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मानव जीवन की बेहतरी की पहली शर्त है समाजवादी व्यवस्था

भोपाल। मध्यप्रदेश में सक्रिय वामपंथी दलों ने माक्र्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी राज्य कार्यालय बीटीआर भवन में सोवियत क्रांति की सौवीं वर्षगांठ आयोजित की जिसको शैलेन्द्र कुमार शैली, रूप सिंह चौहान, राजेन्द्र शर्मा, सन्ध्या शैली, प्रमोद प्रधान, राजेश जोशी, बादल सरोज ने सम्बोधित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता...

भोपाल। मध्यप्रदेश में सक्रिय वामपंथी दलों ने माक्र्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी राज्य कार्यालय बीटीआर भवन में सोवियत क्रांति की सौवीं वर्षगांठ आयोजित की जिसको शैलेन्द्र कुमार शैली, रूप सिंह चौहान, राजेन्द्र शर्मा, सन्ध्या शैली, प्रमोद प्रधान, राजेश जोशी, बादल सरोज ने सम्बोधित किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता रामप्रकाश त्रिपाठी और एम एल सातपुते के अध्यक्ष मंडल ने की। माकपा जिला सचिव पी व्ही रामचन्द्रन मंच पर उपस्थित थे।

नीना शर्मा और पूषण भट्टाचार्य के जनगीत से प्रारम्भ कार्यक्रम में वक्ताओं ने इस क्रांति को दुनिया की चार प्रमुख घटनाएं बतलाते हुए कहा कि जब प्राणी ने चार की जगह दो पैरों पर चलना प्रारम्भ किया थी तब से ही उसने विशिष्टता प्राप्त कर ली थी जिससे उसके दो पैर काम करने वाले हाथों में बदल गये। बाद में उसने जमीन में नीचे बीज बोकर उसका फल जमीन के ऊपर प्राप्त किया। 1917 में जब सोवियत संघ में जार के शासन को समाप्त कर मजदूर किसानों का शासन स्थापित किया तब तक दुनिया में ऐसा सम्भव हो पाने पर किसी को भरोसा नहीं था। इस परिवर्तन ने पूरी दुनिया में चल रहे साम्राज्यवाद विरोधी आन्दोलनों को ताकत दी और इसी के प्रभाव में हमारे देश में भी आन्दोलन तेज हुआ व अंतत: हमें आजादी मिली। हमारे स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महत्वपूर्ण सेनानी भगत सिंह ने मुक्त कंठ से सोवियत क्रांति के प्रभाव को स्वीकार किया व अपने विभिन्न लेखों में उसकी चर्चा की थी। हमारे हिन्दी-उर्दू के सबसे बड़े कथाकार प्रेमचन्द ने हंस, सरस्वती, और जागरण आदि के सम्पादकीय लेखों में सीधे सीधे सोवियत क्रांति के प्रभाव की अभिव्यक्ति की है दूसरी ओर उनकी रचनाओं में मजदूर और किसानों के शासन को ही मनुष्यता के शोषण का हल माना है।  दूसरी ओर रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे अंतर्राष्ट्रीय कवि ने सोवियत क्रांति की उपलब्धियों पर अपनी खुशी अपने कई पत्रों में व्यक्त की थी। जाति प्रथा की समाप्ति की ओर बढ़े कदम हों या साम्प्रदायिकता से टकराव का मामला हो सब में मनुष्य की बराबरी के दर्शन को साकार कर दिखाने से ही बल मिला है।

जार के शासन के एक देश में जहाँ वेश्यावृत्ति आम बात थी वहीं क्रांति के बाद की व्यवस्था ने मानवीय गरिमा के सबसे ऊंचे मानदण्ड स्थापित किये। स्वास्थ और शिक्षा की गारण्टी देने वाली व्यवस्था में बच्चों को विशिष्ट नागरिक का दर्जा प्राप्त था और उनकी स्कूल बसों को निकलने के लिए सारा ट्रैफिक रोक दिया जाता था। जान रीड ने अपनी पुस्तक 'जब दस दिन में दुनिया हिल उठी' में बताया है कि हीरों जवाहरातों से भरे महलों में जब मजदूर किसान घुस गये तब भी वहाँ से महल की एक वस्तु भी गायब नहीं हुयी। यह इसलिए सम्भव हुआ क्योंकि क्रांति केवल सत्ता परिवर्तन का नाम नहीं है अपितु वह एक नये मनुष्य का निर्माण करती है।

सन्ध्या शैली, राजेश जोशी, बादल सरोज ने अपनी सोवियत यात्रा के संस्मरण सुनाये तो अस्वस्थता के कारण उपस्थित न हो पाने वाले लज्जा शंकर हरदेनिया ने अपना सन्देश भेजा। अध्यक्ष राम प्रकाश त्रिपाठी ने गोष्ठी को ज्ञान और सूचनाओं से सम्पन्न बताते हुए कहा कि इस आयोजन से बहुत सी नई जानकारियं मिली हैं।  ग्वालियर के बिलौआ व लश्कर में अक्टूबर क्रांति के शताब्दी वर्ष पर कार्यक्रम आयोजित किए गए। यहां जिला सचिव अखिलेश यादव, गनी खान, जितेन्द्र आर्य ने लोगों को संबोधित किया।

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