प्रमोद प्रधान
नई दिल्ली . देश की अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र के मेहनतकशों ने 9 से 11 नवम्बर तक संसद पर हुए महापड़ाव में लाखों-लाख की तादाद में हिस्सा ले मोदी सरकार की घातक नीतियों के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार करते हुए, मजदूर वर्ग के आंदोलन का नया सुनहरा अध्याय रच दिया। यह तीन दिवसीय महापडाव 10 केन्द्रीय श्रमिक संगठनों व दर्जनों स्वतंत्र कर्मचारी महासंघो के आह्वान पर आयोजित किया गया था। मंहगाई पर रोक, राशन प्रणाली सार्वभौमिक बनाने, बेरोजगारी खत्म कर सभी को बेहतर रोजगार, 18 हजार रुपए मासिक न्यूनतम वेतन, श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधन वापस ले सभी श्रम कानूनों को लागू करने, सभी को तीन हजार रुपए प्रतिमाह, पेंशन, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का निजीकरण रोको, ठेकेदारी प्रथा रोको, समान काम समान वेतन लागू करो, बोनस प्रोविडेण्ट फंड के भुगतान और पात्रता पर लगी सीमाए हटाओ, योजना कर्मियों को श्रमिक के रूप में मान्य कर उन्हें सभी अधिकार दिये जाने जैसी प्रमुख 12 मांगों को लेकर यह आन्दोलन चला।
मध्यप्रदेश की भी व्यापक भागीदारी
तीन दिवसीय महापड़ाव में देश के सभी प्रदेशों से लाखों लाख लोगों की भागीदारी हुई। मध्यप्रदेश से भी सीटू के विभिन्न जिलो के जत्थे तीन दिन तक रोजाना पहुचें। पहले दिन ग्वालियर चम्बल सम्भाग, दूसरे दिन समूचे कोयला क्षेत्र, रीवा के सीमेंट मजदूर, बालाघाट के खदान मजदूरों के साथ भोपाल, मंडीदीप, सीहोर, छिन्दवाडा, के औद्योगिक मजदूरों के जत्थे पहुचे। तीसरे दिन समूचे मप्र से योजना कर्मियों के साथ मालवा क्षेत्र विभिन्न जिलो के मजदूर बडी संख्या में पहुचें। रेलगाडीयों के आवागमन में असाधारण रूप से हुए विलम्ब व सीमित संख्या में रेलगाडीयों के होने के चलते महापड़ाव में भागीदारी करने गये जत्थों को भारी कठिनाई का सामना करना पडा। इस सबके बाद भी मध्यप्रदेश से लगभग 10 हजार की भागीदारी न सिर्फ महत्वपूर्ण है बल्कि लोगों में लडऩे की ललक को भी दिखाती है। मध्यप्रदेश की कुल भागीदारी में तीन चौथाई से ज्यादा योजनाकर्मी व अन्य क्षेत्र की महिलाओं का होना संघर्षो में महिला कामगारों के महत्व को रेखांकित करता है।
मजदूरों का संघर्षोत्सव
मोदी सरकार की कारपोरेट परस्त मजदूर विरोधी आर्थिक नीतियों और साम्प्रदायिक धु्रवीकरण की नीतियों ने पूरे देश को बदहाली और बर्बादी के गर्त में ठेल दिया है। नोटबंदी, जीएसटी ने तो मंदी और बंदी की ऐसी सुनामी लायी है कि रोजगार व्यापार, उद्योग, कृषि, सभी को भीषण संकट में फंसा दिया है। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव महापडाव में भागीदारी करने आए लाखों लाख लोगों के प्रत्यक्ष अनुभव व महापडाव के दौरान सम्बोधित करने वाले विभिन्न क्षेत्रों के नेताओं के वक्तव्यों से स्पष्ट हो रहा था। सार्वजनिक क्षेत्र लघुउद्योग, निजी क्षेत्र के बड़े उद्योग, घर आधारित कामों में लगे मजदूरों, बीड़ी, मनरेगा, स्कीम वर्कर, सभी क्षेत्र के मजदूर मोदी कुराज के खिलाफ भारी आक्रोश में दिखे।
