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पद्मावती- हिंदुत्ववादी सांस्कृतिक दमन

फिल्म पद्मावती पर जिस तरह हमले किए जा रहे हैं और फिल्म के निर्देशक तथा मुख्य कलाकार को सिर कलम करने की धमकियां दी जा रही हैं, यही दिखाता है कि भीड़ का राज, मोदी शासन की प्रमुख निशानी बन गया है।

प्रकाश करात
फिल्म पद्मावती पर जिस तरह हमले किए जा रहे हैं और फिल्म के निर्देशक तथा मुख्य कलाकार को सिर कलम करने की धमकियां दी जा रही हैं, यही दिखाता है कि भीड़ का राज, मोदी शासन की प्रमुख निशानी बन गया है। कोई भी कलात्मक या सांस्कृतिक सृजन इन कट्टïरपंथी भीड़ों के हाथों से तब तक सुरक्षित नहीं है, जब तक वह हिंदुत्ववादी ताकतों के संकीर्ण-प्रतिक्रियावादी मूल्यों का अनुमोदन नहीं करता है।


यह फिल्म चित्तौड़ की रानी पद्मावती की लोकख्याति के संबंध में है, जिसने कथित रूप से दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के हाथों पडऩे के बजाए, जौहर करना पसंद किया था। खिलजी ने 13वीं सदी में चित्तौड़ पर चढ़ाई की थी। लेकिन, पद्मावती कोई ऐतिहासिक चरित्र नहीं है बल्कि एक मिथक है, जो सांस्कृतिक स्मृति का हिस्सा बन गया है। इसीलिए, पद्मावती के संबंध में अनेक अलग-अलग आख्यान मिलते हैं। इसलिए, फिल्म पर इतिहास को तोडऩे-मरोडऩे का आरोप लगाने की कोई तुक ही नहीं बनती है।


फिल्म को देखे बिना ही उस पर हमले किए जा रहे हैं। वास्तव में फिल्म में कथित रूप से जिन आपत्तिजनक दृश्यों के आरोप लगाए जा रहे हैं, उनकी मौजूदगी से फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली इंकार कर चुके हैं।


कोई भी फिल्म केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) का प्रमाणपत्र मिलने के बाद ही प्रदर्शित हो सकती है। यही ऐसा इकलौता अधिकृत निकाय है, जो यह तय कर सकता है कि कोई फिल्म सार्वजनिक प्रदर्शन के लायक है या नहीं। लेकिन, सीबीएफसी ने फिल्म देखी भी नहीं है, पर उस पर प्रतिबंध लगाने की मांगें उठ चुकी हैं। इस फिल्म के प्रदर्शन का विरोध सिर्फ चंद हाशिए के ग्रुपों द्वारा ही नहीं किया जा रहा है बल्कि मुख्यधारा के राजनीतिज्ञों और भाजपा के मुख्यमंत्रियोंं द्वारा किया जा रहा है।

राजस्थान में राजपूत संगठनों द्वारा विरोध से शुरू होने के बाद अब इस शोर को अब राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों का समर्थन मिल गया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री, शिवराज सिंह चौहान ने एलान कर दिया है कि इस राज्य में फिल्म नहीं प्रदर्शित होने दी जाएगी क्योंकि यह "राष्ट्रमाता" पद्मावती का अपमान करती है। इससे योगी आदित्यनाथ को नाराजगी हो सकती है क्योंकि वह पहले ही गाय का "राष्ट्रमाता" घोषित कर चुके हैं। आदित्यनाथ ने भी एलान कर दिया है कि उनकी सरकार तब तक फिल्म को नहीं चलने देगी, जब तक 'विवादास्पद अंशों को हटा नहीं दिया जाता है। उन्होंने हैरानकुन तरीके से यह एलान भी किया है कि फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली, उन लोगों से कम दोषी नहीं हैं जो इस फिल्म से जुड़े कलाकारों तथा दूसरे लोगों को धमकियां दे रहे हैं। यह उन लोगों को बचाने की कोशिश के सिवा और कुछ नहीं है, जिन्होंने फिल्म के निर्देशक तथा अभिनेत्री दीपिका पादुकोन का सिर कलम करने की धमकियां दी हैं।


भाजपा के मुख्यमंत्रियों द्वारा अपनाए गए इस रुख को न तो प्रधानमंत्री या भाजपा नेतृत्व ने नकारा है और न उन्होंने इस पर अपनी असहमति जतायी है। वास्तव में भाजपा के ही एक और नेता, हरियाणा के सूरज पाल अमू ने तो भंसाली तथा दीपिका का सिर काटने के लिए, 10 करोड़ रुपये के इनाम का एलान किया है।


यह निंदनीय है कि राजस्थान में कांग्रेस के भी कुछ नेता, जोरों से फिल्म का विरोध कर रहे हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी भाजपा के मुख्यमंत्रियों के सुर में सुर मिलाकर, फिल्म पर आपत्तियां जता चुके हैं और उसके विरोध का समर्थन कर चुके हैं।


इस तरह की धमकी देने वालों के खिलाफ भाजपा शासित राज्यों में न तो कोई मामला दर्ज किया गया है और न कोई गिरफ्तारी हुई है। उल्टे इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों की भाषा तथा उनके उग्र रुख ने, भीड़ के उन्माद को बढ़ावा देने का ही काम किया है।


फिल्म पद्मावती को कुचलने की कोशिश, सिर्फ वोट बैंक की राजनीति का मामला नहीं है। यह इसकी कहीं ज्यादा शरारतपूर्ण कोशिश है कि अभिव्यक्ति की आजादी को कुचला जाए और सांस्कृतिक सृजनों को इसके लिए मजबूर किया जाए कि वे हिंदुत्व के प्रतिगामी तथा प्रतिक्रियावादी मूल्यों का अनुमोदन करें। संस्कृति पर दारोगाई जमाने के लिए भीड़ का इस्तेमाल, गोगुंंडों की उपद्रवलीला जैसा ही है।


गोवा में हो रहे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में जूरी द्वारा चुनी गयी दो फिल्मों को सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने जिस तरह हटा दिया, उससे भाजपा की केंद्र सरकार के इस सांस्कृतिक दमन में शामिल होने का पता चल जाता है।


यह सुनिश्चित किया जाना महत्वपूर्ण है कि पद्मावती फिल्म को सीबीएफसी का प्रमाणपत्र हासिल हो और उसका सार्वजनिक प्रदर्शन हो। संबंधित राज्य सरकारों पर इसकी जिम्मेदारी आती है कि यह सुनिश्चित करें कि यह फिल्म सिनेमा हॉलों में प्रदर्शित हो और जो कोई भी फिल्म के प्रदर्शन में खलल डालने की कोशिश करे, उससे कानून के जरिए निपटा जाए।    

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