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इन्दौर - मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के विरोध में संभागायुक्त को सौंपा ज्ञापन

एक तरफ़ डॉ. नरेन्द्र दाभोलकर, गोविन्द पानसरे, प्रो. एम. एम. कलबुर्गी और गौरी लंकेश जैसे लोगों के हत्यारे खुले घूम रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ दलितों, शोषितों और वंचितों की आवाज़ उठाने वाले जेल में डाले जा रहे हैं।

5 सितम्बर, 2018, इंदौर (मध्य प्रदेश)। शहर के जागरूक और प्रगतिशील विचारधारा के नागरिकों द्वारा पाँच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर भीमा कोरेगाँव में हिंसा फैलाने के झूठे आरोप लगाने और नजरबंद किए जाने के विरोध में संभागायुक्त कार्यालय एवं शहर की व्यस्ततम सड़क एम जी रोड पर नारेबाजी, पोस्टर, बैनर के साथ विरोध व्यक्त किया और इंदौर संभागायुक्त को ज्ञापन दिया।

उभरती हुई दलित चेतना और एकजुट होते शोषितों को आपस मे लड़ाने के मकसद से कुछ महीनों पहले ब्राह्मणवादी, मनुवादी साम्प्रदायिक ताक़तों ने भीमा कोरेगांव में हिंसा फैलाई। साज़िशों का सिलसिला यहीं नहीं थमा। भीमा कोरेगांव में किये गए बलवे का दोष भी उन्होंने दलितों और शोषितों की आवाज़ उठाने वाले लोगों पर ही मढ़ दिया। चंद महीनों पहले इसी सिलसिले में उन्होंने जून, 2018 में सुधीर धवले, शोमा सेन, सुरेंद्र गाडलिंग, रोना विलसन और महेश राउत की गिरफ्तारी एवं 28 अगस्त 2018 को वरिष्ठ कवि वरवर राव को हैदराबाद से, मानवाधिकार कार्यकर्त्ता और वकील वेरनॉन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को मुंबई से, वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्त्ता और लेखक गौतम नवलखा को दिल्ली से और मज़दूर संगठन की नेत्री और वरिष्ठ वकील सुधा भारद्वाज को फरीदाबाद में उनके घरों से गिरफ्तार किया गया। इसके साथ ही झारखण्ड में फादर स्टेन स्वामी और गोवा में दलित चिंतक और लेखक प्रोफ़ेसर आनंद तेलतुंबड़े के घरों पर छापे मारे गए एवं सभी को नजरबंद किया गया और उन पर यह इलज़ाम लगाया कि उन्होंने माओवादियों की मदद से पुणे में हुई यलगार परिषद् तथा भीमा कोरेगांव में हिंसा फैलाने की साज़िश रची है। यलगार परिषद् के आयोजक हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस पी. बी. सावंत और जस्टिस कोलसे पाटिल ने इन आरोपों का पूर्णतया खंडन किया है। यहां तक कि पुलिस के अनुविभागीय अधिकारी ने सर्वोच्च न्यायालय को दिए अपने हलफनामे में कहा है कि पुणे और भीमा कोरेगाँव में हुई हिंसा के लिए शिव जागर प्रतिष्ठान के संस्थापक संभाजी भिड़े और हिन्दू जनजागरण समिति के संस्थापक मिलिंद एकबोटे को ज़िम्मेदार हैं और वो पर्चे दस्तावेज़ प्रस्तुत किये हैं जिनसे इनकी नीयत और साज़िश का पता चलता है। लेकिन सरकार ने तथ्यों को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करते हुए आवाज़ उठाने वालों पर दबाव बनाने के लिए जबरन गिरफ्तारियां कीं। लेकिन सर्वोच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप से इनकी गिरफ्तारी पर सरकार को रोक लगानी पड़ी जिसके बाद इन्हें केवल नजरबंद ही किया गया।

डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, प्रो. एम. एम. कलबुर्गी और गौरी लंकेश को कायराना तरह से क़त्ल करने और गोवा व मालेगाँव में हुए बम धमाकों, समझौता एक्सप्रेस तथा मक्का मस्जिद में हुए धमाकों में और ऐसी ही अनेक आतंक फ़ैलाने वाली गतिविधियों में सनातन संस्था तथा इसी तरह के अन्य दक्षिणपंथी सांप्रदायिक हिन्दू संगठनों का नाम आया जिनके सूत्र सत्ताधारी पार्टी से जुड़े हुए हैं तो सरकार ने जनता का ध्यान असल मुद्दों और अपने ऊपर लगते इल्ज़ामों से हटाने के लिए इन्साफ के पक्ष में संघर्षरत लोगों को झूठे मामलों में फंसाने और सरकार के विरोध की आवाज़ को दबाने के लिए इस तरह की चाल चलनी शुरू की।

एक तरफ़ डॉ. नरेन्द्र दाभोलकर, गोविन्द पानसरे, प्रो. एम. एम. कलबुर्गी और गौरी लंकेश जैसे लोगों के हत्यारे खुले घूम रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ दलितों, शोषितों और वंचितों की आवाज़ उठाने वाले जेल में डाले जा रहे हैं। जातीय शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले चंद्रशेखर रावण को भी बिना किसी ठोस आरोप के एक बरस से अधिक समय से जेल में डाला हुआ है।

देश के वरिष्ठ सम्मानित नागरिकों ने सरकार और पुलिस की इस कार्रवाई के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई और सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिष्ठित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ इस तरह का मनमाना और अपमानजनक सुलूक करने के लिए सरकार और पुलिस को फटकार लगाई। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अगर सरकार लोगों को अपना विरोध दर्ज करने से भी रोकेगी तो लोकतंत्र का ये प्रेशर कुकर फट जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने ये भी कहा है कि सरकार का विरोध करना किसी भी तरह से देशद्रोह नहीं कहा जा सकता है।

