मध्यप्रदेश की राजनीति में भूकंप आया है। इसे सिर्फ राजनेताओं के पतन तक सीमित करके देखने या सिर्फ कुछ नेताओं को निशाना बनाने से काम नहीं चलेगा। हनी ट्रैप मामले में हमारी व्यवस्था की संड़ाध से ढक्कन उठ गया है। कोशिशें अभी भी गटर को साफ करने की नहीं, बस गटर पर फिर से ढक्क न लगाने की हो रही हैं। और जैसा कि पुरुष प्रधान समाज में होता है। साारा दोष महिलाओं पर मढऩे की कोशिश पहले ही दिन से हो रही है। आप किसी भी अखबार की हैडलाईन उठा कर देख लीजिए-शीर्षक करीब करीब एक जैसे मिलेंगे: विष कन्यायें, ब्लैक मेलर और न जाने क्या क्या? इन शब्दों के उपयोग का अर्थ ही यही है कि सारा दोष इन्हीं का है हनी ट्रैप में लिप्त पुरुष तो इनके झांसे में आने वाले सीधे साधे, भोले भाले इंसान हैं, जिनको इन महिलाओं ने अपने जाल में फंसाया है।
इनमें से गैंग लीडर के अपराध को ढका भी नहीं जा सकता है। मगर इस कांड ने राजनेताओं, नौकरशाहों और पत्रकारों को एक साथ बेनकाब किया है। अब अपने को बचाने के लिए सारा दोष इस जाल में फंसी महिलाओं पर डालने की कोशिश हो रही है। जबकि इसमें भी कुछ गरीब घरों की लड़कियों को रंगीन सपने दिखा कर देह व्यापार में धकेलने साजिशें भी सामने आई हैं। मगर सफेदपोश इस मामले में भी बचने की कोशिश कर रहे हैं।
हनी ट्रैप मामले में सबसे ज्यादा बेनकाब वह पार्टी हुई है, जो राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति की स्वंय भू ठेकेदार होने का दावा करती है। हनी ट्रैप का पूरा कारोबार भाजपा की शिवराज सरकार के कार्यकाल में ही फलाफूला है। इस मामले की सूत्रधार श्वेता जैन की भाजपा के साथ संबंद्वता किसी से छिपी हुई नहीं है। वह भाजपा युवा मोर्चे की पदाधिकारी रही हैं। सागर विधान सभा चुनावों में सागर विधान सभा सीट के लिए भाजपा के पैनल में श्वेता जैन का भी नाम था, वह प्रबल दावेदार थी, मगर तभी उसकी सैक्स सीडी वायरल हो जाने के बाद उसका नाम पैनल से हटाया गया।
भोपाल में मुख्यमंत्री निवास और वल्लभ भवन तक उसकी पहुंच अचानक तो नहीं हो गई थी। अब वह भाजपा विधायक के फ्लैट में रह रही है। मगर संघ के स्वंयसेवक और भाजपा के संगठन मंत्री रहे अरविंद मैनन के बंगले में उसका आना जाना जगजाहिर था। वह नौ साल तक न्याय बोर्ड की सदस्या रही हैं। इसकी सिफारिश जिला प्रशासन करता है। मगर सरकार इस पर मुहर लगाती है। एक सदस्य केवल दो कार्यकाल के लिए ही न्याय बोर्ड के लिए नामजद हो सकता है। मगर नियमों को तोडकऱ श्वेता जैन को तीसरा कार्यकाल भी दिया गया, तो यह अचानक नहीं है। श्यामला हिल्स से लेकर संघ के स्वंयसेवकों तक से श्वेता जैन की नजदीकियां ही सत्ता के गलियारों में उसका रसूख बढ़ा रही थी। इसलिए जब जांच हो तो सिर्फ बाबूलाल गौर तक सीमित न हो, उन सारे चेहरों को बेनकाब किया जाना चाहिए। संस्कारों और संस्कृति की बात करने वाली भाजपा ने पिछले 15 साल में कौन सी संस्कृति जनता को परोसी है, इसका खुलासा होना चाहिए।
खुलासे के बाद भाजपा ही सबसे ज्यादा परेशान है। यदि इस मामले की सही जांच होती है तो सिर्फ सफेदपोश चेहरों की हकीकत ही जनता के सामने नहीं आएगी, भाजपा के 15 साल के भ्रष्टाचार का काला चिठठा भी सामने आयेगा। जांच सिर्फ यह न हो कि किस किस नेता और अफसर के साथ इनकी नजदीकियां हैं। जांच यह भी होना चाहिए कि इन नजदीकियों के कारण कौन कौन से काम करवाये गए हैं। इंदौर नगरनिगम में हरभजन सिंह 1998 से जमा हुआ है। तबसे वहां भाजपा की ही नगरनिगम रही है। इस दौरान हर मलाईदार जिम्मेदारी सिर्फ हरभजन सिंह को ही क्यों मिलती रही है? अगर उससे 50 लाख रुपए मांगे जा रहे थे, तो इतना पैसा देने की उसकी हैसियत उसके वेतन से तो संभव नहीं है। जाहिर है कि नगर निगम को चूना लगाकर ही उसने यह पैसा कमाया है। इस पैसे में कौन कौन और किस स्वार्थ के साथ मददगार रहा है, यह पहलू भी जांच के दायरे में आना चाहिए।
कितना अजीब है कि यह तो चर्चा हो रही है कि एक अधिकारी ने पांच करोड़ में सीडी नष्ट करवाई है और एक ने दो करोड़ में। मगर उनके नाम सामने लाने में क्या संकट है? कोई भी अधिकारी एक नंबर के पैसे से पांच करोड़ या दो करोड़ रुपए कैसे दे सकता है? क्या इन अधिकारियों के इन काली कमाईयों की जांच भी नहीं की जानी चाहिए?
अब तो लोकतंत्र के चौथे खंभे की लडखड़ाती बैसाखियां भी हनी ट्रैप में शामिल पायी गई हैं। वे जो दूसरों को सुचरियता और जिम्मेदारी का अहसासा कराते हैं, जो दूसरों के भ्रष्टाचार उजागर करते हैं, उनका खुद का बेनकाब होना लोकतंत्र और उसके चौथे खंभे की मजबूती के लिए भी बेहद अहम है। हम चाहते हैं कि उनके चेहरे भी बेनकाब हों।
भाजपा घबड़ाहट में सीबीआई जांच की मांग कर रही है? क्यों? क्योकि उसे अपने चेहरों के बेनकाब होने का डर है। जैसे उसने व्यापमं की जांच में सबको अपराधमुक्त कर शिवराज और संघ को बचाया है, वैसा ही वह अब करना चाहती है और इसके लिए वह प्रदेश सरकार को भी अस्थिर कर सकती है। खैर आशा की जानी चाहिए कि एसआइटी सही दिशा में जांच कर दूध का दूध पानी का पानी करेगी। वैसे भी एसआईटी के इंचार्ज की कार्यप्रणाली अभी तक तो संदेहों से परे ही रही है।
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