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मसला मन्दिर मस्जिद न था न है

चौथाई सदी पहले हुयी इस बर्बरता के निशाने पर क्या ये तीन गुम्बद और वह ढांचा भर था जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था ? नहीं ।

बादल सरोज

चौथाई सदी पहले हुयी इस बर्बरता के निशाने पर क्या ये तीन गुम्बद और वह ढांचा भर था जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था ?
नहीं ।


इस जघन्य धतकरम के लिये डॉ. अम्बेडकर की निर्वाण तिथि 6 दिसम्बर की तारीख का चयन ही इसका असली एजेंडा स्पष्ट कर देती है । यह हमला संविधान, लोकतंत्र और सामाजिक समानता के तीन गुम्बदों पर था ।
देख लीजिये पिछले 25 साल का आम सूरतेहाल । मन्दिर तो खैर ये अमरीका के आढ़तीये और अडानी अम्बानी के तुलावटिये क्या बनाते - मगर संविधान और लोकतंत्र को ठिकाने लगाने तथा मनुस्मृति को सर चढाने में कोई चूक दिखाई इस खल मण्डली ने ? नहीं ।


इसलिये मसला मन्दिर मस्जिद न था न है ।
मसला कारपोरेट कम्पनियों के छप्परफाड़ मुनाफे और उसे आसान बनाने के लिए गरीबों, औरतों, दलितों, आदिवासियों, सोचने समझने वाले भारतीयों, विद्यार्थियों सहित 95 फीसदी अवाम की गुलामी के लिए हिंदुत्व के नाम पर मनु महाराज को बिठाने का था/है ।


यह सच समझना और समझाना उसे बचाने के लिए बेइंतहा जरूरी है जिसका नाम है : भारत दैट इज इंडिया! यही इन 25 सालों का तजुर्बा है ।
कहते हैं न कि जानकारी ही बचाव है ।


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Badal Saroj

लेखक लोकजतन के संपादक एवं अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं.

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