भोपाल। प्रदेश के अनेक जिलों में 22 मार्च से शुरू हुए लॉक डाउन के 21 दिन के लॉकडाउन में बदल जाने ने मध्यप्रदेश की खेती, किसानो, खेत मजदूरों तथा ग्रामीण आबादी को अत्यंत कठिन स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसने उनके जीवनयापन पर ही नहीं जीवन के अस्तित्व तक पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है।
अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज, मध्यप्रदेश किसान सभा के अध्यक्ष रामनारायण कुररिया ने कोरोना वायरल डिसीज - कोविद - 19 के चक्र को तोडऩे के लिए आवश्यक माने जा रहे इस लॉक डाउन के दौरान कुछ जरूरी मुद्दों का तत्काल संज्ञान लेते हुए उनके समाधान हेतु निर्देश जारी करने का अनुरोध प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से किया है।
किसान सभा ने कहा है कि चने, गेंहू और कुछ इलाकों में सरसों तथा दलहन की फसल खेतों में पकी हुयी खड़ी है किन्तु लॉकडाउन/कफ्र्यू के चलते उसकी कटाई नहीं हो पा रही है। संचालनालय कृषि अभियांत्रिकी द्वारा दिनांक 24 मार्च का जो आदेश आया है उसमे भी मुख्यत: हार्वेस्टर आदि मशीनों और उन पर लगे 2 अथवा 4 मजदूरों को अनुमति दिए जाने का निर्देश दिया गया है। मध्यप्रदेश की कृषि की स्थिति के हिसाब से यह एकदम अपर्याप्त हैं क्योंकि हार्वेस्टर्स का उपयोग किसानो का एक संपन्न - तुलनात्मक रूप से अधिक भूमि के स्वामित्व वाला - किसान ही कर पाता है। अधिकाँश कटाई शारीरिक श्रम से होती है। इस कार्य में प्रदेश भर में लाखों मजदूरों की आवश्यकता होती है, उनका जीवन इसी से चलता है । इसलिए आवश्यक हो जाता है कि कोविद-19 के प्रोटोकॉल्स का पालन सुनिश्चित करते हुए इन श्रमिकों को काम करने की विशेष अनुमति प्रदान की जाये । कृपया इस बारे में निर्देश जारी करें ताकि प्रदेश भर की खड़ी हुयी फसल को बर्बाद होने से बचाया जा सके। यही स्थिति महुआ बींनने तथा तेंदू पत्ता संग्रहण के मामले में भी लागू होती है। प्रदेश के कई लाख आदिवासी एवं परम्परागत वनवासी महुआ, तेंदू पत्ता तथा वनोपज से अपना जीवनयापन करते हैं। उनके बारे में भी स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किया जाना आवश्यक हो गया है।
किसान सभा के अनुसार सब्जी तथा फल उत्पादक किसानों के बारे में भी विशेष उपाय करने की आवश्यकता होगी। नर्मदा से लेकर चम्बल तक खरबूज, भिंडी, गिलकी, करेला, टमाटर, बैंगन सहित सभी सब्जियों तथा केला के बाजार तक पहुँचने में दिक्कत के कारण किसान तबाही की आशंका में हैं। कुछ क्षेत्रो में पान उत्पादक किसान भी है - उनका भी उत्पादन ऐसा है जिसे संग्रह करके नहीं रखा जा सकता। इस संबंध में नियंत्रित किन्तु नियमित परिवहन की व्यवस्था विकसित किया जाना आवश्यक हो जाता है। यही हालत दूध उत्पादक किसान तथा अन्य दुग्ध उत्पादकों के संबंध में कई जिलाधीशों ने सुबह के समय दूध लाने ले जाने की सीमित अनुमति दी है। जबकि दूध दोनों समय निकाला जाता है। इस बारे में भी निर्देशों को संशोधित करने की आवश्यकता है।
किसान सभा ने चिंता जताई है कि किसानो को एमएसपी के मुताबिक़ भुगतान नहीं किया जा। किसान अपनी उपज के सही दाम पा सके इसके लिए उचित होगा कि कोविद-19 के प्रोटोकॉल्स के पालन के साथ सीमित समय के लिए कृषि उपज मंडी तथा खरीदी केंद्र खोले जायें। स्थिति का अनुचित लाभ उठाकर किसानो की उपज औने-पौने दाम पर हड़पने की कोशिश करने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही के निर्देश दिए जाए।
किसान नेताओं के मुताबिक़ दिहाड़ी मजदूरों, खेत मजदूरों तथा छोटे, सीमान्त और मध्यम किसानो के लिए 21 दिन का लॉकडाउन अत्यंत गंभीर संकट है। उन्हें तथा उनके परिवारों को जीवित रखने के लिए कुछ कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। इस दिशा में उन्होंने 5 सुझाव दिए है जिनमे सभी ग्रामीण परिवारों को दो दो माह का राशन नि:शुल्क बांटने, हर परिवार के खाते में अविलम्ब 5-5 हजार रुपयों की राशि स्थानांतरित करने, पंचायत तथा नगर पंचायत स्तर पर सस्ती दरों पर पौष्टिक खाना उपलब्ध कराते हुए यथासंभव उसकी डिलीवरी हर जरूरतमंद परिवार तक करने, सामाजिक सुरक्षा में आने वाले नागरिकों तथा सभी गरीबों को विशेष मदद - नकदी तथा खाद्यान्न - प्रदान करने और मनरेगा क़ानून के काम न मिलने पर बेरोजगारी भत्ता देने के प्रावधान को पूरे प्रदेश में उपयोग में लाकर उसके आधार पर हर सप्ताह का नकद भुगतान प्रत्येक सोमवार को किये जाने के सुझाव शामिल हैं ,
किसान सभा ने मुख्यमंत्री का ध्यान पिछले पखवाड़े में पहले ओलावृष्टि बाद में बेमौसम की बारिश ने प्रदेश की खेती को हुयी भारी हानि पर भी दिलाया है और मांग की है कि इसका पूरा आंकलन होने की प्रक्रिया का इंतज़ार किये बिना प्रत्येक किसान को प्रति एकड़ न्यूनतम 10 हजार रूपये की अग्रिम राहत राशि का भुगतान किया जाए।
किसान सभा ने सभी किसानो के बैंक बकाया एक साल के लिए बिना ब्याज के स्थगित करते हुए बिजली तथा अन्य सभी तरह की बकाया वसूली पर स्थगन की मांग की है।
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