजिक कार्यकर्ता गिरफ्तार किये जा चुके हैं। इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि किन धाराओं या अपराधों में वे गिरफतार हैं और उन्हें कहां ले जाकर बंद किया गया है।
5. इसके अलावा बहुत बड़ी संख्या में नेताओं को हाउस अरेस्ट किया गया है - यह बता पाना मुश्किल है कि कुल कितने। हमने सीपीएम के विधायक मो.यूसुफ तारीगामी से मुलाकात करने की कोशिश की, लेकिन हमें श्रीनगर में उनके घर के बाहर ही रोक दिया गया जहां वे हाउस अरेस्ट में हैं। 
6. हरेक गांव में और श्रीनगर के मुख्य इलाकों में जहां भी गये, हमने पाया कि कम उम्र के स्कूल जाने वाले लडक़ों को पुलिस, सेना या अर्धसैन्य बल उठा ले गये हैं और वे गैर कानूनी हिरासत में हैं। हमें पम्पोर में एक ऐसा ही 11 साल का लडक़ा मिला जो 5 से 11 अगस्त के बीच थाने में बंद था। वहां उसकी पिटाई की गई। उसी ने बताया कि उसके साथ आस पास के गांवों के उससे भी कम उम्र के लडक़े भी बंद किये गये थे।
7. आधी रात को छापेमारी करके सैकड़ों लडक़ों व किशोरों को उठा लिया गया। ऐसी छापेमारियों का एकमात्र उद्देश्य डर पैदा करना ही हो सकता है। महिलाओं एवं लड़कियों ने बताया कि उनके साथ इन छापेमारियों के दौरान छेडख़ानी भी हुई। उनके माता-पिता बच्चों की ‘गिरफ्तारी’ (अपहरण) के बारे में बात करने से भी डर रहे थे। उन्हें डर था कि कहीं पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट के तहत केस न लगा दिया जाय। वे इसलिए भी डरे हुए थे कि बोलने से कहीं बच्चे ‘गायब’ ही न हो जायं - जिसका मतलब होता है हिरासत में मौत और फिर किसी सामूहिक कब्रगाह में दफन कर दिया जाना, जिसका कि कश्मीर में काफी कड़वा इतिहास है। इसी तरह से गिरफ्तार किये गये एक लडक़े के पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘इन गिरफ्तारियों का कहीं रिकॉर्ड नहीं हैं। यह गैरकानूनी हिरासत है, इसलिए अगर कोई लडक़ा ‘गायब’ हो जाता है, यानि हिरासत में मर जाता है, तो पुलिस/सेना आसानी से कह सकती है कि उन्होंने तो कभी उसे गिरफ्तार ही नहीं किया था’। 
8. लेकिन हो रहे विरोधों के रुकने की कोई सम्भावना नहीं है। सोपोर में एक नौजवान ने कहा, ‘जितना जुल्म करेंगे, उतना हम उभरेंगे’ विभिन्न जगहों पर एक ही बात बार बार सुनने को मिली, ‘कोई चिन्ता की बात नहीं कि नेता जेल में डाल दिये गये हैं। हमें नेताओं की जरूरत नहीं है। जब तक एक अकेला कश्मीरी बच्चा भी जिन्दा है प्रतिरोध चलता रहेगा। 
मीडिया पर पाबंदी - 
1. एक पत्रकार ने हमें बताया कि इतना कुछ होने के बाद भी अखबार छप रहे हैं। इण्टरनेट न होने से एजेन्सियों से समाचार नहीं मिल पा रहे हैं और हम एनडीटीवी से देख कर जम्मू और कश्मीर के बारे में संसद में होने वाली गतिविधियों को रिपोर्ट करने तक सीमित रह गये हैं। यह अघोषित सेंसरशिप है। अगर सरकार पुलिस को इण्टरनेट और फोन की सुविधा दे सकती है और मीडिया को नहीं तो इसका और क्या मतलब हो सकता है? 
