भोपाल में मंगलवार को  #शैलेन्द्र_शैली की स्मृति में हुए 16वे व्याख्यान में बोलते हुए #प्रभात_पटनायक ने जब मौजूदा हालात में वामपंथ की विशेष जरूरत और निर्णायक भूमिका पर जोर दिया तब एक सजग नागरिक और हम सबके वरिष्ठ साथी ने खड़े होकर पूछा था : #व्हेयर_इज_द_लैफ्ट ? चार शब्दों का यह सवाल उनका ही नही है । यह उस अवाम का ऑनेस्ट सवाल है जो वर्तमान परिदृश्य को देखकर चिंतित और फ़िक़्रमन्द है - जिसे वाम पर विश्वास है ।


● व्याख्यान खत्म होते ही अग्रज दोस्त #राकेश_दीवान Rakesh Dewan ने प्यार और भलमनसाहत से हमारा हाथ पकड़कर कहा था #हियर_इज_द_लैफ्ट, हमने मुस्कुरा कर जवाब दिया था, यू आर आल्सो लैफ्ट । फिर सोचा कि इस भरेपूरे सभागार मे कौन था जो लैफ्ट नही था ?
● मगर देश और दुनिया उस हॉल के बाहर है । लिहाजा यह प्रश्न तनिक विवरण, कुछ तथ्य और ढेर सारे आत्मावलोकन की दरकार रखता है ।

#यहां_है_वाम #here_is_the_left
● नाशिक से ज़ख्मी और नँगे पैर पांव-पांव चलकर मुंबई पहुंचा 50 हजार औरत आदमियों का हुजूम, राजस्थान में लाखों की तादाद में घर से निकल कर सड़कों पर सपरिवार आकर बैठा किसान , 2 सितम्बर 2015 को 16 करोड़ और 2 सितम्बर 2016 को 18 करोड़ मजदूर-मज़दूरिनों को हड़ताल पर उतारने और नवम्बर 2017 में संसद पर पहले तीन दिन की वर्कर्स पार्लियामेंट और फिर 196 किसान संगठनों के इंद्रधनुष के साथ लाखों किसानों की दो दिनी किसान संसद लगाने वाला वाम ही तो था ।

● ये वाम ही तो है जो #अखिलभारतीय_किसानसभा की अगुआई में कल 9 अगस्त को देश भर के तकरीबन हर जिले और तहसीलों में प्रधानमंत्री के नाम 10 करोड़ हिंदुस्तानियों के हस्ताक्षर लेकर अपने मजदूर भाइयों के साथ मिलकर सत्याग्रह कर कोई 25 लाख से ज्यादा तादाद में गिरफ्तारियाँ देगा । 5 सितम्बर को #सीटू के साथ मिलकर 5 लाख की संख्या में राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री के घर जाकर बैठेगा ।
● शिक्षा और संविधान बचाने के लिए जेएनयू ही नही देश भर में बहादुरी से डटे, संघी गुंडई से मोर्चा लेते फख्र के लायक काबिल नौजवान, हरियाणा में निडरता से बर्बर खाप से जूझती युवतियां, हिमाचल में पहाड़ियों की ऊंचाई पर झंडे लहराते , बिहार, यूपी, उत्तराखंड में सामन्तों और उनकी दुष्ट सरकारों के खिलाफ अलख जगाते, झारखंड-छग-ओडिसा में आदिवासियों के बीच बिना खुद की चिंता किये लड़ते भिड़ते लोग, दिल्ली और एनसीआर में लाखों श्रमिकों की हड़ताल करते, दाभोलकर, पानसारे, कलबुर्गी, गौरी लंकेश के हश्र से डरे बिना अपनी कलम को खुद के खून की स्याही से भरते बेबाक तरीके से सच बोलते कवि, लेखक, पत्रकार मूलतः और अंततः वाम ही तो हैं ।
(हम रेलगाड़ी में सवार हैं इसलिए देश भर के हवाले, जो ढेर सारे हैं, नही दे रहे । सिर्फ हिंदी पट्टी और याददाश्त के आधार पर अपने आसपास की बात कर रहे हैं ।)

● ईवन मध्यप्रदेश में जहां कथित रूप से वाम पर्याप्त कुपोषित है, वहां जहां भी लड़ाई है वहां वाम है या बिना किसी अतिशयोक्ति के यूं कहें कि जहां वाम है वहीं लड़ाई है । आवासहीनों को आवास, भूमिहीनों को भूमि, आदिवासियों के वनाधिकार, औरतों के हक़ अधिकार, आंगनबाड़ी-आशा-उषा-बीड़ी-कोयला-बिजली-सीमेंट-खाद-दिहाड़ी-परमानेंट की जितनी भी लड़ाईयां हैं ; इसी कुपोषित वाम की लड़ाईयां हैं । जीती जागती तहरीक हैं ।
● अपनी "छटांक भर" की ताकत के बावजूद यह वाम ही है जो मध्यप्रदेश में यह सब करने के साथ ही अनपढ़ों को पढ़ाता, स्वास्थ्य-हाइजीन की चेतना जगाता, अंधविश्वास से लड़ता, बच्चियों को तालीम देता, गांव गांव पर्यावरण का महत्व बताता, अपने कवियों को गाता उन्हें याद करता घूम रहा है । बिना किसी के 'पे-रोल' में नाम लिखाये ।
● यह वाम नही तो कौन था जिसने गुजरी साल मंदसौर किसान नरसंहार के बाद, वहां अपनी नाममात्र की मौजूदगी की परवाह किये बिना, पीपल्यामण्डी से वह मशाल जलाई जो देश के किसानों की लड़ाई की धधकती ज्वाला में बदल गयी ।

