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चीन को खलनायक बनाकर अमेरिकीपरस्त प्रेस ने निकाली मीडिया की मैयत...

ब्रिटेन में तो प्रधानमंत्री और प्रिंस चाल्र्स तक कोरोना से जूझ रहे हैं..कोरोना ने स्पेन की राजकुमारी मारिया टेरेसा की बलि ले ली..जर्मनी के एक प्रान्त के अवसाद ग्रस्त वित्तमंत्री ने ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली..

फोटो - गूगल

कोरोना महामारी से त्रस्त अमेरिका और उसके पिछलग्गू देशों ने अपनी नाकामी स्वीकारने के बजाय यह ढिंढोरा पीटना शुरू कर दिया है कि इस महामारी को चीन ने काफी दिन छुपा के रखा, जिसकी वजह से यह महामारी कंट्रोल से बाहर हो गयी..अमेरिकी परस्त मीडिया तो यहां तक प्रचार कर रहा है कि इस महामारी का वायरस दुनिया में फैलाया ही चीन ने है..
दुनिया का करीब 90 फीसदी मीडिया अमेरिका परस्त है..इतना विशाल मीडिया जब परस्त हो जाए तो उसके सामने गोयबल्स भी कुछ नहीं..मीडिया का यह खेल आज का नहीं.. 60 के दशक में चले शीतयुद्ध और उस दौरान क्यूबा की तानाशाही सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए फिदेल कास्त्रो को जिस तरह अमेरिका परस्त मीडिया ने विश्व के सामने राक्षस के रूप में पेश किया और सीआईए के संरक्षण में क्यूबा को लूट रहे बातिस्ता को देवपुरुष बताया तो क्या आश्चर्य कि चीन को दुनिया को बरबाद करने का साजिशकार करार देने में अमेरिका और उसके यूरोपीय चमचे देश पूरी तरह पिल पड़ें हों..

31 दिसंबर आते-आते चीन का वुहान शहर कोरोना की चपेट में आ गया था..वहां मौतों का सिलसिला शुरू हो गया..11 जनवरी को डब्ल्यूएचओ ने बाकायदा दुनिया को कोरोना के प्रति खबरदार भी किया.. लेकिन अमेरिका और यूरोप की ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली और स्पेन जैसी महाशक्तियाँ अपने साधनों और तकनीकी ताकत के नशे में इस कदर डूबी रहीं कि जनवरी के आखिर में इटली के मिलान शहर में हुए फुटबॉल मैच का एक बड़ा आयोजन उनके लिए प्रलय ले कर आया.. हुआ यूँ कि ऐन वक्त पर मैच को छोटे मैदान से बड़े स्टेडियम में इसलिए शिफ्ट किया गया क्योंकि वहाँ ज़्यादा दर्शक बैठ सकते थे.. दर्शकों में बड़ी संख्या में विदेशी भी थे.. मैच के बाद सारे दर्शक मेट्रो में उमड़ पड़े .. फिर क्या था, मेट्रो ट्रेनें देखते ही देखते यमदूतों का वाहक बन गयीं, क्योंकि इनमें ही कोरोना से संक्रमित दर्शक भी थे..

अगले आठ-दस दिनों में यही हज़ारों फुटबॉल प्रेमी अपने-अपने इलाकों और देश में कोरोनो को पहुँचाने वाले केरियर बन गये, नतीज़तन, बेहतरीन मेडिकल सुविधाओं वाले देश, दुनिया में सबसे विकराल कफन वाले देश बनते चले गये..

