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हरियाणा विधानसभा चुनाव : जनता का घोषणापत्र

जनता का घोषणापत्र  मूलत: विभिन्न सामाजिक संगठनों (किसानों के, मजदूरों के, दलितों के, महिलाओं के, माईनोरटिज के, सरकारी गैर सरकारी कर्मचारियों आदि के संगठन) के अग्रणी कार्यकर्ताओं व व्यक्तिगत तौर पर जागरूक नागरिकों ने बनाया है.।

 जनता का घोषणापत्र  मूलत: विभिन्न सामाजिक संगठनों (किसानों के, मजदूरों के, दलितों के, महिलाओं के, माईनोरटिज के, सरकारी गैर सरकारी कर्मचारियों आदि के संगठन) के अग्रणी कार्यकर्ताओं व व्यक्तिगत तौर पर जागरूक नागरिकों ने बनाया है.। क्यों बनाया? पब्लिक सरोकार के मूद्दों को पब्लिक की और राजनीतिक पार्टियों की रोजमर्रा की सोच का हिस्सा बनाना है ।  अभी क्यों: दस्तावेज बनाने वाले संगठनों व प्रबुद्ध नागरिकों ने यह महसूस किया है कि पीछले कई सालों से जाति पहचान, साम्प्रदायिक घृणा व फर्जी राष्ट्रवाद जैसे अति भावनात्मक व समाज को छिन्न भिन्न करने वाले मूदों को भूनाने की राजनीति हो रही है, और उसकी आड़ में आम जनता के जीवन को सहज बनाने वाली सभी सार्वजनिक सेवाओं का सफाया किया जा रहा है। आज यह कोई पूछने वाला नही कि 2014 में सबके विकास व बम्पर रोजगारों के वायदों का क्या हुआ ।

नागरिक मोर्चा का मानना है कि यदि सरकार गत वर्षों में पूंजीपतियों को लाखों करोड़ के टैक्स रियायत देने की बजाय लोकहित की बुनियादी सेवाओं में लाभदायक रोजगारों को निरन्तर बढ़ाती  तो देश के करोड़ों युवाओं की निश्चित आमदनी व क्रय शक्ति होती और मंदी नही आती। मंदी के बाद भी सरकार ने युवाओं के लिये रेगूलर रोजगार सृजित करने की बजाय लाखों करोड़ के टैक्स रियायतें (और वो भी बिना पार्लियामेंट की मंजूरी के) देनें का फैसला करके मंदी को और पुख्ता करने का काम किया है।
जनता का घोषणापत्र  के प्रमुख सवाल 

जीडीपी बढ़ रही है तो फिर सार्वजनिक सेवाएँ क्यों लुप्त हो रही हैं? जब पब्लिक के लिये मौलिक सेवाओं में लगातार कटौती हो रही हों तो विकास का मतलब? 
सार्वजनिक सेवाओं के ईलावा मैनिफैस्टो कृषि शंकट व औद्योगिक क्षेत्र में किसानों व मजदूरों के भंयकर शोषण, सामाजिक न्याय की अनदेखी का सम्बंध निजिकरण व भूमण्डलीकरण से जोडक़र देखता है।
अब हम सिलसिले वार कुछ अहम मुद्दों की ओर ईशारा करेंगे ।