● 2 अप्रैल को चम्बल की सड़कों पर हुए मनु के नग्न-फ्लैगमार्च के बाद, जब दलित वोटों की आढ़त खोले बैठे सारे नेता-दल-संगठन मन्त्री-सन्त्री-सांसद-विधायक लापता हो गए थे तब यह वाम ही तो था जिसने एक के बाद एक आंदोलन छेड़ कर शमशान जैसे सन्नाटे को तोड़ा । अभी पिछले सप्ताह ही जेल भरी-कल भी भरेगा ।
● पोलिटिकल लैफ्ट के साथ सोशल लैफ्ट (यह नाम इन प्यारे भाइयों-बहनों ने स्वयं अपने आपको दिया है : यूं असलियत में न वे एपोलिटिकल हैं न हम एन्टीसोशल ) को भी जोड़ लें तो तस्वीर और पूरी हो जाती है ; कौन है जो नर्मदा घाटी में खड़ा है, चुटका (मण्डला) में अड़ा है, मुलताई से बैतूल होते हुए छिंदवाड़ा में सजाओं-मुकदमों से घिरा है । अंततः वाम ही तो है !!
● फासीवाद की भारतीय नस्ल हिंदुत्व का सांड लाल रंग को देखकर यूँ ही नही भड़कता । उसे पता है कि उसके खिलाफ सबसे मुखर और तर्कसंगत आवाज वाम की है, कि उसे नाथने की ताकत इसी वाम की है । जो कभी चुप नही हुआ वह वाम ही तो है ।

● केरल में जो परफॉर्म कर रहा है, मौत का कुंआ बना दिये गए बंगाल और अधपगलों के राज में बदल दिए गए त्रिपुरा में जो जमीन से जुड़ कर नित नए दमन से उबर रहा है वह संगठित वाम है । किंतु अपने सच्चे अर्थ में वाम किसी पार्टी का चुनावचिन्ह भर नही है । समाज और मनुष्यता को आगे की ओर ले जाने के लिए अवाम को जो भी जोड़ता है और बुरी से बुरी स्थिति में मैदान नहीं छोड़ता है वही वाम है, और यह इन दिनों भी अपवाद नही है खूब आम है ।
● बेशक, संसदीय लोकतंत्र में जहां दिखना जरूरी है वहां दिखने का शऊर और सलीका उसे सीखना पड़ेगा । कॉर्पोरेट और उसके भांडों द्वारा जिस तरह चुनाव प्रणाली की वाट लगाई जारही है, उसकी काट उसे ढूंढनी होगी । लौह अयस्क को इस्पात बनाने की, भीड़ को पहले जलूस और फिर मुक्तिकामी जमात में बदलने की और इस तरह इफरात में बिखरे वाम मैटेरियल को राजनीतिक सांगठनिक औजार में बदलने की, ट्रांसफॉर्म करने की तमीज सीखनी होगी - रफ्तार बढ़ानी होगी ।

● वाम का एक विशेष गुण अपनी दर्शनीय और मापीय ताकत से कई गुना प्रभाव डालने का है । विज्ञान की भाषा में इसे उत्प्रेरक Catalyst की भूमिका कहते हैं । 7 अगस्त की शाम जब भोपाल के राज्यसंग्रहालय में #वाम_हाज़िर_हो की पुकार लगी थी, ठीक उसी वक्त :
(अ) वाम की अगुआई में सुबह से पूरे मध्यप्रदेश की बसों-ट्रकों-लारियों-ऑटोरिक्शाओं के पहिये थमे हुए थे । पूरे प्रदेश का आवागमन ठहरा हुआ था । नए परिवहन कानून के खिलाफ ड्राइवर, कंडक्टर, चालक, मालक सब सड़कों पर थे । सही समय पर कारगर हस्तक्षेप का परिणाम अपेक्षाओं से भी हजार गुना था ।
(ब) प्रश्न पूछने वाले प्रिय साथी सहित भोपाल के बौध्दिक जगत की क्रीम सभागार में थी । जिनके बारे में बी टी रणदिवे को उदृत करते प्रभात पटनायक ने ठीक ही कहा था : एकेडेमिया आज जिन पर चर्चा करता है वही कल सड़कों पर होने वाले विमर्श में बदलती है ।

● यस बंगाल में चुनावी धक्का लगा है, त्रिपुरा में नही जीत पाये हैं, दुनिया भर को समाजवाद का यथार्थ दर्शन कराने के बाद रूस में भी आघात लगा है । मगर बिहार के एक कामरेड की कही सुनाते हुए प्रभात पटनायक ठीक ही तो कहे थे कि : कल को अगर ताजमहल टूट गया तो लोग प्यार करना बंद थोड़े ही कर देंगे ।
● वाम अवाम के सपनो में है । ऐसा सपना जिसने लाखों करोड़ों की नींद उड़ाई हुई है । ऐसा सपना जिसे साकार करने के इंतजार में हजारों लाखों लोग जुटे हुए हैं । इस वक़्त जब प्रदेश के एक कोने के आदिवासियों तक पहुंचाने वाली एक ट्रेन में बैठे हम यह सब लिख रहे हैं तब हमारे सारे राज्यस्तरीय कलीग - जी हां सारे - किसी ट्रेन या बस में हैं, जिलों के साथी किसी गांव या बस्ती में हैं : कल 9 अगस्त को अपने अपने जत्थो के साथ सत्याग्रह की अगुआई करने और उसकी तैयारी करने । अंग्रेजो भारत छोड़ो की 76 वी सालगिरह पर कॉर्पोरेट कम्पनियों भारत छोड़ो - उनके चाकर मोदी भारत छोड़ो की हुंकार गुंजाने ।
#वाम_यहां_है आइये, कुछ कदम इनके साथ चलते हैं ।