रायपुर। लॉक डाउन के पहले सप्ताह में ही प्रदेश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। महंगाई और कालाबाजारी आसमान छू रही है। ऐसे में यह आशा की जा रही थी कि वे रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं के वितरण को कानून के दायरे में लाकर आम जनता को सहजता से उपलब्ध कराने तथा उनके अधिकतम खुदरा मूल्य तय करने की घोषणा करेंगे। लेकिन सरकार ने कालाबाजारी में लगे व्यापारियों से अनुनय-विनय करके अपनी लाचारगी का इजहार कर दिया। इसी प्रकार लॉकआउट के चलते सबसे गरीब तबकों को आजीविका का जो नुकसान हो रहा है उसकी भरपाई के लिए भी उसका सामना करने के लिए भी छग सरकार कोई योजना लेकर नहीं आयी।
बजाय राहत देने के पूरे प्रदेश में आम जनता पर पुलिसिया हमले जरूर हुए हैं। लेकिन मुख्यमंत्री ने इन शर्मनाक घटनाओं पर भी न केवल चुप्पी साध ली है, बल्कि पुलिस की पीठ थपथपाने का ही काम किया है। इससे यह आशंका मजबूत हुयी है कि कोरोना से निपटने के लिए छग की सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था सक्षम नहीं है और जैसे-जैसे इसका हमला बढ़ेगा, सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं नाकाफी हो जाएंगी। ऐसे में इस संकट से निपटने के लिए छग की सरकार ने निजी अस्पतालों के अधिग्रहण का सही फैसला लिया था मगर बाद बिना कोई वजह बताये इस घोषणा को वापस ले लिया गया।
छग की माकपा ने मांग की है कि छत्तीसगढ़ सरकार केरल की तर्ज पर एक सर्व समावेशी आर्थिक पैकेज की घोषणा करें, जो ग्रामीण गरीबों, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, छोटे स्वरोजगार के जरिये रोज कमाने-खाने वाले और सामाजिक व आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों की आजीविका को हो रही क्षति की भरपाई पर केंद्रित हो। इस पैकेज में रैन बसेरों में में सभी जरूरतमंदों के लिए मुफ्त भोजन , सामाजिक कल्याण से जुड़े हर पेंशन धारी को दो माह कीअतिरिक्त अग्रिम पेंशन देने, लॉक डाउन के दौरान प्राइवेट संस्थानों के किसी भी मजदूर की मजदूरी नहीं काटे जाने की घोषणा करने तथा पगार कटने की स्थिति में सरकार द्वारा उसकी भरपाई करने की मांग की है।
पार्टी कोरोना के संदिग्ध लोगों के मुफ्त इलाज और निजी अस्पतालों को भी मुफ्त इलाज के निर्देश देने तथा रोज कमाने-खाने वाले लोगों व मनरेगा मजदूरों के लिए अग्रिम रूप से 10000 रुपयों की एकमुश्त सहायता तथा रबी मौसम की फसल को सोसाइटियों के जरिए समर्थन मूल्य पर खरीदने के पुख्ता प्रबंध किये जाने के एलान की भी मांग की है।
© 2017 - ictsoft.in
Leave a Comment