सरकार ने महापड़ाव के लिये चाही गयी तीन दिनी न तो अनुमति दी और न ही उपयुक्त स्थान दिया। औद्योगिक प्रदूषण की चपेट में फंसे दिल्ली को बचाने के लिए एनजीटी तो कुछ कर नहीं पाया लेकिन जनतांत्रिक प्रतिरोध को प्रदूषण का बड़ा कारण बताते हुए उसने जंतर मंतर पर धरने प्रदर्शनों पर रोक लगा दी। यही कारण था कि तीन दिनी महापड़ाव के लिये प्रात: 10 बजे से सांय 4 बजे तक संसद मार्ग पर धरने की अनुमति भी इस शर्त पर दी गई कि प्रतिदिन सांय 4 बजे मंच, बिछात, आदि भी हटा कर ट्रेफिक चालू करा दिया जायेगा। यह घटना दिखाती है कि आज मेहनतकश किस चुनौतीपूर्ण हालात का सामना कर रहें है। जहॉ एक ओर कारपोरेटपरस्त नीतियों से उनका जीवन संकट में पड़ गया है, वही अपनी तकलीफों से निजाद पाने के लिये जरूरी संघर्ष के जनतांत्रिक अधिकारों को भी उनसे छीना जा रहा है।
इन हालातों में महापड़ाव स्थल का समूचा वातावरण उत्साह व आशा का संचार करने के लिए प्रेरणापुंज का काम कर रहा था। 9 नवम्बर को अलसुबह से ही विभिन्न प्रांतो के जत्थे शहर भर में नारे लगाते हुए संसद मार्ग पर पहुचने लगे। अपने अपने संगठनों के नाम अंकित पोशाके पहने, रंग बिरंगे फैस्टून, अपने अपने संगठनों के झंडे लिये अनगिनत जत्थे ऐसे चले आ रहे थे जैसे कि वे किसी उत्सव में शामिल होने आये है। लयबद्ध नारो, जनगीतों, की लगातार उठती स्वर लहरियों और आत्मविश्वास से भरे जत्थों के मार्च ने समूचे वातावरण को संघर्षोत्सव के वातावरण में तब्दील कर दिया। कहने तो को उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, मध्य सभी क्षेत्रों के विविध भाषाई संास्कृतिक पृष्ठभूमि वाले जत्थे शामिल थे लेकिन सभी की बुलंद आवाजे और आक्रोश की अभिव्यक्तियां संघर्ष के एक नये नारे को जन्म दे रही थी।
तीन दिन में 9 सत्रों में सभायें
श्रम संगठनों के संयुक्त आंदोलन के इतिहास में यह तीन दिवसीय महापड़ाव न सिर्फ एक अभिनव कदम था बल्कि मजबूती से रखा गया कदम भी था। इस महापड़ाव के तीन दिन में केन्द्रीय श्रमिक संगठनों के अलग अलग संयुक्त अध्यक्ष मंडलों की अध्यक्षता में 9 सत्रों में आमसभायें हुई। इन में पहले दिन के पहले सत्र व आखिरी दिन के आखिरी सत्र की सभाओं के अध्यक्ष मंडल में सीटू राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. के हेमलता तथा वक्ता के रूप सीटू राष्ट्रीय महासचिव तपन सेन शामिल थे जबकि अन्य सत्रों के अध्यक्ष मंडल व वक्ताओं में अन्य सीटू नेताओं को शामिल किया गया था। तीसरे दिन के दूसरे सत्र के अध्यक्षमंडल में मप्र सीटू के प्रदेश महासचिव प्रमोद प्रधान को भी शामिल किया गया था।