ब्रिटेन में तो प्रधानमंत्री और प्रिंस चाल्र्स तक कोरोना से जूझ रहे हैं..कोरोना ने स्पेन की राजकुमारी मारिया टेरेसा की बलि ले ली..जर्मनी के एक प्रान्त के अवसाद ग्रस्त वित्तमंत्री ने ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली.. अभी यूरोप का कोना-कोना केरोना की जद में है.. अमेरिका का हाल भी कम खराब नहीं है.. उसकी सारी हेकड़ी औंधे मुँह गिरी पड़ी है..
राष्ट्रपति ट्रम्प को इसी साल होने वाले अपने अगले चुनाव की चिन्ता खाये जा रही है, इसीलिए उल्टे-सीधे कदम उठाए जा रहे हैं। चीन को गरियाकर उसे खलनायक बनाया जा रहा है कि उसने समय पर इस वैश्विक महामारी से दुनिया को सावधान नहीं किया। जबकि अमेरिकी सरजमीं पर बैठे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन से आयी अधिकारिक जानकारियों के आधार पर ही 11 जनवरी को सारी दुनिया को चेता दिया था..इसी दिन ट्रम्प ने अपनी भारत यात्रा के कार्यक्रम का ऐलान किया था..नशे में झूम रहे दुनिया के सबसे बड़े चौधरी की कान पर जूं तक नहीं रेंगी.. जबकि पड़ोसी कनाडा और एशियाई देश, दक्षिण कोरिया ने कोरोना से बचाव के संसाधन जुटाने में एड़ी-चोटी एक कर दी..

और मजेदार बात सुनिए कि मीडिया और सोशल मीडिया बेसिरपैर की उड़ाने में यहां तक पहुंच जाता है कि उसने सारी दुनिया को इस भ्रामक जानकारी से पाट दिया कि चीन ने ही कोरोना का वायरस तैयार करके पहले तो अपने वुहान शहर के साढ़े तीन हजार नागरिकों को मरवा दिया और फिर सारी दुनिया में ऐसी महामारी फैला दी कि विश्व अर्थव्यवस्था और अमेरिकी वर्चस्व नष्ट हो जाये और दुनिया की चौधराहट चीन के हाथों में आ जाये..जबकि इन हवाबाजों को ये बुनियादी तथ्य ही नहीं पता हैं कि जैविक हथियार तो बनाये जा सकते हैं लेकिन अभी तक मनुष्य किसी भी बॉयोलॉजिकल क्रिएचर को तैयार नहीं कर सका है.. किसी देश के पास किसी नये वायरस को जन्म देने की क्षमता नहीं है..

दूसरी ओर सारी दुनिया जानती है कि कोरोना एक वायरस परिवार का नाम है.. इस परिवार के करीब दो सौ वायरसों से वैज्ञानिक परिचित हैं.. इबोला, सार्स, मर्स वगैरह कुछ ऐसे वायरस हैं जो कोविड-19 के पूर्वज हैं और इससे कहीं ज़्यादा घातक साबित हुए हैं.. गनीमत है कि कोविड-19 इंसानों के सम्पर्क से फैलता है, वर्ना कल्पना करके देखिए कि यदि ये चेचक के वायरसों की तरह हवा से हवा में फैलता होता तो कितना सितम ढाता!!

इसीलिए जब ट्रम्प की हवा खराब होने लगी तो चाइनीज प्रीमियर ने उन्हें फोन करके समझाया कि ये वक्त आपसी सहयोग से वैश्विक संकट का सामना करने का है, एक-दूसरे के अनुभव से लाभ लेने का है, न कि किसी के सिर पर ठीकरा फोडऩे का..लिहाजा, गाली-गलौज बन्द करो और इंसानों को बचाने पर पूरी ताकत झोंक दो..तब जा कर ट्रम्प को होश आया और उसने तीन खरब डॉलर के पैकेज का ऐलान किया..

ट्रम्प और अमेरिकियों का नशा उतरने की एक बड़ी वजह यही रही.. पहले तो वो समझते थे कि समस्या सिर्फ़ वुहान और चीन की है, लेकिन आफ़त उनके गले में भी तब आ पड़ी, जब न्यूयार्क में भी लाशों का अम्बार लगने लगा..उनके होश ठिकाने आये भी तभी..

यूरोप के देश और अमेरिका अपने अहंकार, अपनी लापरवाही और अपनी आदतों और ट्रम्प और जॉनसन जैसे मूर्ख राष्ट्र प्रमुखों की सरपरस्ती के चलते इस महामारी के चंगुल में ना सिर्फ़ फंस गये बल्कि धंसते ही जा रहे हैं..


(बीआईटीवी के समय के मित्र मुकेश कुमार सिंह के साथ हुई बातचीत के आधार पर..)  
राजीव मित्तल वरिष्ठ पत्रकार हैं। 
 

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