भाजपा प्रवक्ता ने जैसे ही बयान दिया कि इन उप चुनावों में शिवराज सिंह चौहान पार्टी का चेहरा होंगे, इधर एक लतीफा बढ़े जोरों से चल निकला। हुआं यूं कि भाजपा में पहुंचे सिंधिया समर्थकों ने बयान दिया कि नहीं इन चुनावों में मुख्य चेहरा सिंधिया होंगे। भाजपा प्रवक्ता ने फिर बयान दिया कि अन्य नेताओं के साथ सिंधिया भी प्रचार करेंगे, मगर चेहरा शिवराज हीं होंगे। यहां तक का घटनाक्रम तो सत्य है, लतीफा अब शुरू होता है।
भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि इन चुनावों में शिवराज पार्टी का चेहरा होंगे और सिंधिया जी मोहरा। पत्रकार का सवाल था कि कौन सा मोहरा? पिटा हुआ या पिटापिटाया मोहरा? प्रवक्ता न कहा देखिए चुनाव बाद जनता बता देगी कि वे कौन सा मोहरा हैं- पिटा हुआ या पिटापिटाया।
पीटने का काम भाजपा ने ही शुरू कर दिया है। प्रदेश में 24 विधान सभा सीटों पर उप चुनाप होना हैं। 22 सीटें तो वे हैं, जो सिंधिया समर्थक कांग्रेस विधायकों के साथ इस्तीफा देने से खाली हुई हैं। और दो सीटें विधायकों की मृत्यु से रिक्त हुई हैं। इसमें जौरा की सीट कांग्रेस विधायक की मृत्यु से रिक्त हुई है और वे सिंधिया समर्थक थे। भाजपा ने सिंधिया को साफ साफ बता दिया है कि बात सिर्फ 22 सीटों की है, जौरा पर उनकी नहीं चलेगी। भाजपा अपने ढंग से प्रत्याशी तय करेगी। मतलब साफ है कि एक सीट तो चुनाव से पहले ही श्रीमंत ने खो दी है।
अब रही बाकी सीटों की बात। उनके सबसे वफादार सबसे ज्यादा खतरे में हैं। जिस तुलसी सिलावट को वे कमलनाथ के जमाने से ही उप मुख्यमंत्री बनाने की बाल हठ पाले हैं। अभी उन्हें मंत्री पद का झुनझुना मिला है। उप मुख्यमंत्री पद के लिए उनके चुनाव जीतने के बाद विचार किया जाना है। अब चिंता सिर्फ प्रेम चंद गुड्डू की नहीं है, वे तो पहले सी ही बगावत कर चुके हैं। चिंता की लकीरें प्रकाश सोनकर की वजह से हैं, जो सिर्फ 2900 वोटो से हारे थे। सिलावट का उप मुख्यमंत्री बनना सोनकर के राजनीतिक भविष्य का अंत है। इसलिए वे भी अपने हथियार पैने कर रहे हैं।
भाजपा को सिर्फ 10 विधायकों की दरकार है। इसलिए वो ज्यादा सिरदर्द पालने के मूड में नहीं है। उसकी कोशिश है कि सिंधिया समर्थक विधायक तो जीत जायें, मगर मंत्री हार जायें। इससे भाजपा एक तीर से तीन निशान लगा लेगी। पहला निशाना तो यह होगा कि भाजपा अपनी सरकार बचा लेगी। एक दो कम पड़ेंगे तो र्निदलीय साथ आ जाएंगे। दूसरा भाजपा के अंदर पनपने वाला असंतोष शांत हो जायेगा। क्योंकि हारने के बाद इन मंत्रियों को बाहर होना पड़ेगा, और इनकी वजह से खाली हुए मंत्री पदों पर भाजपा नेताओं को बिठाया जायेगा। सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार जिस भूपेंद्र सिंह ने बैंगलूरू से सिंधिया समर्थको के इस्तीफे लाकर विधानसभा अध्यक्ष को दिए थे। उसी भूपेंद्र को मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिल पा रही है। नेता प्रतिपक्ष रहे गोपाल भार्गव भी अभी तक मंत्री पद पाने का इंतजार कर रहे हैं। मतलब यह कि जब वे विपक्ष में थे, तो उनके पास लालबत्ती थी। सत्ता आई तो लाल बत्ती चली गई।
तीसरा निशाना श्रीमंत पर होगा, जब उसके आधे से ज्यादा समर्थक हार जायेंगे तो उनकी जमा पूंजी भी 22 से घटकर सिर्फ 10-12 रह जायेगी। मतलब यह कि महाराज का कद आधा तो तराश ही दिया जायेगा। जैसे वे कमलनाथ सरकार को आंखें दिखाते थे, वैसी आंखें वे शिवराज को नहीं दिखा पायेंगे।
अलग अलग जगह अलग अलग समीकरण बन रहे हैं, महाराज को निबटाने के लिए। सुमावली में ऐदल सिंह कंसाना अब भाजपा प्रत्याशी होंगे, तो कांग्रेस की ओर से संभवत: महाराज के खासमखास रहे बृंदावन सिंह सिकरवार के बेटे कांग्रेस के प्रत्याशी होंगे। वे गजराज सिंह सिकरवार के भतीजे हैं। जाहिर है कि वे कांग्रेस के लिए ही काम करेंगे। तो निबटेंगे श्रीमंत के मोहरे। यूं खबर यह भी आई है कि बृंदावन सिंह के बेटे का टिकट भ्सी कट सकता है। भिंड जिले की दोनो सीटों- मेहगांव और गोहद की हालत। गोहद में तो रणवीर जाटव तो रण में हारने के लिए ही उतरेंगे। लाल सिंह आर्य बगावत भलें ही न करें, मगर राम सिर्फ मुंह में रहेगा और छुरी तो बगल में अभी से डाल रखी है। वैसे भी श्रीमंत रणवीर को मंत्री बनाने की बालहठ कर रहे हैं। भाजपा भी की कोशिश भी उन्हें हराने की होगी। मेंहगाव में हर समीकरण भाजपा के खिलाफ जा रहा है।
ग्वालियर में प्रद्युमन सिंह को महल और नरेंद्र सिंह तोमर का सहारा है। मगर जयभान सिंह पवैया वनवास लेने को तैयार नहीं हैं। सरकारी स्तर पर उप विधान सभा चुनावों को लेकर जितने भी सर्वे आए हैं, वे सब भाजपा के खिलाफ जा रहे हैं। भाजपा अगर इन चुनावों को हारती है, तो उसकी सिर्फ सरकार जायेगी, मगर सिंधिया का तो सबकुछ दांव पर लगा है। कुल मिलाकर इन चुनावों में भाजपा जीते या हारे। दांव पर सिंधिया हैं। उनके सामने दो ही विकल्प हैं कि वे कौन सा मोहरा हैं, पिटा हुआ या पिटापिटाया मोहरा।
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