2. कश्मीरी टीवी चैनल पूरी तरह से बंद हैं।
3. कश्मीरी समाचार पत्र जो वहां के विरोध प्रदर्शनों की थोड़ी सी भी जानकारी देते हैं, जैसा कि शौरा की घटना के बारे में हुआ, तो उन्हें प्रशासन की नाराजगी का शिकार होना पड़ रहा है।
4. अंतरराष्ट्रीय प्रेस रिपार्टरों ने हमें बताया कि अधिकारी उनकी आवाजाही को भी प्रतिबंधित कर रहे हैं। इंटरनेट न होने के चलते वे अपने मुख्यालयों से भी संपर्क नहीं कर पा रहे हैं। 
5. जब हम 13 अगस्त को श्रीनगर के प्रेस एन्क्लेव में पहुंचे, वहां समाचार पत्रों के कार्यालय बंद मिले और इक्कादुक्का पत्रकारों एवं कुछ सीआइडी वालों के अलावा पूरा इलाका उजाड़ हुआ दिख रहा था. उन्हीं में से एक पत्रकार ने बताया कि वहां कोई भी अखबार कम से कम 17 अगस्त से पहले तो नहीं छप सकता क्योंकि उनके पास न्यूजप्रिन्ट का कोटा खत्म हो चुका है जोकि दिल्ली से आता है। 
6. जैसा कि ऊपर जिक्र किया गया है कि एक समाचार पत्र में काम करने वाले ग्राफिक डिजायनर को बगैर किसी उकसावे सीआरपीएफ ने पैलट गन से घायल कर दिया था। 
क्या कश्मीर में विकास नहीं हुआ? 
टाइम्स ऑफ इण्डिया के ओप-एड कॉलम में (9 अगस्त 2019) पूर्व विदेश सचिव और पूर्व राजदूत निरूपमा राव ने लिखा है कि ‘इस लेखक को एक युवा कश्मीरी ने कुछ महीने पहले बताया कि उसका जन्म स्थान आज भी ‘पाषाण युग’ में रह रहा है- अर्थात आर्थिक विकास के मामले में कश्मीर बाकी के भारत से दो सौ साल पीछे है
हमने सभी जगह ऐसा ‘पिछड़ा’ ‘पाषाण काल’ वाला कश्मीर ढूंढऩे की बहुत कोशिश की। कहीं नहीं दिखा।
1. हरेक कश्मीरी गांव में हमें ऐसे युवक एवं युवतियां मिले जो कॉलेज या विश्वविद्यालय जाते हैं, कश्मीरी, हिन्दी और अंग्रेजी में बढिय़ा से बात कर सकते हैं, और पूरी तथ्यात्मक शुद्धता एवं विद्वता के साथ कश्मीर समस्या पर संवैधानिक व अंतर्राष्ट्रीय कानून के बिन्दुओं को बताते हुए बहस कर सकते हैं। हमारी टीम के सभी चारों सदस्य उत्तर भारतीय राज्यों के गांवों से भलीभांति परिचित हैं। ऐसी उच्च स्तर की शिक्षा का बिहार, यूपी, एमपी, या झारखण्ड के गांवों में मिल पाना बेहद ही दुर्लभ है। 
2. ग्रामीण कश्मीर में सभी घर पक्के बने हुए है। बिहार, यूपी या झारखण्ड जैसी झौंपडिय़ां हमें कहीं देखने को नहीं मिलीं। 
3. बेशक कश्मीर में भी गरीब हैं, लेकिन कई उत्तर भारतीय राज्यों जैसी फटेहाली, भुखमरी और अत्यंत गरीबी के हालात ग्रामीण कश्मीर में बिल्कुल नहीं है। 
4. कई स्थानों पर उत्तर भारत और पश्चिम बंगाल से आये प्रवासी मजदूरों से भी हमारी मुलाकात हुई। उन्होंने बताया कि वे यहां किसी भी प्रकार की उन्मादी हिन्सा - जैसी कि महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में वे झेलते हैं - से पूरी तरह सुरक्षित और आजाद हैं। दिहाड़ी के मामले में तो प्रवासी मजदूरों ने कहा कि ‘कश्मीर तो उनके लिए दुबई के समान है। यहां हमें प्रतिदिन 600 से 800 रूपये मिल जाते हैं। जोकि किसी भी अन्य राज्य से 3 से 4 गुना तक ज्यादा है’