1 . सार्वजनिक शिक्षा (खासकर स्कूली शिक्षा)
शिक्षा इंसान के लिये समाज में व आर्थिक जगत में जगह बनाने की सबसे महत्त्वपूर्ण सीढ़ी है, अर्मतय सेन की भाषा में सबसे बड़ी ईनेब्लिंग ताकत है। आज के दिन ज्यादातर क्षेत्रों में इंसान की हैसियत व बेहतर कमाई उसकी पढ़ाई लिखाई पर निर्भर है। 
दादालाई गरीबी व जातीय जिल्लत से छुटकारा पाने के लिये शिक्षा जैसी असरदार शायद और कोई विधा नही है।
हरियाणा में 1970 दशक के अंत तक  व 1980 के दशक के प्रारंभिक सालों तक स्कूली शिक्षा का ढाँचा राज्यभर में लगभग पूरा हो चुका था। यदि आने वाले दशकों मे स्कूली शिक्षा वैसे ही सरकारी कर्तव्यों में के केन्द्र में रहती तो आज हमारे स्कूल विश्व सत्तर के होते।
प्रदेश में स्कूली सिस्टम कामन स्कूलों (यूनीवर्सल स्कूल सिस्टम) की तर्ज पर ही शुरू हुआ, सरकार की चेष्टा थी कि सभी स्कूलों में एक समान सुविधाएँ हों, लेकिन पिछले 25-30 साल में एक तरफ सरकारी स्कूलों की देखरेख व विकास  को जानबूझ कर नजरअंदाज किया गया और बिना टरेंण्ड अध्यापकों व संसाधनों वाले निजी स्कूलों को आनन फानन में मंजूरी दी गई। और अब आखिर में सरकारी स्कूलों को संभालने की बजाय बन्द किया जाने लगा है।
समाधान
नागरिक  मोर्चा समस्या पर का गहन विचार के बाद इस निष्कर्ष पर पहूँचा है कि हरियाणा की पिछले 50 सालों की प्रगति व आज की आर्थिक स्थिति (जब राज्य की एसजीडीपी 700,000 करोड़ तक पहुँच चुकी है व यहाँ की प्रतिव्यक्ति आय 20500 रुपये  सालाना है) के हिसाब से प्रदेश के सब बच्चों के लिये सरकारी खर्च से चलने वाले एक जैसे उच्चतम स्तर के स्कूल उपलब्ध कराये जा सकते हैं। समान स्कूल का अनुभव बच्चों को जाति उँच-नीच, लिंगभेद व साम्प्रदायिक भेदों के संकुचित दायरे से बाहर निकालकर उनको सच्ची देशभक्ति से ओतप्रोत भी करेगा। प्रदेश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी ज्यादातर सार्वजनिक व पब्लिक बजट से चलने वाली शिक्षा व्यवस्था होना लाज्मी है। सरकारी क्षेत्र के कालेजों व विश्वविद्यालयों में पर्याप्त नियमित प्राध्यापकों की भर्ती करके सभी सब-सटैन्डर्ड निजी संस्थानों बन्द किया जाना चाहिये। सरकार की मदद से चलने वाले व शिक्षण संगठनों द्वारा संचालित कालेजों की मदद बंद करने की सरकारी सोच का पब्लिक मोर्चा पूरजोर विरोध करता है।

