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भावांतर योजना-व्यापारियों द्वारा किसानों को लूटने की नई योजना

एनएस पटेल   मध्यप्रदेश सरकार ने 16 अक्टूबर 2017  को लागू की गई भावांतर योजना पर किसान सभा के मुताबिक किसानों को लूटने वाली योजना साबित हो रही है। यह किसान विरोधी भावांतर लागू कर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने किसानों को एक और...

एनएस पटेल
 
मध्यप्रदेश सरकार ने 16 अक्टूबर 2017  को लागू की गई भावांतर योजना पर किसान सभा के मुताबिक किसानों को लूटने वाली योजना साबित हो रही है। यह किसान विरोधी भावांतर लागू कर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने किसानों को एक और भवरजाल में फंसा दिया। साथ ही व्यापारियों को किसानों को लूटने की छूट दे दी, इससे किसानों में आक्रोश और बढ़ेगा। यह योजना किस हद तक विरोधभासी है कि प्रदेश के कृषि मंत्री हो या पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा के विधायक हो या सांसदों की समझ के परे है। प्रदेश का किसान भी इस योजना को नहीं समझ पा रहा है। वह इस योजना से एक बार फिर ठगा हुआ महसूस कर रहा है। 
 
इस वर्ष सरकार ने खरीफ फसलों का पूर्व में घोषित समर्थन मूल्य एवं अक्टूबर 2017 में घोषित मॉडल रेट की तुलना करते हुए बताया कि पूर्व में सरकार ने समर्थन मूल्य उडद का 5400 रुपए, मूंग 5525 रुपए, सोयाबीन 3050 रुपए घोषित किया गया था। उसे वर्तमान में घोषित मॉडल रेट के अनुसार उडद 3410 रुपए, मूंग 4120 रुपए, सोयाबीन 2580 रुपए निर्धारित किया है। दोनों मूल्य में किसानों को क्रमश: 1900 रुपए, 1405 रुपए,  470 रुपए प्रति क्विंटल का नुकसान हो रहा है। इसके बाद भी व्यापारी मंडियों में मॉडल रेट पर खरीदी नहीं कर रहे है। किसानों की उपज मनमाने दामों पर खरीदी जा रही है। 
 
भावांतर योजना में राशि किसानों के खातों में डाले जाने का एक झांसा है। दूसरी योजनाओं की तरह किसानों को पैसे के लिए गिडगिडाना पड़ेगा। सरकार ने एवरेज फेयर क्वालिटी तथा नान एवरेज फेयर क्वालिटी को आधार बनायेगी, इससे व्यापारियों को किसानों को लूटने की खुली छूट होगी। भावांतर योजना के तहत अपनी फसल बेचने वाले किसानों को मंडिय़ों में पंजीयन कराना होगा। जो किसान ऐसा नहीं करेंगे उन्हें इस योजना से दूर रखा जाएगा। प्रदेश में खरीफ फसल की बोवनी 9712800 हैक्टेयर क्षेत्रफल में की गई। जिसमें मात्र 4010515 हैक्टेयर क्षेत्रफल की बोवनी का पंजीयन हुआ है। जहां तक नरसिंहपुर जिले का सवाल है54 हजार किसानों में से 19 हजार उक्त योजना के अंतर्गत अपना पंजीयन कराया है। शेष 35 हजार किसान इस योजना से पहले ही बाहर है। 
 
प्रदेश सरकार कृषि क्षेत्र में अपनी स्पष्ट नीति बनाने में पूर्णत: असफल रही है। किसान की लागत बढ़ रही है लेकिन सरकार उसके अनुरूप किसान को राहत नहीं दे पाई है। सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारशें लागू करने से बचना चाहती है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश में किसान आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे है। प्रदेश के गृहमंत्री खुद इस बात की जानकारी विधानसभा में दे चुके है कि वर्ष 2004 से 2016 तक 15291 किसानों ने आत्महत्याए की है। नरसिंहपुर जिला भी इससे अछूता नहीं है।
 
देश में स्थिति और भी भयावह है बीते 20 वर्षों में साढे तीन लाख किसानों ने आत्महत्याए की है। प्रदेश के आधे से अधिक किसान कर्ज में बुरी तरह फंसे हुए है। कर्ज भी भयावहता यह है कि प्रदेश के 40 प्रतिशत किसान साहूकारों के कर्ज के बोझ तले दबे हुए है। इसलिए सरकार को चाहिए कि भावांतर जैसे झुनझुनेदार योजनाओं से किसानों का भला नहीं होने वाले इसके लिए जरूरी है कि ठोस पहल की जाए और ईमानदारी से किसानों के हितों में योजनाए बनाई जाए जिससे उनके चेहरे पर मुस्कान आ सके। 

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