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भोपाल जनोत्सव

26 नवंबर से 28 नवंबर तक हुआ भोपाल जनोत्सव कोई ईवेंट मात्र नहीं है। यह प्रतिरोध के पक्ष में उठने वाली आवाजों का संगम था

जसविंदर सिंह 
26 नवंबर से 28 नवंबर तक हुआ भोपाल जनोत्सव कोई ईवेंट मात्र नहीं है। यह प्रतिरोध के पक्ष में उठने वाली आवाजों का संगम था। जब गोविंद पानसारे, नरेन्द्र दाबोलकर, कुलबुर्गी या हाल ही में गौरी लंकेश की हत्या के अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले हुए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में साहित्यकारों ने पुरुस्कार लौटाये। वे साहित्यकार प्रतिरोध के अधिकार की रक्षा के लिए भोपाल में थे।


जेएनयू से लेकर हैदराबाद और बनारस विश्वविद्यालय तक छात्रों के जनवादी अधिकारों को कुचला गया। रोहित वैमूला को आतमहत्या करने के लिए मजबूर किया गया। कन्हैया को देशद्रोही करार दिया गया। इस महोत्सव में छात्रों और नौजवानों के पक्ष में उठने वाली आवाजें भी शामिल थी।


विस्थापन के खिालाफ होने वाले संघर्षें का प्रतिनिधित्व भी इस महोत्सव में था। जिन मजदूरों और कर्मचारियों ने नवंबर में तीन दिन तक दिल्ली में महापड़ाव लगाया था, वे भी प्रतिरोध के हक की रक्षा में खड़े थे। किसान संसद लगाने वाले किसान भी इस महोत्सव के साथ एकजुटता दिखा रहे थे। महिला उत्पीडऩ और समाज की आधी आबादी के अधिकारों की आवाज भी इस प्रतिरोध की आवाज में शामिल थी।


फिर फिल्म एंड टेलीविजन इस्टीच्यूट आफ इंडिया। जहां खास विचारधारा के नौसिखिए को बिठाने की कोशिश के विरोध में छात्रों ने सालों तक संघर्ष किया। पद्मावति विवाद के बहाने जब कला, साहित्य और इतिहास को मिथकों के साथ गडमड कर उन्माद पैदा करने की कोशिशें हो रही हैं। तब इन तर्को पर बहस करने वाले बुद्विजीवी भी इस आयोजन में शामिल थे। 


कुल मिला समाज को तोडऩे वाली, साम्प्रदायिकता के आधार पर बांटने वाली, जनतांत्रिक अधिकारों पर हमला करने वाली ताकतों के खिलाफ सामूहिक और समग्र प्रतिरोध का संगम था भोपाल उत्सव। हर्ष है कि यह उत्सव हमारे भोपाल में हुआ। 

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