तीन दिन चले महापड़ाव के प्रत्येक दिन उम्मीद से कही ज्यादा भागीदारी हुई। अब तक जब भी दिल्ली में कोई भी रैलियां हुई उनमें दूरस्थ प्रदेशों से केवल प्रतिनिधित्वकारी (सीमित संख्या) भागीदारी ही होती थी। लेकिन इस बार के महापड़ाव में दक्षिण पूर्व पश्चिम के दूरस्थ प्रदेशों के भी बडे बडे जत्थे न सिर्फ दिल्ली आये बल्कि कार्यक्रम की समूची अवधि तक महापडाव में शामिल रहे। इन दूरस्थ प्रदेशों से आये जत्थों का उत्साह काबिले तारीफ था। हिन्दी भाषी प्रदेशों के जत्थे अलग अलग दिन आये और उसी दिन लौट गये। गाडीयों के विलम्ब से आने-और विभिन्न जत्थों के अलग अलग समय आने से कारण दिन भर रैलियों के आने और जाने का क्रम बना रहा। मध्यप्रदेश के जत्थों की भी स्थिति यही रही। मध्यप्रदेश की कुछ गाडीयां तो 8 से 15 घंटे विलम्ब से आयी जिसके चलते कुछ जत्थों को तो 24-25 घंटे रेल में बिताने के बाद समूची रात स्टेशन प्लेटफार्म पर भी गुजारनी पडी।
संघर्षो के अगले चरण की घोषणा
11 नवम्बर 2017 को महापडाव के आखिरी दिन की समापन सभा में सभी केन्द्रीय श्रमिक संगठनों के नेताओं ने अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र से महापडाव में उत्साहजनक तरीके से लाखों-लाख की भागीदारी करने के लिये बधाई थी। महापडाव के तीनों दिन विभिन्न राज्यों, संगठनों क्षेत्रों से आये मेहतनकशों द्वारा प्रदर्शित किये गये उदाहरण योग्य आत्मअनुशासन की सभी नेताओं ने सराहना की। नेताओं ने महापड़ाव में योजनाकर्मीयों के साथ अन्य क्षेत्रों की महिलाओं व युवाओ की उल्लेखनीय भागीदारी को आंदोलन के लिये महत्वपरक बताया। नेताओं ने कहा कि यह आन्दोलन जहॉ एक ओर मोदी सरकार की सर्वनाशी नीतियों के खिलाफ तीखे असंतोष व आक्रोश को दिखाता हैं वही दूसरी ओर इसके विरूद्ध संघर्ष के लिये मजदूर वर्ग की जिद को भी प्रदर्शित करता है।
8 अगस्त 2017 को श्रमिकों को हुए सम्मेलन में जो प्रस्ताव पारित हुआ था, उसमें इस महापडाव आंदोलन के साथ संघर्ष की चरणबद्व तरीके से आगे बढाते हुये उपयुक्त समय पर अनिश्चितकालीन हडताल करने का आह्वान था। महापड़ाव आन्दोलन के समापन पर संकल्प लिया गया कि यदि सरकार ने अपनी राष्ट्रघाती नीतियों में कोई परिवर्तन नही किया तो हम चरणबद्ध आन्दोलन करते हुये अनिश्चितकालीन हडताल की घोषणा कर देगें। पहले चरण के आन्दोलन के रूप में यह तय किया गया कि जनवरी के पहले सप्ताह तक जिला स्तरीय संयुक्त कन्वेशन, जनवरी के अंतिम सप्ताह में जिला स्तर पर संयुक्त सत्याग्रह, जिन क्षेत्रों और उद्योगों में सरकार निजीकरण के कदम उठाये वहॉ वहॉ संयुक्त हडताले करने के साथ यदि केन्द्रीय बजट में मजदूर विरोधी प्रावधान आये तो उसी दिन देश भर में विरोध कार्यवाहीयां आयोजित की जाये। यह भी निर्णय लिया गया कि केन्द्रीय बजट प्रस्तुत होने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय श्रम संगठन अपनी बैठक कर आन्दोलन के अगले चरण के बारे में फैसला करेगें।
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