 2. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ 
आदमी के जीवन में सेहत की देखरेख व चिकित्सा को सविंधान के जीने के अधिकार को साक्षात करने की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था के बिना जीवन अनिश्चित और हकीकत है कि 80-90 प्रतिशत जनता को इसका लाभ नही मिल रहा। स्वतंत्रता के बाद स्वास्थ्य सेवाओं की अच्छी शुरूआत होने के बावजुद आज यह अति महत्व का विभाग राज्य के सबसे ज्यादा पिछड़े विभागों में शामिल हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी देखा जाये तो हरियाणा, राज्यों में 12वें स्थान पर है, जबकि प्रतिव्यक्ति आय में हरियाणा अव्वल स्थान पर है। राज्य का रोहतक में स्थित परिमियर मैडिकल कालेज अस्पताल भी डाक्टरों (एक तिहाई तो अधिकारिक स्थान ही खाली पड़े हैं) व साजोसामान की भारी कमी की दृष्टि से खुद बीमार है। जिला, तहसील या ब्लाक स्तर के अस्पताल तो बिना पर्याप्त डाक्टरों, नर्सों, दवाईयों व जांच व्यवस्थाओं के मरणासन्न पर हैं। पूरे हरियाणा के स्तर पर मात्र 2100 डाक्टर हैं और कुल 21000 के आसपास स्टाफ हैं । डब्ल्यूएसओ के मानकों के हिसाब से तो 2.8 करोड़ की आबादी के लिये 28000 डाक्टर चाहियें। रोज सैंकड़ो हरियाणावासी समुचित ईलाज की व्यवस्था के अभाव में इलाजी बीमारियों से मर रहे हैं। हरियाणा का कोई मंत्री या बड़ा अधिकारी सरकारी अस्पतालों में इलाज नहीं करवाता बल्कि गुडग़ांव के 7 सितारा निजी अस्पतालों में पब्लिक टैक्स को खर्च पर अपना इलाज करवाते हैं।  
 समाधान
यूनिवर्शल हैल्थ केयर व्यवस्था ही इसका एकमात्र जवाब है,  जहाँ सभी गरीब अमीर नागरिकों को सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवा जेब से कुछ दिये बिना मिले। यह सेवा बर्तानिया की नेशनल हैल्थ सर्विस व दुसरे यूरोप के देशों, यहाँ तक कि क्युबा जैसे देशों की तरज पर स्थापित की जा सकती है। ऐसी यूनीवर्शल स्वास्थ्य सेवा को सृजित करने के लिये राज्य सरकार को एसजीडीपी का 5-6 प्रतिशत खर्च करना पड़ेगा और यह खर्च अति आवश्यक व लाभदायक है । कुल खर्च का एक छोटा हिस्सा नागरिकों से भी उनकी आय के हिसाब से एक मुस्त सालाना या माह वार स्वास्थ्य सेवा शुल्क के रूप में लिया जा सकता है। उपरोक्त यूनीवर्शल स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिये 4-5 लाख युवाओं को नियमित व लाभप्रद रोजगार भी मिलेंगे। 

3.दूसरी अन्य सार्वजनिक सेवाएँ 
शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के अलावा कुछ और महत्वपूर्ण सेवाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में रखकर आम आदमी को बेहतर सेवाएँ व इन सेवाओं में काम करने वाले कर्मचारियों को रेगुलर रोजगार दिये जा सकते हैं, यानि भिन्न-भिन्न स्थिति का निर्माण किया जा सकता है, हम यहाँ पर एक एक सर्विस पर संक्षिप्त टिप्पणी करेंगे। सार्वजनिक परिवहन; एक समय हरियाणा रोड़वेज राज्य का गर्व था लेकिन आज गर्त में है। सरकार की निजीकरण की हठधर्मिता ऐसी कि उसने परिवहन कर्मचारियों की अपनी तंखा से बस खरिदने की पेशकस भी ठुकरा दी। नतीजा राज्य में सार्वजनिक परिवहन अपने आखिरी सांसें गिन रहा है। पब्लिक मोर्चा यह मानता है कि सरकार एक बेहतरीन परिवहन व्यवस्था को बिना किसी सब्सिडी के चला सकती और एक लाख नौजवानों को रगुलर रोजगार दे सकती है।

पीने के पानी व सीवरेज-ड्रेनेज 
पब्लिक मोर्चे का मानना है कि आज पानी के संरक्षण, रि-साईकलिंग व वितरण की बहुआयामी चुनौतियों को सिर्फ एक सधा हुआ सार्वजनिक क्षेत्र ही वहन कर सकता है। 
यह पब्लिक हित के क्षेत्र हजारों युवाओं को रेगूलर व लाभकारी रोजगार भी देंगे।

 सस्टेनेबल शहरी व्यवस्था 
लगभग हमारे सभी शहर बिना विस्तृत योजना के बेतरतीब ढग़ से फैले हुए हैं। और सरकारी संरक्षण में चलने वाले तरह तरह के अतिक्रमण व प्रदूषण के ग्रस्त हैं।
शहरों के सुचारू विस्तार व मैनेजमेंट के लिये पब्लिक को हितधारक बनाने की जरूरत है। म्युनिसिपल कार्पोरेशन को सही माईने में लोकल गवर्नमेंट का संविधानिक दर्जा देकर ही ऐसा किया जा सकता है।

