Sidebar Menu

प्रार्थनाओं और श्रद्धांजलियों के ठेके भी फलेफूले

मार्क्स ने 169 साल पहले कम्युनिस्ट घोषणापत्र में लिखा था कि पूँजीवाद पवित्र समझे जाने वाले हर रिश्ते हर पेशे को रूपये पैसे के बर्फीले पानी में डुबो देता है । वे शिक्षक, डॉक्टर और रचनाकारों का जिक्र कर रहे थे

लंदन। मार्क्स  ने 169 साल पहले कम्युनिस्ट घोषणापत्र में लिखा था कि पूँजीवाद पवित्र समझे जाने वाले हर रिश्ते हर पेशे को रूपये पैसे के बर्फीले पानी में डुबो देता है । वे शिक्षक, डॉक्टर और रचनाकारों का जिक्र कर रहे थे । उन्होंने यह भी लिखा था कि पूँजी मुनाफे के लिए देश की सीमाओं को तोड़कर दुनिया भर में दौड़ती भागती है ।
 
मगर उन्हें शायद ही अंदाज रहा होगा कि उनकी यह उक्ति धर्म और उसके रीति रिवाजों में भी उतनी ही सच्ची उतरेगी जितनी पूँजी के मामले में ।
 
इन दिनों दुनिया भर के देशों की प्रार्थनाएँ, धार्मिक समागम (होली मॉस) यहां तक कि मृत्यु उपरान्त की जाने वाली प्रार्थना सभायें  (मेमोरियल्स) भारत के चर्चों को ठेके पर दी जा रही हैं। केरल के किसी चर्च में जर्मनी में मरे किसी व्यक्ति की आत्मा को शान्ति देने के लिये मेमोरिअल हो रहा है तो किसी चर्च में किसी ब्रिटिश बच्चे के जन्म पर की जाने वाली प्रार्थना !!
 
बात अजीब लगती है मगर वैश्वीकरण के बाद हर तरह की आउटसोर्सिंग का अड्डा बना भारत इस धार्मिक कर्मकाण्ड की आउट सोर्सिंग का भी केंद्र बना, पिछली वर्षों में यह धंधा और तेजी से बढ़ा है । पश्चिमी देश और वैटिकन इसका कारण बाकी जगह कैथोलिक पादरियों की कमी बताते हैं । मगर असली वजह वही है जिसे माक्र्स ने अधिक मुनाफा कहा था । यूरोप और अमरीका में जिस प्रेयर और होली मॉस या मेमोरियल के लिये 100 डॉलर खर्च करना होता वह काम भारत के चर्च में 10 डॉलर से भी कम में हो जाता है ।
 
इन दिनों यही आउटसोर्सिंग हिन्दू और सिख रीतिरिवाजों के लिए भी होने लगी है । इंटरनेट ने इसे और आसान बना दिया अब श्रद्धालु दान देने के बाद दूर की जाने वाली विधि को नेट पर देख भी सकते हैं।
 

Leave a Comment