भोपाल. देश और प्रदेश के विभिन्न जन संगठनों, सांस्कृतिक और विज्ञान आंदोलनों से जुड़े साहित्यकार, कलाकार, रंगकर्मी, वैज्ञानिक एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा लोकतांत्रिक मूल्यों, वैज्ञानिक सोच और असहमति के अधिकार के पक्ष में तीन दिवसीय भोपाल उत्सव का आज रविन्द्र भवन, भोपाल में उद्घाटन किया गया। इस मौके पर देश के वरिष्ठ बुद्धिजीवियों ने एक सुर में कहा कि देश की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियां लोकतांत्रितक मूल्यों के खिलाफ हैं। असहमति के अधिकार को छिना जा रहा है एवं बहुलतावाद को कुचला जा रहा है ऐसे में प्रतिरोध के स्वर को तीखा करने की जरूरत है। भारत, भारतीयता और संवैधानिक मूल्यों के लिए लोगों को एकजुट करने की जरूरत है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रबीर पुरकायस्थ ने कहा कि दक्षिणपंथी ताकतों के खिलाफ लगातार प्रतिरोध किया जा रहा है। अति पूंजीवाद के खिलाफ जनता की आवाज को बुलंद करना है। वरिष्ठ दलित चिंतक रावसाहेब कस्बे ने कहा कि गांधी के राष्ट्रवाद में भारत की विविधता की झलक है, लेकिन आज जिस राष्ट्रवाद की बात की जा रही है, उसमें बहुलता को कुचला जा रहा है। हमें आज युवाओं के सपनों के भारत बनाने की दिशा में आगे बढ़ना है। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता सत्यजीत रथ ने कहा कि हमें विज्ञान के नजरिए से इतिहास को देखने की जरूरत है। पूरी दुनिया का इतिहास संघर्षों का रहा है, ऐसे में हमें श्रेष्ठताबोध से बाहर आकर मानवीयता की दृष्टि से वर्तमान को देखना है।
वरिष्ठ नृत्यांगना मल्लिका साराभाई ने कहा कि देश में आज शुद्धता (प्यूरिटी) की बात की जा रही है। उन्होंने सवाल किया कि देश में कौन और क्या शुद्ध है? भारतीय खान-पान, वस्त्र और तौर-तरीके सभी दुनिया के अलग-अलग संस्कृतियों से बना है। वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी, एडवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुभाषिणी अली ने कहा कि आज भारत के संविधान को अंगीकार किया गया था। पहली बार देश में भारत के संविधान के तहत समानता के सिद्धांत को अपनाया गया था। आज संवैधानिक मूल्यों के विपरीत धार्मिक, लैंगिक, जातीय व क्षेत्रीय असमानता को बढ़ावा दिया जा रहा है। विविधता का सम्मान करने के बजाय उसे नकारा जा रहा है। ऐसे में हमें संवैधानिक एवं मानवीय मूल्यों के पक्ष में खड़े होने की जरूरत है।
वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने कहा कि स्वच्छता की बात करने वाली सरकार के राज में आज भी सफाईकर्मियों की स्थिति में सुधार नहीं है। उन्होंने कहा कि देश में आज प्रतिरोध करने के लिए जगह नहीं है। प्रतिरोध के लिए हर शहर में जगह होनी चाहिए, इसके लिए संघर्ष करने की जरूरत है। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि देश की विविधता और बहुलता को सम्मान करने वाले अल्पसंख्यक नहीं हैं। वे इकट्ठा होकर बहुसंख्यक हैं। यह देश किसी समूह या व्यक्ति का नहीं, बल्कि देश के हर नागरिक का है।
वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता शांता सिन्हा, वरिष्ठ साहित्यकार लीलाधर मंडलोई, रामप्रकाश त्रिपाठी ने भी उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन आशा मिश्रा ने किया। इस अवसर पर गुजरात के वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी चारूल एवं विनय ने जनगीतों को प्रस्तुत किया। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने संघर्ष एवं निर्माण पर आधारित लोक नृत्य की प्रस्तुति दी। देश के अन्य राज्यों से आए समूहों ने भी सांस्कृतिक प्रस्तुति दी। भोपाल जन उत्सव में कल 27 नवंबर को रविन्द्र भवन, गांधी भवन एवं हिन्दी भवन में विभिन्न विषयों पर विमर्श, प्रदर्शनी, जनगीत, नाटक एवं सिनेमा की प्रस्तुतियां की जाएगी।
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