सरकारी घोषणाएं कुछ भी हों, असलियत ये है कि अभी तक कहीं भी खरीदी शुरू नहीं हुई है फरवरी के तीसरे सप्ताह में सरसों की फसल आ गई थी। समर्थन मूल्य 4450 रुपए प्रति क्विंटल घोषित होने के बाद भी अभी तक कहीं कोई खरीदी की व्यवस्था नहीं है। मंडी बंद होने से किसान अपनी फसल का उपार्जन नहीं कर पा रहे है, जिसके चलते मजबूरी में किसानों को सरसों की फसल 3500 ₹ से 3600 रु प्रति क्विंटल पर बेचनी पड़ रही है वह भी चोरी छुपे विक्रय करने को मजबूर किया जा रहा है। उत्तरी मध्य प्रदेश खासतौर से चंबल क्षेत्र में सरसों किसानों की मुख्य वाणिज्यिक फसल है|जिस पर किसानों की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। परंतु उसे भी समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदा जा रहा है। गेहूं की खरीदी के बारे में भी यही स्थिति बनी हुई है। गेहूं का समर्थन मूल्य 1925 रु प्रति क्विंटल घोषित किया गया है। गेहूं की फसल आ चुकी है उसकी भी खरीदी की कोई व्यवस्था नहीं है।
मध्यप्रदेश किसान सभा के अध्यक्ष रामनारायण क़ुरारिया, उपाध्यक्ष अशोक तिवारी के अनुसार गत दिनों रवी की फसल सरसों गेहूं चना मसूर के उपार्जन के लिए केंद्र सरकार द्वारा समर्थन मूल्य की घोषणा की गई। घोषित समर्थन मूल्य फसल की लागत से डयौढे दाम के बराबर तो कतई नहीं है। वर्तमान में कोविड-19 के लिए लॉक डाउन के चलते पहिले 1 अप्रेल से फिर 15 अप्रैल से गेहूं व सरसों की खरीदी की घोषणा केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा की गई है। बीच में 01 मई की भी घोषणा की। कुल मिलाकर उनकी घोषणा भी बार-बार बदलती रही।
किसान नेताओं ने बताया कि 15 अप्रैल से खरीदी के लिए खरीद केंद्रों पर न तो बारदाना है, न शेड की व्यवस्था है, न पीने के पानी की व्यवस्था है, न दूरी बनाकर उपार्जन करने के लिए परिसर है। यहां तक कि सरकार द्वारा जो दिशा निर्देश दिए गए हैं उसमें यह कहा गया है कि बिना मैसेज के कोई भी किसान उपार्जन के लिए फसल नहीं लाएगा। , यदि निर्धारित दिवस पर किसान किसी कारण से फसल विक्रय के लिए नहीं ला पाता है, तो उसे कॉल सेंटर पर सूचित करना होगा अगले मैसेज के बाद ही फसल बिक्री के लिए फसल लायी जा सकती है। किसान को दो बार अवसर दिए जाएंगे इसके बाद कोई अवसर नहीं दिया जाएगा। इस तरह की जटिल प्रक्रिया निर्धारित की गई है जो किसानों की फसल विक्रय के लिए भी नई -नई परेशानियां निर्मित करेगी।
कुल मिलाकर दिखावे के अलावा ठोस रूप से उपार्जन की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। बाद में माफियाओं दलालों सटोरियों से फसल कागजों में ली जाएगी और वारे न्यारे किए जाएंगे। यह किसानों की स्थिति को और बिगाड़ने में योगदान करेगी।
मध्य प्रदेश किसान सभा ने की थी गांव गांव में किसानों से फसल की खरीदी की मांग
अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज ने गांव गांव में अमले को लगाकर किसानों की फसल क्रय करने का बंदोबस्त किए जाने की मांग की थी, जिससे किसानों की लूट को रोका जा सके, सबसे बड़ी समस्या सरकारी खरीद केंद्र पर फसल के उपार्जन के उपरांत भुगतान की है। महीनों तक भुगतान के लिए किसानों को चक्कर काटने पड़ते हैं, कई बार केसीसी व अन्य बकाया के नाम पर किसानों को होने वाला भुगतान उनकी बिना सहमति के काट लिए जाते है। जिसके चलते भी किसान सरकारी खरीद केंन्द्रो पर फसल उपार्जन के लिए नहीं पहुंच पाते हैं।
सरकारी खरीद केंद्रों पर केवल पंजीकृत किसान ही बेच सकते हैं अपनी फसल
सरकारी खरीद केंद्रों पर केवल पंजीकृत किसानों की फसल का ही उपार्जन हो पाता है। जहां तक पंजीयन का सवाल है किसानों का लगभग 7०% हिस्सा पंजीयन ही नहीं करा पाता है, जिसके चलते किसान अपनी फसल का उपार्जन सरकारी खरीद केंद्र पर नहीं कर पाते हैं। इस तरह से समर्थन मूल्य पर खरीदी महज एक घोषणा बन कर रह गयी है। जो व्यापारियों माफियाओं के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो रही है। वर्तमान में किसान सरसों की बिक्री लगभग कर चुके हैं, गेहूं की भी शुरुआत हो गई है, परंतु सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई है।
मध्य प्रदेश किसान सभा ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए गांव - गांव मे नगदी पर फसल खरीदी की व्यवस्था सुनिश्चित करने की मांग दुहरायी है। किसान सभा ने कहा है कि सरकारी खरीदी नहीं होने पर, ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और ज्यादा भयावह हो जायेगी। लाखों टन फसल बर्बाद होने से देश की खाद्यान्न सुरक्षता अलग से खतरे में पड़ेगी।
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