5. कश्मीर साम्प्रदायिक तनाव और मॉब लिंचिंग जैसी प्रवृत्तियों से पूरी तरह से मुक्त है। हमने कश्मीरी पण्डितों से भी मुलाकात की। उनका कहना था कि वे कश्मीर में सुरक्षित हैं और यह कि कश्मीरी हमेशा अपने त्योहार मिलजुल कर मनाते हैं। एक कश्मीरी पण्डित युवक ने कहा कि ‘यही तो हमारी कश्मीरियत है’ 
6. कश्मीर में महिलाओं के ‘पिछड़े’ होने का मिथक तो शायद सबसे बड़ा झूठ है। कश्मीर में लड़कियों में शिक्षा का स्तर ऊंचा है। इसके बावजूद भी कि उन्हें भी अपने समाजों में पितृसत्ता और लैंगिक भेदभाव का मुकाबला करना पड़ता है। वे बात को बेहतर समझ सकती हैं और आत्मविश्वास से भरी हुई हैं। परन्तु भाजपा किस मुंह से कश्मीर को नारीवाद पर उपदेश दे रही है, जिसके हरियाणा के मुख्यमंत्री और मुजफ्फरनगर के एमएलए ‘कश्मीर से बहुयें लाने’ की बातें कर रहे हैं मानो कि कश्मीर की औरतें ऐसी सम्पत्ति हैं जिसको लूटा जाना है? कश्मीर की लड़कियों और महिलाओं ने हमसे साफ साफ कहा ‘हम अपनी लड़ाई लडऩे में सक्षम हैं। हम नहीं चाहते कि हमारे उत्पीडक़ हमारी मुक्तिदाता होने का दावा करें।’
उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में हमारा कहना है कि 
1. अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए खत्म करने के भारत सरकार के निर्णय, और जिस तरीके से ये निर्णय लिया गया, के खिलाफ कश्मीर में गहरा असंतोष एवं गुस्सा व्याप्त है। 
2. इस असंतोष को दबाने के लिए सरकार ने कश्मीर में कफ्र्यू जैसे हालत बना दिये हैं. थोड़े से एटीएम, कुछ कैमिस्ट की दुकानों और पुलिस थानों के अलावा कश्मीर पूरी तरह से बंद है। 
3. जनजीवन पर पाबंदियां और कफ्र्यू जैसे हालात से कश्मीर का आर्थिक जीवन भी चरमरा गया है। वह भी ऐसे वक्त में जब ईद का त्यौहार है जिसे समृद्धि और उत्सव से जोड़ कर देखा जाता है। 
4. वहां लोग सरकार, पुलिस या सेना के उत्पीडऩ के भय में जीते हैं। अनौपचारिक बातचीत में लोगों ने खुल कर अपना गुस्सा जाहिर किया लेकिन कैमरा के सामने बोलने से वे डरते रहे। 
5. कश्मीर में हालात तेजी से सामान्य होने के भारतीय मीडिया के दावे पूरी तरह से भ्रामक प्रचार है। ऐसी सभी रिपोर्टें मध्य श्रीनगर के एक छोटे से इलाके से बनायी गई हैं। 
6. वर्तमान हालात में कश्मीर में किसी तरह के विरोध प्रदर्शन, वह चाहे कितना भी शांतिपूर्ण हो, को करने का कोई स्पेस नहीं है। लेकिन आज नहीं तो कल, जनता का विरोध वहां फटेगा जरूर। 
भाजपा के प्रवक्ता की ‘चेतावनी’ 
कश्मीर मामलों पर भाजपा के प्रवक्ता अश्वनी कुमार चंगू हमें ‘राइजिंग कश्मीर’ समाचार पत्र के कार्यालय में मिले। बातचीत की शुरूआत सौहार्दपूर्वक हुई। उन्होंने बताया कि वे जम्मू से कश्मीर इसलिए आये हैं ताकि यहां लोगों को अनुच्छेद 370 खत्म करने के समर्थन में तैयार किया जा सके। उनका प्रमुख तर्क था चूंकि भाजपा को जम्मू व कश्मीर में 46 प्रतिशत वोट मिले हैं और संसद में अप्रत्याशित रूप में बहुमत मिला है, तो अब यह उनका अधिकार ही नहीं बल्कि कर्तव्य है कि वे अनुच्छेद 370 खत्म करने के अपने वायदे को पूरा करें। उनका कहना था कि ‘46 प्रतिशत वोट शेयर - यह हमारा लाइसेन्स है’ 