 जंगल व पर्यावरण 
जंगल संरक्षण व विकास तथा पर्यावरण आज जीने मरने के सवालों में भी सबसे अहम सवाल है। हरियाणा में मात्र तीन प्रतिशत जंगल के साथ भारत का सबसे कम जंगल वाला राज्य है। और वह तीन प्रतिशत भी कतैई सुरक्षित नहीं। जंगल विभाग के पास जंगल के संरक्षण व विस्तार के लिये ना मैन्डेट है और ना ही साजो सामान।अभी हाल में हरियाणा सरकार की 1900 में बने पीएलपीए कानून को निरस्त करने की बात समझ से बाहर की बात है । क्योंकि यह कार्यवाही हरियाणा के मुख्य अरावली जंगल को खात्मे की ओर ले जायेगा।  नागरिक मोर्चा राज्य के बचे हुए जंगलों की देखरेख व उनके विस्तार के लिये पर्याप्त धन आबंटन करने व जंगल विभाग को सभी वांछित अधिकार देकर नतीजों के लिये उत्तर दायित्व बनाने की मांग करता है।

4. कानुन व्यवस्था
कानुन व्यवस्था में सबसे बढ़ा व्यवधान पुलिस पर सरकार का रोज रोज का दखल है। विभिन्न पुलिस कमिशनरों ने जिला स्तर पर पुलिस शिकायतों के माध्यम से कुछ पब्लिक कंट्रोस स्थापित करने की सिफारिशें बहुत समय से फाइलों में दबी पड़ी हैं। दूसरी बड़ी समस्या यह है कि पुलिस फोर्स में कमजोर वर्गोंजैसे अल्पसंख्यक, दलित व महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। पब्लिक मोर्चा इन दोनों कमियों को दूर कर एक प्रोफेशनल पुलिस फोर्स तैयार करने की जोरदार वकालत करता है। पब्लिक मोर्चा मानता है कि पुलिस बल की संख्या बढ़ाना भी जरुरी है ताकि वीआईपी सुरक्षा व जनता की सुरक्षा के लिये अलग अलग दस्ते चिंहित किये जा सकें। और पुलिस बल के हर पदाधिकारी को अनिवार्य साप्ताहिक अवकाश देने की व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके।

5. कृषि क्षेत्र व पशुपालन
कृषि संकट के कुछ कारण तो बहुत ही स्पष्ट हैं, जैसे -बहुत बड़ी आबादी की कृषि पर निर्भरता उत्पादन की बढ़ती कीमतों व कृषि उत्पादों की गिरते भाव। कृषि सैक्टर की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर निर्भरता।

समाधान
ज्यादा से ज्यादा आबादी को औद्योगिक व सर्विसिज सैक्टरों में वैकल्पित रोजगार मिले, इसके लिये सामाजिक सेवाओं वाले ऊपर लिखित सैक्टरों के विकास की अहम भूमिका होगी। कृषि से संबंधित शोध संस्थानों को पुन: स्थापित करके बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एक छत्र वर्चस्व को खत्म किया जाये। सिंचाई की नई तकनीकों के विकास में सरकार की अहम भुमिका। कृषि उत्पादों की लाभदायक कीमतें सुनिश्चित करने के लिये मार्केटिंग की जिम्मेदारी सरकार को ही लेनी होगी। दुग्ध व पशुओं के अन्य उत्पादों की मार्केटिंग भी सरकार करे। पशुपालन (जो विक्रय मूल्य के हिसाब से कृषि उत्पादों के मूल्य के लगभग बराबर है) को लाभ का पेशा बनाने के लिये, पशुचिकित्सा की पुख्ता व्यवस्था व, प्रसंस्करण /संवेष्टन / विपणन में सरकार को अहम रोल अदा करना ही होगा।

