भोपाल। ‘3 मार्च को त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के नतीजे आए और 4 मार्च की सुबह अगरतला के सारे टॅक्सी स्टैंड्स, बस अड्डों से चलने वाली जीपों-बसों से कह दिया गया कि अगर वे-देशेर कथा-अखबार को जिलों, तहसीलों तक लेकर जाएँगे तो कल से उनके वाहन नहीं चलने दिये जायेंगे ।’
‘अगरतला शहर और आसपास के कस्बों-शहरों मे जहां जैसे तैसे अखबार को पहुंचाया गया, वहाँ अखबार लगाने वाले हाकर्स को धमकी दी गई। अनेक हाकर्स पर हमले किए गए। उनके दफ्तर कब्जा कर लिए गए।’
‘सारे सरकारी विज्ञापन रोक दिये गए । निजी विज्ञापंदाताओं पर भी प्रशासनिक और मनोवैज्ञानिक दबाब बनाया गया - उन विज्ञापनो को भी रुकवा दिया गया।’
‘इसके बाद भी जब जनता के सहयोग से देशेरकथा चलता रहा तो 1 अक्टूबर 2018 को रात 11.45 बजे कलेक्टर ने पुलिस भेजकर उसका प्रकाशन रोक दिया और आर एन आई का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का हुकुम जारी कर दिया। आठ दिन तक अखबार बंद रहने के बाद नौवे दिन त्रिपुरा हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप कर स्थगनादेश दिया और तब जाकर अखबार का प्रकाशन शुरू हुआ।’
त्रिपुरा मे भाजपा राज के दौरान प्रेस की आजादी की असलियत बताते हुये अगरतला से प्रकाशित, सर्कुलेशन के मामले मे त्रिपुरा के दूसरे नंबर के समाचार पत्र देशेर कथा के युवा पत्रकार राहुल सिन्हा ने यह ब्यौरा दिया। उन्होने कहा कि आजाद भारत के इतिहास में प्रेस की स्वतन्त्रता पर इतने बर्बर हमले इससे पहले कभी नहीं हुए। इतनी हिम्मत तो अंग्रेजों ने भी कम ही मामलों मे दिखाई थी।
राहुल ने बताया कि इस तानाशाही की शिकायत प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से की गई तो उसने स्पष्ट आदेश दिया कि ‘देशेरकथा’ के प्रकाशन और वितरण में किसी भी तरह की दिक्कत न आए यह सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए। ‘इस आदेश पर भी आज तक अमल नहीं हुआ । हमला सिर्फ अखबार भर पर नहीं हुआ, दो छोटे केबल नेटवक्र्स थे उन्हे भी सारी केबल्स से हटवा दिया गया । राहुल सिन्हा भोपाल मे लोकजतन की ओर से आयोजित संवाद -डेटलाईन त्रिपुरा-में भोपाल के गणमान्य बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों, एक्टिविस्ट्स और पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र जब सिकुड़ता है तो सिर्फ वाम भर के लिए नहीं सिकुड़ता, हमला जब शुरू होता है तो सिर्फ हम तक ही नहीं रहता, पूरा समाज उसका शिकार बनता है। यही आज उस त्रिपुरा मे हो रहा है जिसने पिछले पचास वर्षों मे राष्ट्रीय एकता, कौमी भाईचारे, समन्वित और सामुदायिक विकास, शांति और सौहाद्र्र, और मनुष्यता के उन्नयन की मिसालें कायम की हैं। साक्षरता, शिक्षा, स्वास्थ्य, मानव विकास सूचकांक और कृषि के विकास में प्रगति के उदाहरणयोग्य कीर्तिमान स्थापित किए हैं । भाजपा राज मे उसी त्रिपुरा की आदिवासी और गैर-आदिवासी जनता की एकता को बिखेरने, सारी उपलब्धियों तथा प्रगति को पीछे धकेलने की कोशिशें की जा रही हैं। चुनावों मे दिये गए सातवें वेतन आयोग को लागू करने, हर घर मे एक सरकारी नौकरी देने, कल्याण कारी योजनाओं की राशि बढ़ाकर 2000 करने के झांसे तो न पूरे होने थे न हुए इसके उलट कर्मचारियों से उनकी पेंशन का अधिकार छीन लिया गया, 50 वर्ष की उम्र मे फिटनेस के बहाने नौकरी पर तलवार लटका दी गई, जो कल्याण कारी मदद मिलती थी वह भी मिलना मुहाल हो गई।
राहुल ने बताया कि रोजगार मिलना तो दूर रहा ग्रामीण और शहरी दोनों तरह की मनरेगा योजनाओं मे जो त्रिपुरा रेकॉर्ड 90-95 दिन का काम देता था वह काम घटकर 30-32 दिन से भी कम रह गया। जो त्रिपुरा खाद्यान्न उत्पादन मे आत्मनिर्भर होने की ओर था वहाँ कृषि संकट मे हैं, बैंकेठप्प हैं, सूदखोर महाजन लौट रहे हैं। जिस भुखमरी को हराया जा चुका था वह वापस आ रही है। बाजार मंदा पड़ा हुआ है।
त्रिपुरा मे लोकतन्त्र के दुर्दशा इसी से समझी जा सकती है कि रैली और सभाओं की अनुमति मे अड़ंगे डाले जा रहे हैं । चुनाव को मखौल बनाकर रख दिया गया है। पंचायत चुनावों मे 86 प्रतिशत और नगरपालिका चुनावों मे मे 96 प्रतिशत सीटों पर बिना मतदान के ही चुनाव हो गए। भाजपा के सिवा किसी भी पार्टी के प्रत्याशी ही नहीं खड़े होने दिये गए।
एक पत्रकार के नाते अपने तजुर्बे साझे करते हुये राहुल सिन्हा ने बताया कि खौफ फैलाये जाने के बावजूद डेढ़ साल मे ही जनता मे सरकार के खिलाफ आक्रोश दिखाई देने लगा है। उन्होंने यह भी कहा कि जो त्रिपुरा में हो रहा है वह यदि प्रतिरोध और प्रतिकार कर रोका और उलटा नहीं गया तो उसे बाकी जगह भी दोहराया जाएगा। इसलिए यह सिर्फ त्रिपुरा का प्रश्न नहीं होना चाहिए । देश भर की चिंता और प्रतिवाद का विषय बनना चाहिए।
पूर्व कुलपति उदय जैन की अध्यक्षता में हुए इस संवाद की शुरुआत लोकजतन के संपादक बादल सरोज ने अपने आरंभिक परिचयात्मक वक्तव्य से की। समापन लोकजतन के पूर्व संपादक जसविंदर सिंह ने किया। अनेक भागीदारों ने कई मसलों पर अपनी जिज्ञासाएँ भी रखीं जिनका समाधान राहुल सिन्हा ने किया।
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