हाल में गिरफ्तार किये 5 मानवअधिकार कार्यकर्ताओं की सुनवाई 6 सितम्बर 2018 को सर्वोच्च न्यायालय में होनी है। उसके एक दिन पहले देश के इंसाफ़पसन्द हम तमाम संगठनों, संस्थाओं और व्यक्तियों ने ये निर्णय किया कि गौरी लंकेश की पहली बरसी पर उसे याद करते हुए हम सभी 5 सितम्बर को देशव्यापी प्रतिरोध दिवस के रूप में आयोजित करें और न्याय की इस लड़ाई को और लोगों तक ले जाकर गौरी तथा इन्साफ की लड़ाई के सभी शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि दें।

हम इस मौके पर जनता के बीच अपनी बात पहुंचाते हुए सरकार के सामने यह सीधी बात भी रखना चाहते हैं कि :

  1. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, पत्रकारों और लेखकों पर झूठे मुक़दमे वापस ले।

  2. हाल में गिरफ्तार किये गए पाँचों ज़िम्मेदार नागरिकों सुश्री सुधा भारद्वाज, सर्व श्री वरवर राव , गौतम नवलखा, अरुण फरेरा और वेर्नोन गोंजाल्विस तथा पूर्व में जून गिरफ्तार किये गए प्रोफ़ेसर शोमा सेन, सुधीर धवले, सुरेंद्र गाडलिंग, रोना विलसन और महेश राउत को भी न केवल बिना शर्त रिहा किया जाए बल्कि उनसे सरकार व् पुलिस मुआफी मांगे और उनके इस अपमान के लिए मुआवजा भी दे।

  3. चंद्रशेखर रावण को भी इसी तरह के झूठे मामलों में फंसाकर गिरफ्तार किया हुआ है। ऐसे अनेक राजनीतिक क़ैदियों को अविलम्ब रिहा किया जाए और ये सुनिश्चित किया जाए कि सरकार तथा सरकारी एजेंसियां क़ानून का उपयोग अपराध करने के लिए न करें बल्कि सही दोषियों को पकड़ने में करें।

  4. जब सनातन संस्था और उससे जुड़े अनेक सदस्यों की भागीदारी अनेक आपराधिक और हिंसक गतिविधियों में पाई गयी है तो क्यों शासन उक्त संस्थाओं की जांच तालाब नहीं करता है। इन संस्थाओं की गहरी जांच पड़ताल की जाए और उन पर सख्त कार्रवाई हो।

  5. भीमा कोरेगाँव मामले में सरकारी जाँच के बाद संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे की संलिप्तता पाई गई है। उन पर भी सख्त कार्रवाई हो। इसी के साथ कभी गाय के नाम पर कभी किसी और वजह से कानून को अपने हाथ में लेने वालों पर सरकार कार्रवाई करे। अभी तो उन्हें मानो सरकार का वरदहस्त मिला हुआ है और वे पुलिस और कानून-व्यवस्था को अपना ग़ुलाम समझते हैं।

  6. डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, गोविन्द पानसरे, एम्. एम. कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्याओं के लिए ज़िम्मेदार पूरे नेटवर्क का पता लगा कर उन पर भी शीघ्र सख्त कार्रवाई की जाए।

मेधा पाटकर, जया मेहता, माधुरी बहन, विनीत तिवारी, शैला शिंत्रे, वसन्त शिंत्रे, रुद्रपाल यादव, मोहन निमजे, गौरीशंकर शर्मा, परेश टोककर, विजय सिंह जाटव, राजू अम्बोडे, मनोज गड़रे, हेमंत वासनिक, संदीप सहारे, नीलेश रामटेके, बंडू गजभिये, अमोल गड़रे, अमित गोडबोले, तपन भट्टाचार्य, एस के दुबे, सोहनलाल शिंदे, दुर्गादास सहगल, सारिका श्रीवास्तव, पंखुरी किरण प्रकाश, प्रमोद बागड़ी, अभय नेमा, अजय लागू, सुलभा लागू, नेहा दुबे, कृष्णार्जुन, वसीम एवं अन्य जागरूक साथियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।

शामिल संगठन हैं दलित-आदिवासी मुक्ति संघर्ष मोर्चा, समता सैनिक दल, जय भीम सेना, बौद्ध समाज युवा शक्ति, सीपीआई, सीपीआई (एम), एसयूसीआई (सी), आम आदमी पार्टी, प्रगतिशील लेखक संघ, भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा), भारतीय महिला फेडरेशन (एनएफआईडब्ल्यू), एटक, सीटू, सन्दर्भ केन्द्र, भगतसिंह दीवाने ब्रिगेड, अनुसूचित जाति-जनजाति संघर्ष मोर्चा, संत रविदास समाज सेवा समिति, संविधान बचाओ मोर्चा, राष्ट्रीय समग्र दलित क्रांति सेना, दलित शोषण मुक्ति मंच, डॉक्टर अंबेडकर स्टूडेंट फ्रंट ऑफ इंडिया, जागृत आदिवासी दलित संगठन, संस्था अंबेडकर भीम कमेटी, नींव संस्था, भीम आर्मी, भीम सेना, रोटी का संघर्ष यूनियन, एआईएसएफ, जय भीम युवा संगठन, संविधान रक्षक संघ, आधी आबादी महिला संगठन एवं शोषितों, वंचितों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और मज़दूरों के अधिकारों के लिए कार्यरत अनेक प्रगतिशील और जनवादी संगठन।

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