6 उद्योगिक क्षेत्र 
हरियाणा औद्योगिक दृष्टि से देश में एक अहम स्थान रखता है। मशलन देश के 50त्न से भी ज्यादा रो? वाहन हरियाणा में बनते हैं। यहाँ के उद्योगों में करिब 10 लाख मजदूर काम करते हैं। लेकिन अधिकतर मजदूर ठेकेदारों के माध्यम से कार्यरत हैं। ठेकेदारी सिस्टम के चलते इन मजदूरों की मासिक वेतन भी कम है और इनको किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा भी उपलब्ध नहीं है। मजदूरों के आवास की कोई व्यवस्था ना मालिकों की तरफ और नहीं सरकार की तरफ से है। नतीजतन प्राय: सभी मजदूर किराये पर देने के लिये बनाए गये बिना किसी वैन्टीलेशन वाली बहुमंजिला स्लम्स में रहने को मजबूर हैं। 

समाधान
ठेकेदारी प्रथा का अन्त करके उद्योगों में सीधी भर्ती हो और लेबर लॉ के सभी प्रावधानों को पूरी ईमानदारी से लागू करवाया जाय। मजदूरों को वाजिब किराये पर देने के लिये सरकार होस्टलों व मकानों का निर्माण करवाये।

7. रोजगार 
दुनियाभर में सबसे ज्यादा रोजगार सार्वजनिक सामाजिक क्षेत्र में ही होते हैं । ऊपर लिखित सेवाएँ जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी सप्लाई, सिवरेज सर्विसिज, पुलिस, व दूसरी तमाम सार्वजनिक सेवाओं में कुल कर्मशील आबादी के 20 प्रतिशत को ही रोजगार मिल सकता है, जिससे सम्पूर्ण सामाजिक सेवाओं व रोजगारों का परस्पर लाभकारी सामंजस्य बनता है। इस तरह राज्य के सार्वजनिक सेवाओं के सैक्टरों में 20 लाख तक की संख्या में लाभदायक रोजगारों का अवसर है। और फिर कृषि-पशुपालन क्षेत्रों की प्रोसेसिंग में तथा उद्योगों में ठेकेदारी प्रथा हटाकर लाखों रोजगारों की गुणवता बढ़ाई जा सकती है। कुल मिलाकर आज की तीव्र गति से बढ़ते आर्थिक विकास (5-6 प्रतिशत भी अच्छी विकासदर होती है यदि यह भागीदारीपूर्ण  हो) के चलते, सभी युवकों को रोजगार मिल सकता है।

8. सामाजिक न्याय
सामाजिक न्याय स्थापित करने के राजनीतिक व आर्थिक ओजारों में शिक्षा और खासकर खेल के स्तर प्रदान करने वाली आम स्कूली व्यवस्था सबसे कारगर सिद्ध हो सकती है।
यूनीवर्शल स्वास्थ्य व्यवस्था, दूसरी महत्वपूर्ण कड़ी है। जन मोर्चा यह मांग करता है कि निजीकरण की प्रक्रिया को ना सिर्फ रोका जाये बल्कि सभी सार्वजनिक सेवाओं में हो चुके निजीकरण को निरस्त किया जाये ताकि रोजगार और सेवाएँ सभी नागरिकों को एक समान उपलब्ध करवाई जा सकें।

9. प्रशासनिक व राजनितिक सुधार 
सबसे पहले सभी सविंधानिक संस्थाओं जैसे चुनाव आयोग, सीएजी, पब्लिक सर्विस कमीशन, सीवीसी, सीबीआई, ईडी व सूचना कमीशन के सदस्यों व मुखियाओं की नियुक्ति, सेवा शर्तें व उनके निष्कासन की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों पर लागू होने वाली प्रक्रिया के समान हो। इन सबके बीच चैक्स और बलैंस की व्यवस्था हो। चुनाव में निजी धन पर एक दम रोक लगाई जाये, और इसको भ्रटाचार की श्रेणी में रखा जाये, क्योंकि यह सभी भ्रटाचारों की जननी है। चुनाव की फंडिंग पूरी तरह सरकारी बजट से होनी चाहिये। राज्य में किसी भी पद पर नियुक्ति सिर्फ स्वायत संस्था जैसे पब्लिक सर्विस कमीशन के माध्यम से, समतामूलक लिखित दिशानिर्देशों के अन्तर्गत हो। इसमें कोई राजनैतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिये।


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उपेन्द्र यादव

Journalist at Lokjatan...

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