देश का युवा किसानों व मजदूरों के साथ है : कवलप्रीत कौर
बेहतर भारत के लिए युवाओं की एकजुटता जरूरी : सतरूपा चक्रबर्ती
भोपाल. धर्म, इतिहास और परंपरा का एक भौंड़ा रूप हमारे सामने परोसा जा रहा है, जिसके खिलाफ हमें खड़ा होने की जरूरत है। देश की राजनीति जाति, धर्म और क्षेत्रीयता के आधार पर हो रही है। आज युवाओं के मुद्दों पर राजनीति हो, इसके लिए एकजुट होने की जरूरत है। देश की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष और जन विरोधी नीतियों के खिलाफ एकजुटता जरूरी है। उक्त बातें आज छात्र एवं युवा नेता कन्हैया कुमार ने भोपाल जन उत्सव के दूसरे दिन युवा संवाद सत्र के दौरान देश भर से आए प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि क्या हम अपने मुद्दों पर कायम रहते हैं, जिनके लिए हम सरकार चुनते हैं या संघर्ष करते हैं या फिर हमारे आसपास छद्म मुद्दे गढ़े जाते हैं और हम उनमें उलझ जाते हैं। हमें इस बात को बहुत ही बारीकी से देखने की जरूरत है। जो शासक इतिहास में अपना पैर धंसाता है, तो इसका अर्थ है कि उसके पास वर्तमान में करने के लिए कुछ नहीं है। देश का निर्माण जनता से होता है। कमियों को निकालने का अर्थ देश की नहीं, बल्कि सरकार और उसकी नीतियों को कमी निकालते हैं। उन्होंने कहा कि लोग पद्मावती के सम्मान के लिए सड़कों पर निकल रहे हैं, लेकिन जब देश में बच्चियों के साथ यौन हिंसा और बलात्कार होता है, तो उसके सम्मान के लिए लोग क्यों नहीं आते?
जेएनयू की छात्र नेता सतरूपा चक्रबर्ती ने कहा कि देश में बेरोजगारी और कई समस्याएं हैं, लेकिन सरकार लोगों को आपस में लड़ाकर उन मुद्दों से उनका ध्यान हटा रही है। विश्वविद्यालय हमें विविधता को अपनाना सीखाता है। आज बेहतर भारत बनाने की जिम्मेदारी युवाओं के कंधे पर है। दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्र नेता कवलजीत कौर ने कहा कि देश का युवा किसानों एवं मजदूरों के साथ है। विश्वविद्यालय समाज को प्रस्तुत कर रहा है। वहां हर तबके के लोग आ रहे हैं। वे सवाल पूछ रहे हैं। अपने साथ हो रहे अन्याय के बारे में बात कर रहे हैं। इसलिए आज विश्वविद्यालय पर हमला किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि देश और प्रदेश के विभिन्न जन संगठनों, सांस्कृतिक और विज्ञान आंदोलनों से जुड़े साहित्यकार, कलाकार, रंगकर्मी, वैज्ञानिक एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा लोकतांत्रिक मूल्यों, वैज्ञानिक सोच और असहमति के अधिकार के पक्ष में भोपाल जन उत्सव में शामिल हुए हैं। आज वरिष्ठ बुद्धिजीवियों ने कई मुद्दों पर चर्चा की। प्रतिरोध की आवाजें पर मेघा पानसारे, कविता श्रीवास्तव, मनीषी जानी, बादल सरोज, रोमा मलिक, आशिम रॉय, सोनी सोरी, अपूर्वानंद, राधिका गणेशन, गीता हरिहरन, हमारा जीवन, हमारे संघर्ष पर सुभाषिनी अली, चितरूपा पालित, निखिल डे, अशोक चौधरी, सुरजीत, मजूमदार, शिबानी तनेजा, अमूल्य निधि, अमित सेनगुप्ता, तर्क एवं वैज्ञानिक चेतना, अविनाश पाटिल, नरेन्द्र नायक, अनिता रामपाल, सत्यजीत रथ, सब्यसाची चटर्जी, प्रबीर पुरकायस्थ, विज्ञान शिक्षा एवं शोध पर टी.आर. गोविन्दराजन, एस. कृष्णास्वामी, आर. ऊषा, देवेश कुमार दास, आभा देव हबीब, प्राज्वल शास्त्री, नई शिक्षा नीति : निष्कासन और गुलामी का एजेंडा पर डॉ. अनिल सद्गोपाल, सी. रामकृष्णन्, मधु प्रसाद, दिनेश अबरोल, लोकेश मालती प्रकाश ने विचार विमर्श किया।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में विभिन्न राज्यों से आए सांस्कृतिक टोलियों ने गीत, संगीत, नृत्य एवं नाटक प्रस्तुत किया। कविता पाठ में देश के शीर्षस्थ कवियों नरेश सक्सेना, असगर वजाहत, विष्णु नागर, नवल शुक्ल, बद्र वास्ती, सहित देश एवं प्रदेश के कई वरिष्ठ कवियों ने समसायिक मुद्दों पर प्रतिरोध की कविताओं का पाठ किया। प्रह्लाद टिपनिया ने कबीर गायन से प्रतिनिधियों को मुग्ध कर दिया और कबीर जैसे संतों के पदों की व्याख्या धार्मिक सहिष्णुता एवं मानवीयता के पक्ष में किया। तार्किक आधारों पर चमत्कारों की व्याख्या करते हुए बताया गया कि किस तरह से अंधविश्वास की जड़ों को समाज से हटाना जरूरी है, ताकि गैर बराबरी को खत्म किया जा सके। विकास एवं सामाजिक मुद्दों पर फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। बाल गतिविधियों में बच्चों ने अपनी रचनात्मकता को प्रदर्शित किया।
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