वैसे तो के एल राहुल और हार्दिक पंड्या की बात करना उस देश में समय का दुरूपयोग है जहां आम जनता को प्रभावित करने वाले अनेक मुद्दे रोज रोज सामने आते रहते हैं। लेकिन अगर उन मुद्दों के बरक्स ही पंड्या और राहुल जैसे नवधनाड्य और क्रिकेट संस्कृति की उपजों की चर्चा करें तो आसानी से समझ में आ सकता है कि इन दोनों युवाओं को टेलीविजन पर इतना अश्लील और अभद्र बोलने की हिम्मत किसने दी। बिकने वाले को ही दिखाने का सिद्धांत पालने वाले इस मीडिया ने ही इस तरह के कार्यक्रमों और उनमें पूछे जाने वाले सवालों को ईजाद किया है। यहां राहुल द्रविड, करमाकर, सिंधू या साइना जैसे खिलाडिय़ों को बुलाकर इंटरव्यू लेने की और उनसे उनकी सफलता और मेहनत के बारे में पूछने की कोशिश नहीं की जाती। कॉफी विथ करण जैसे बिकने वाले और चैनल की टी आर पी बढ़ाने वाले कार्यक्रम पंड्या और राहुल को ही बुलाते हैं क्योंकि जो सवाल किये जाते हैं वे अचानक नहीं बल्कि पूछने वाले और उत्तर देने वाले दोनों के लिये जाने पहचाने होते हैं।
ऐसे एक नहीं सैकड़ों कार्यक्रम दसियों चैनलों पर चल रहे हैं जिन्हें रोकने या बंद करने के लिये कोई सेंसर बोर्ड नहीं है। रियेलिटी शो के नाम पर बच्चों का बचपन छीन कर उन्हें अजीब से कपड़े पहना कर अश्लील गाने गवाना ,अभिनय कराना और कचरा दर्शकों को परोसकर अपनी टी आर पी बढ़ाना एक बड़ा धंधा हो गया है। उन चैनलों को चलाने वाले विज्ञापन दाताओं की मांग भी यही होती है।
हिंदुस्तान का आज का युवा दो हिस्सों में बंटा हुआ है। एक उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जिसे जिंदगी चांदी की तश्तरी में परोसी हुई मिली है और उसके थोड़े से प्रयत्नों से ही उसकी सफलता के डंके मीडिया बजाने लगते है उसमें राहुल और पंड्या जैसे युवाओं के साथ, देश के बड़े पूंजीपतियों की वे औलादें भी शामिल हैं, जिनके नाजों, नखरों, शादियों और आवारागर्दियों की खबरें मीडिया और सोशल मीडिया की धड़कन बन जाती है। दूसरी ओर वह बहुसंख्यक युवा है जो या तो पढ़ लिख नहीं पाता या फिर पढ़ जाता है तो करोड़ों बेरोजगारों की लाइन में खड़ा अपनी नौकरी का इंतजार करते हुए बूढ़ा हुआ जा रहा है, लेकिन उसकी तकलीफें,संघर्ष मीडिया के कार्यक्रमों का हिस्सा नहीं बनता क्योंकि कौन विज्ञापनदाता ऐसे कार्यक्रम के लिये अपने विज्ञापन देगा?
पंड्या और राहुल ने महिलाओं के बारे में जो कहा उससे अधिक चिंताजनक यह है कि विरोध होने और क्रिकेट बोर्ड के द्वारा निंदा किये जाने के बाद ही उन दोनों ने माफी मांगी। इसका मतलब यह है कि यदि यह निंदा और विरोध नहीं होता तो दोनों अपने उन अश्लील और अभद्र बयानों पर कायम रहते,क्रिकेट खेलते रहते और दर्शको की तालियां बटोरते रहते।
दरअसल जहां पर हर खबर को सनसनी और बिकने लायक बना कर पेश किया जाये, अंधविश्वास और बाबाओं के प्रचार का साधन चैनलों को बनाया जाये, मुख्य चैनलों पर जनता के असली मुद्दों की बात करने वाले लोगों को देशद्रोही साबित करने पर पूरा जोर लगा देने वाले कार्यक्रम प्रसारित किये जायें,तो ऐसे देश में करन जौहर, के एल राहुल और हार्दिक पंड्या जैसे लोगों को इस तरह की बातें करने का हौसला मिल जाता है।
ऐसा नहीं हेै कि दुनियां भर के देशों में हमारे जैसा मीडिया ही मुख्य धारा का मीडिया है। इस तरह के कार्यक्रमों का न केवल जनता विरोध करती है बल्कि कलाकार तक इसका विरोध करने मुखर होते हैं। लेकिन संस्कारों की बात करने वाला हमारा देश विचित्र है। यहां पर गाय और पंड्या मुख्य धारा के मीडिया का प्रिय विषय है लेकिन आत्महत्या करने वाला किसान नहीं। इसीलिये तो पढ़े-लिखे असंवेदनशील मध्यमवर्ग तक की निगाह में आत्महत्या करने वाला किसान केवल बेटी की शादी न होने की वजह से मरने वाला किसान हो जाता है।
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