उन्होंने यह मानने से इंकार कर दिया कि केवल तीन लोकसभा सीटें (जम्मू, उधमपुर और लद्दाख) जीत कर ही जो 46 प्रतिशत वोट शेयर उनका हुआ है, उसके पीछे दरअसल मुख्य कारण यह है कि अन्य तीन लोकसभा सीटों (श्रीनगर, अनन्तनाग और बारामूला) पर पड़े मतों का प्रतिशत पूरे भारत में सबसे कम रहा था। 
तब क्या किसी सरकार को एक अलोकप्रिय निर्णय कश्मीर की जनता के ऊपर बन्दूक की नोक पर थोपना चाहिए जिसने उस निर्णय के लिए वोट ही नहीं दिया? इस पर चिंगू जी बिगड़ गये और बोले, ‘जब बिहार में नीतिश कुमार ने शराबबन्दी लागू की थी तब क्या वे बिहार के शराबियों की अनुमति या सहमति लेने गये थे।’ यहां भी वही किया गया है? इस तरह की तुलना से कश्मीरी जनता के प्रति उनकी नफरत बहुत साफ दिख रही थी। 
जब हम लोग तथ्यों और तर्कों के साथ उनसे मुखातिब होते रहे तो बातचीत खत्म होते होते तक वे और चिड़चिड़े होते गये। वे अचानक उठे और ज्यां ड्रेज की ओर उंगली उठा कर कहने लगे हम आप जैसे देशद्रोही को यहां काम नहीं करने देंगे,ये मेरी चेतावनी है। 
निष्कर्ष  
पूरा जम्मू और कश्मीर इस समय सेना के नियंत्रण में एक जेल बना हुआ है। मोदी सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर के बारे में लिए गया फैसला अनैतिक, असंवैधानिक और गैरकानूनी है और मोदी सरकार द्वारा कश्मीरियों को बन्धक बनाने, और किसी भी संभावित विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए जो तरीके अपनाये जा रहे हैं वे भी समग्रता में अनैतिक, असंवैधानिक और गैरकानूनी हैं।
1. हम मांग करते हैं कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को तुरंत बहाल किया जाये। 
2. जम्मू और कश्मीर के स्टेटस अथवा भविष्य के बारे में वहां की जनता की इच्छा के बिना कोई भी निर्णय हरगिज न लिया जाय। 
3. वहां लैण्डलाइन फोन, मोबाइल फोन और इण्टरनेट आदि संचार माध्यम तत्काल प्रभाव से बहाल किये जाये।
4. हमारी मांग है कि जम्मू और कश्मीर में बोलने, अभिव्यक्ति और विरोध करने की आजादी पर लगी पाबंदी को तत्काल हटाया जाये। जम्मू और कश्मीर के लोग काफी परेशान हैं और अपनी परेशानी को मीडिया, सोशल मीडिया, जन सभाओं और अन्य शांतिपूर्ण तरीकों से अभिव्यक्त करने की उन्हें आजादी मिले। 
5. हमारी मांग है कि वहां पत्रकारों पर लगाई जा रही पाबंदियां तत्काल हटाई जाये।
ज्यां द्रेज़,अर्थशास्त्री 
कविता कृष्णन, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसियेशन (ऐपवा)
मैमूना मुल्ला, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (ऐडवा) 
विमल भाई, नेशनल एलायन्स ऑफ पीपुल्स मूवमेण्ट (एनएपीएम)
 


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उपेन्द्र यादव

Journalist at Lokjatan...

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